पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के कैसे हैं हालात? कुछ इस तरह जान बचाकर भारत आते हैं हिंदू शरणार्थी

संशोधित नागरिकता कानून (Citizenship Amendment Bill) को लेकर देशभर में विरोध भी हो रहा है, मगर अलग-अलग हिस्सों में रह रहे पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों के लिए तो ये किसी ख्वाब के पूरे होने जैसा है। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 19, 2019 8:52 AM IST / Updated: Dec 19 2019, 02:23 PM IST

नई दिल्ली। पड़ोसी देशों में धार्मिक वजहों से उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए हाल ही में भारत सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया है। संशोधित नागरिकता कानून (Citizenship Amendment Bill) को लेकर देशभर में विरोध भी हो रहा है, मगर अलग-अलग हिस्सों में रह रहे पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों के लिए तो ये किसी ख्वाब के पूरे होने जैसा है। हालांकि संशोधित कानून के आधार पर 2014 के बाद तक भारत आए अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता पाना उतना आसान भी नहीं होगा।

इसी महीने छह दिसंबर को परिवार समेत पाकिस्तान में मछियारी (हैदराबाद) से भारत आए मंगलदास ने बताया, "वो अपने परिवार को लेकर किसी तरह आए हैं। मर जाएंगे, मगर कभी वापस पाकिस्तान नहीं जाएंगे।" मंगलदास के मुताबिक उन्होंने पाकिस्तान में जिल्लतभरी जिंदगी और असहनीय धार्मिक उत्पीड़न झेला। तमाम चीजें यादकर उनकी रूह कांप जाती है। वो दोबारा उस नर्क में लौटना नहीं चाहते।

Asianetnews Hindi ने कई शरणार्थियों से बात की और जाना कि उन्हें पाकिस्तान में किस तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। आखिर वो कौन से हालात थे जिसकी वजह से जन्मभूमि छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। और सबसे जरूरी बात ये भी कि पाकिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यक आखिर भारत आते कैसे हैं?

कैसे हालात का सामना करते हैं अल्पसंख्यक?
पिछले एक दशक के दौरान हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों का पाकिस्तान से भागकर भारत आने का सिलसिला काफी बढ़ा है। हिंदू इमरजेंसी एड एंड रिलीफ टीम के डॉ. शिल्पी तिवारी ने बताया कि पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का धार्मिक सामाजिक-शोषण बहुत बढ़ा है। महिलाओं पर रेप और यौन उत्पीड़न की घटनाएं आम हैं। हिंदू मजदूरों को बधुआ बनाकर शोषण किया जाता है। कट्टरपंथियों की वजह से ग्रामीण इलाकों की हालत तो बहुत ही खराब है।

पाकिस्तान से पलायन करने वाले सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की लगभग एक जैसी कहानी है। शरणार्थी गंगाराम ने पाकिस्तान छोड़ने को लेकर बताया, "पाकिस्तान में हम आजादी से अपना कारोबार नहीं कर सकते हैं। कट्टरपंथी मुसलमान परेशान कराते हैं। गुंडा टैक्स वसूला जाता है। बहू-बेटियों का घर के बाहर सुरक्षित और आजादी से घूमना भी मुश्किल है।" कुछ शरणार्थियों ने पाकिस्तान में जमीन जायदाद पर कब्जे की शिकायतें भी कीं।

एक दूसरे शरणार्थी धर्मवीर सोलंकी के मुताबिक, "पाकिस्तान में हिंदू परिवारों को आए दिन प्रताड़ित किया जाता है। हमारे बच्चे पढ़ नहीं सकते थे। वहां के स्कूलों में इस्लामी शिक्षा दी जाती है।" शरणार्थियों के मुताबिक पाकिस्तान से भागने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी नहीं है। पलायन का सिलसिला अभी भी जारी है। मगर संशोधित नागरिकता कानून में 2014 के बाद भारत आए शरणार्थियों को नागरिकता हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

कैसे पाकिस्तान से भारत आते हैं अल्पसंख्यक
ये तरीके एक जैसा है। अल्पसंख्यक पाकिस्तान में भारत के अलग-अलग तीर्थस्थलों के लिए वीजा का अनुरोध करते हैं। जब उन्हें वीजा मिल जाता है, तो भारत आ जाते हैं और यहां पहले से मौजूद शरणार्थियों के बीच रहने लगते हैं। दोबारा लौटते ही नहीं है। धार्मिक वीजा के जरिए अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान से निकालने का काम भारत में सक्रिय कुछ संगठनों की मदद से शरणार्थी ही करते हैं।

पिछले छह सालों में अब तक करीब सात हजार परिवारों को पाकिस्तान से निकाल चुके गंगाराम ने बताया कि धार्मिक वीजा पर आए शरणार्थी परिवार राजस्थान के कई जिलों, दिल्ली, फरीदाबाद, हरिद्वार, इंदौर और छत्तीसगढ़ के इलाकों में रह रहे हैं। गंगाराम के मुताबिक विश्व हिंदू परिषद से जुड़े कुछ संगठन शरणार्थियों के लिए उनकी मदद करते हैं। विहिप के कुछ संगठनों की वजह से अबतक कई हिंदू शरणार्थियों को फास्ट ट्रैक अपील के जरिए नागरिकता भी दी जा चुकी है।

पाकिस्तान ने भारत के दावे को बताया झूठा
उधर, पाकिस्तान ने अपने देश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के आरोपों और हिंदुओं की आबादी घटने के दावे को झूठा करार दिया है।  पाकिस्तान ने ऐसे तथ्यों को बेबुनियाद कहा है जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों की जनसंख्या 1947 के 23% से घटकर 2011 में 3.7% प्रतिशत बताया गया है।

क्या है संशोधित नागरिकता कानून?
संशोधित नागरिकता कानून के तहत पड़ोसी देशों से भारत आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी। ये नागरिकता पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सीख, जैन, बौद्ध, ईसाई और फारसी धर्म के लोगों को दी जाएगी। नागरिकता उन्हें मिलेगी जो एक से छह साल तक भारत में रहे हों। 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए लोगों को संशोधित कानून के तहत नागरिकता देने का प्रावधान है। नागरिकता कानून में संशोधन, पिछले हफ्ते शीट सत्र के दौरान ही किया गया था।  

Share this article
click me!