
नई दिल्ली. श्रीलंका के साथ भारत के संबंध पिछले डेढ़ दशक में बहुत उत्साहजनक नहीं रहे। इस बीच श्रीलंका भारत की बजाए चीन के ज्यादा करीब गया। यही कारण है कि अब नए राजनीतिक हालात में भारत ने अपना ध्यान श्रीलंका पर केंद्रित किया है। जिसमें श्रीलंका के नए राष्ट्रपति बने गोटबाया राजपक्षे को पीएम मोदी ने भारत आने का न्यौता दिया और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। अब वह पहली विदेश यात्रा पर भारत आएंगे। विदेश मंत्री एस जयशंकर बिना तय कार्यक्रम के मंगलवार को श्रीलंका पहुंचे। उनकी ये यात्रा इसलिए भी अहम है, क्योंकि सोमवार को ही श्रीलंका में राष्ट्रपति के चुनाव में गोटबाया राजपक्षे नए राष्ट्राध्यक्ष चुने गए हैं।
स्वीकार किया निमंत्रण
जानकारों के अनुसार विदेश मंत्री एस जयशंकर मंगलवार शाम को कोलंबो पहुंचे। वह बुधवार सुबह भारत लौटेंगे, कोलंबो में उन्होंने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोटाबाया से मुलाकात की और उन्हें पीएम मोदी की ओर से भारत आने के लिए निमंत्रण दिया। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है। आपको बता दें कि रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर गोटाबाया से बात की थी। साथ ही पीएम मोदी ने गोटाबाया को पहले विदेशी टूर पर भारत आने के लिए उन्हें निमंत्रण दिया। सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने "विकास और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत के साथ काम करने की इच्छा" व्यक्त की।
भारत के लिए इसलिए है बड़ी चिंता
भारत श्रीलंका का साथ गंभीरता से ले रहा है। दरअसल, गोटबाया के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के समय 2005 से 2015 तक श्रीलंका के संबंध भारत की बजाए चीन से ज्यादा बेहतर रहें हैं। महिंदा राजपक्षे पर आरोप है कि उन्होंने श्रीलंका को चीन के कर्ज के जाल में फंसा दिया। यहां तक कि हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को सौंप दिया। भारत के विरोध के बावजूद ये बंदरगाह चीन ने 99 साल की लीज पर ले लिया है। भारत के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी ही हो सकती है कि इस बंदरगाह का उपयोग श्रीलंका की सहमति के बिना सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता है।
फिर उभर सकते है राजपक्षे
गोटबाया राजपक्षे चाहते हैं कि महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद को संभालें. ऐसे में वह मौजूदा प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे पर दबाव बढ़ाना चाहते हैं ताकि वह समय से पहले इस्तीफा दे दें। श्रीलंका में अगले साल अगस्त में संसदीय चुनाव हैं। ऐसे में श्रीलंका में एक बार फिर से इस बात की प्रबल संभावना पैदा हो गई है कि पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे एक बार फिर से सत्ता के सबसे शक्तिशाली केंद्र बन सकते हैं।