नई दिल्ली। 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस (Indian Navy Day) मनाया जाता है। इस अवसर पर आइए जानते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज को क्यों भारतीय नौसेना का जनक कहा जाता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार छत्रपति शिवाजी ने मराठा साम्राज्य और मराठा नौसेना की स्थापना की थी। वह भी ऐसे समय में जब यूरोपीय ताकतों ने समुद्र पर कंट्रोल कर लिया था।
बात 17वीं सदी की है। उस समय भारत में शक्तिशाली साम्राज्यों का बोलबाला था। दक्कन क्षेत्र और कोंकण तट पर बीजापुर की आदिलशाही, गोलकुंडा की कुतुब शाही और मुगल साम्राज्य का प्रभाव था। कोंकण तट के साथ भारत के पश्चिमी तटरेखा के एक हिस्से में आदिलशाही ने प्रमुख बंदरगाहों को नियंत्रित किया। वहीं, पुर्तगाली, डच, अंग्रेज और अफ्रीकी मूल के सिद्दी जैसी यूरोपीय ताकतों ने समुद्र पर अपना दबदबा कायम किया।
1498 में वास्को डी गामा के कालीकट पहुंचने के बाद पुर्तगालियों ने अरब सागर और उसके व्यापार मार्गों पर कंट्रोल कर लिया था। उन्होंने कार्टाज प्रणाली की शुरुआत की। इसमें व्यापार परमिट की आवश्यकता होती थी। जो जहाज इसका पालन नहीं करते उन्हें नष्ट कर दिया जाता था। अपनी ताकत बढ़ाने के लिए पुर्तगालियों ने कोंकण तट पर उपनिवेश स्थापित किए। वसई, चौल, दमन, गोवा, बसरूर और मैंगलोर में उनके मजबूत नौसैनिक बेड़े थे।
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1613 में सूरत में अपना पहला कारखाना स्थापित किया था। 1665 तक कंपनी ने बॉम्बे पर कंट्रोल कर लिया। अंग्रेजों ने युद्धपोतों का निर्माण शुरू किया। इन युद्धपोतों पर 14 से लेकर 22 तोप लगाए गए थे।
पुर्तगालियों और अंग्रेजों के साथ-साथ डच और फ्रांसीसी भी भारतीय तटरेखा पर सक्रिय थे। सिद्दी लोगों ने कोंकण तट पर जंजीरा में खुद को स्थापित कर लिया था। कुशल नाविकों के रूप में उन्होंने शुरुआत में आदिलशाही और बाद में मुगलों की सेवा की। उनके पास 20 युद्धपोतों और चार फ्रिगेट का बेड़ा था।
जब शिवाजी ने अपनी स्वतंत्रता की शुरुआत की थी तब कोंकण का तट विदेशी ताकतों से घिरा हुआ था। सिद्दी बहुत शक्तिशाली थे। वे मराठा राज्य के कट्टर दुश्मन थे। शिवाजी ने तोरणा किले (वर्तमान पुणे जिले में) पर कब्जा करके अपने राज्य या ‘स्वराज्य’ की नींव रखी थी। शिवाजी ने कोंकण और कोल्हापुर के अधिकांश क्षेत्रों को अपने राज्य में शामिल किया। कल्याण और भिवंडी जैसे महत्वपूर्ण उत्तरी बंदरगाहों पर उनका कंट्रोल था। इससे व्यापार और समुद्री मामलों पर उनका प्रभाव मजबूत हुआ।
1657 और 1658 के बीच शिवाजी ने कोंकण तट के 100 किलोमीटर के क्षेत्र में सावित्री नदी से लेकर कोहोज और अशेरीगढ़ के उत्तरी किलों तक अपना साम्राज्य फैलाया। उन्होंने सुरगढ़, बिरवाड़ी, ताला, घोसले, सुधागढ़, कंगोरी और रायगढ़ सहित कई प्रमुख किलों पर भी कब्जा किया।
तटीय क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करने के बाद शिवाजी को मजबूत नौसैनिक शक्ति की जरूरत हुई। 1659 के आसपास कल्याण और भिवंडी में उन्होंने सैन्य जहाजों का निर्माण शुरू कराया। पुर्तगाली नौसेना अधिकारी रुई लेइटाओ विएगास ने इस काम में उनकी मदद की थी। शिवाजी ने शक्तिशाली युद्धपोत के साथ ही मजबूत व्यापारिक जहाज भी बनवाए थे।
शिवाजी ने मराठा बेड़े को दो वर्ग में बांटा था। एक व्यापारी जहाज और दूसरा युद्धपोत। व्यापारी जहाजों में माचवा, शिबाद, पदव, तरंडे और पगार शामिल थे। युद्धपोतों में गुरब, गलबत, महागिरी, शिबाद, तरंडे, तारूस और पगार शामिल थे। शिवाजी की नौसेना में करीब 85 जहाज थे। इनमें 5,000 नाविक थे। इनमें तीन बड़े गुरब या फ्रिगेट्स भी थे।
1770 तक शिवाजी की नौसेना में 30 बड़े फ्रिगेट्स, 1,000 गलबत, 150 महागिरि, 50 छोटे गुरब, 160 छोटी नावें, 60 तरावे, 25 पाल जहाज, 15 जग-क्लास के जहाज और 50 मचवा थे। शिवाजी की नौसेना ने कई हमलों में भाग लिया था। इसने कोंकण तटरेखा और आसपास के समुद्री इलाके पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। उनकी नौसेना ने आदिलशाही, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के जहाजों पर कब्जा कर लिया था।
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