Explainer: क्या होता है डायरेक्टेड एनर्जी वेपंस? कैसे वर्ल्ड पॉवर को टक्कर देगा भारत

Published : Oct 03, 2023, 04:59 PM ISTUpdated : Oct 05, 2023, 12:24 PM IST
energy weapons

सार

भारत हथियारों के मामले में जल्द ही वर्ल्ड पॉवर के साथ कंपीटिशन करने लगेगा। निर्देशित ऊर्जा हथियार प्रौद्योगिकी (DEW ) भविष्य के सैन्य परिदृश्य को पूरी तरह बदलने वाला साबित होगा। जानकारी दे रहे हैं गिरीश लिंगन्ना। 

Directed Energy Weapons. निर्देशित ऊर्जा हथियार प्रौद्योगिकी (DEW ) में भारत की प्रगति उसे चीन जैसी वैश्विक शक्तियों के साथ कंपीटिशन के योग्य बनाने वाली है। जमीन आधारित लेजर हथियारों में भारत की क्षमता से भविष्य में सैन्य परिदृश्य पूरी तरह से बदला हुआ नजर आने वाला है। यह लहर की तरह है, जिसे पानी के उपर देखा जा सकता है। इसे लेटेस्ट सैन्य प्रोद्योगिकी के तौर पर देखा जा सकता है। हाल ही में एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी ने ऐलान किया था कि भारत ने न केवल इसका परीक्षण किया है बल्कि निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW ) के माध्यम से हाइपरसोनिक हथियार भी तैनात किए हैं।

भारत का डिफेंस सेक्टर होगा मजबूत

इस ऐलान के बाद भारत के डिफेंस सेक्टर में लोगों की रूचि बढ़ गई। साथ डिफेंस जर्नलिस्ट और स्ट्रैटिजिस्ट के भीतर भी हलचल हुई कि आखिर यह है क्या। जल्दी ही इसका खुलासा भी हुआ, जब भारतीय वायु सेना के सूत्रों ने कहा कि वायु सेना प्रमुख के बयान ने ऐसे हथियारों के वैश्विक उपयोग पर प्रकाश डाला है और यह केवल भारत के लिए नहीं था।

क्या है निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW)

भारत के डिफेंस सेक्टर में निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW) ने अपना स्थान बना लिया है। हालांकि इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। लेकिन निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW) में वह हथियार प्रणालियां शामिल हैं, जिसमें टार्गेट बेस्ड लेजर बीम, माइक्रोवेव या कण बीम हैं, जिनसे विनाशकारी फोर्स पैदा होता है। DEW पारंपरिक हथियारों की तुलना में कई फायदों का दावा करता है। इसकी सटीकता बेजोड़ होती है। हर शॉट में इसका प्रभाव ज्यादा होता है। यह लॉजिस्टिक तौर पर भी दक्ष होता है। इसकी गति बहुत तेज होती है और इसकी पहचान कर पाना बेहद मुश्किल होता है। इसकी घातक किरणें टार्गेट पर सीधे हमला करती हैं। यह हाइपरसोनिक मिसाइलों की तरह ही अजेय होता है।

भारत में DEW का विकास

भारत में DEW का विकास रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और उसके सहायक हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेज (CHESS) के प्रयासों से संभव हुआ है। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी), सेना डिजाइन ब्यूरो (एडीबी) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) सहित कई अन्य संस्थाओं ने विभिन्न डीईडब्ल्यू प्रोग्राम में सपोर्ट किया है। इसमें सबसे बड़ा मील का पत्थर CHESS द्वारा लेजर-आधारित एंटी-ड्रोन प्रणाली का सफल विकास है। यह ऐसा एंटी-ड्रोन सिस्टम है, जिसमें रडार, जैमिंग क्षमताएं और लेजर-आधारित हार्ड-किल क्षमताएं शामिल की गई हैं। इन हथियारों के निर्माण और आपूर्ति का जिम्मा बेंगलुरु स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) को सौंपा गया है। इसके कुछ प्लेटफार्म पहले ही सामने आ चुके हैं और प्रमुख प्लेटफार्म के 2024 तक शामिल होने की उम्मीद है।

DEW का विकास और निर्माण हाईलेवल पर सहयोग की प्रमुखता को दर्शाता है। इसका उदाहरण नौसैनिक एंटी-ड्रोन प्रणाली है। जिसकी कल्पना डीआरडीओ की प्रयोगशालाओं में की गई और जिसे राज्य के स्वामित्व वाली बीईएल द्वारा तैयार किया गया। इसमें डीआरडीओ लैब्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और रडार डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एलआरडीई) और डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स रिसर्च लेबोरेटरी (डीएलआरएल) सहित सीएचईएसएस और आईआरडीई सहित कई महत्वपूर्ण संस्थाओं ने भूमिका निभाई है। ड्रोन के लिए निर्माण केंद्र बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और मछलीपट्टनम में बीईएल केंद्रों में किया जा रहा है। भारत ने भी इस प्रयास में तेज प्रगति की है और विश्व मंच पर DEWs की दौड़ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

(लेखक बेंगलुरु स्थित रक्षा, एयरोस्पेस और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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