परदेस में बेटी को सजा-ए-मौत से बचाने की जद्दोजहद करती मां, कैसे मिले जीवनदान?

केरल की नर्स निमिशा प्रिया को यमन में हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई है। भारत सरकार और कई संगठन उसकी रिहाई के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ब्लड मनी को लेकर विवाद जारी है। क्या निमिशा की जान बच पाएगी?

Nimisha Priya case: भारत के एक नर्स को यमन में सजा-ए-मौत की सजा सुनाए जाने के बाद विदेश मंत्रालय से लेकर कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन उसे बचाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। केरल की नर्स निमिशा प्रिया की मौत की सजा को बरकरार रखने की वहां के राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है। हालांकि, भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को भरोसा दिया कि पीड़िता नर्स को हर संभव मदद दी जा रही है। केरल की रहने वाली निमिषा को 2017 में एक यमनी नागरिक की हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी। अब जब यमन के राष्ट्रपति ने उस सजा को बरकरार रखते हुए आगे कार्रवाई की मंजूरी दे दी है तो ऐसे में उस मामले में क्या हो सकता है, क्या कानूनी तौर पर निमिशा को बचाया जा सकता है? भारत सरकार या अन्य संगठनों द्वारा कैसे उनकी जान बचाने के लिए कानूनी प्रयास किए जा रहे हैं? आइए जानते हैं।

केरल की नर्स के सजा-ए-मौत का क्या है मामला?

केरल के पलक्कड़ जिले के कोलेनगोडे की 36 वर्षीय नर्स निमिशा प्रिया 2008 में अपने माता-पिता की मदद के लिए यमन चली गई थी। यमन में निमिशा प्रिया ने कई अस्पतालों में काम किया। वह 2014 में तलाल अब्दो महदी के संपर्क में आईं। निमिशा ने तलाल के साथ मिलकर अपना स्वयं का क्लिनिक खोला। दरअसल, यमन के नियमों के अनुसार, यमन में व्यवसाय शुरू करने के लिए स्थानीय व्यक्ति के साथ साझेदारी करना अनिवार्य है। हालांकि, यह साझेदारी अधिक दिनों तक नहीं चली और दोनों के बीच विवाद बढ़ने लगा। विवाद बढ़ने के बाद निमिशा ने तलाल के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराया। 2016 में उसे अरेस्ट किया गया लेकिन रिहा होने के बाद कथित तौर पर उसे फिर परेशान करता रहा।

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2017 में संबंध और खराब हुए

साल 2017 में दोनों के बीच पैसों को लेकर विवाद अधिक बढ़ गया। निमिशा के परिजन का आरोप है कि तलाल ने उनकी बेटी का पासपोर्ट भी अपने पास रख लिया था। आरोप है कि निमिशा ने तलाल महदी से अपना पासपोर्ट वापस पाने के लिए उसे बेहोशी की दवा का इंजेक्शन दे दिया। हालांकि, दवा ओवरडोज होने की वजह से उसकी मौत हो गई। इसके बाद निमिशा ने डर के मारे यमन से भागने की कोशिश की लेकिन उसे अरेस्ट कर लिया गया। 2018 में कोर्ट ने निमिशा को हत्यारोपी करार दिया।

2020 में मौत की सजा

निमिशा को 2020 में सना की एक ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ निमिशा ने अपील की लेकिन यमन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने नवंबर 2023 में फैसले को बरकरार रखा। हालांकि, इसने ब्लड मनी का विकल्प खुला रखा। उन्होंने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ यमिनी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन 2023 में उनकी अपील खारिज कर दी गई।

सजा मिलने के बाद क्या-क्या हुआ?

निमिशा को सजा सुनाए जाने के बाद केरल में रह रहा उनका परिवार परेशान है। वह लगातार उनकी मदद के लिए भारत सरकार और इंटरनेशनल संगठनों से गुहार लगा रहा। वकील सुभाष चंद्रन ने बताया कि निमिषा की मां कोच्चि में रहती हैं। वह कोच्चि में एक परिवार के लिए घरेलू सहायिका के रूप में काम करती हैं, ने केस लड़ने के लिए अपनी संपत्ति बेच दी। कई अन्य लोगों ने भी केस लड़ने के लिए मदद की। लेकिन कोई हल नहीं निकला।

नेगोशिएटर की फीस को लेकर विवाद...

दरअसल, पीड़ित परिवार से ब्लडमनी को लेकर समझौता के लिए विदेश मंत्रालय ने एक वकील तय किया। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय दूतावास द्वारा नियुक्त वकील अब्दुल्ला अमीर द्वारा 20,000 डॉलर (लगभग 16.6 लाख रुपये) का पेमेंट प्री-नेगोशिएशन फीस के तौर पर दिया है। लेकिन फिर से बातचीत शुरू करने के लिए वकील ने दो इंस्टालमेंट में कुल 40,000 डॉलर की फीस मांगी है। इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल ने क्राउडफंडिंग से फीस की पहली किस्त तो जुटा ली लेकिन अब क्राउडफंडिंग करने वाले धन के उपयोग की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की मांग कर रहे जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया। उधर, बातचीत पूरी तरह से ठप हो गई।

क्या हो सकता है?

कानून के जानकार बताते हैं कि निमिशा के केस में उसे माफी ब्लडमनी देने पर ही मिल सकती है। परिवार या किसी दूसरे तरीके से ब्लडमनी की रकम अगर चुकाया जाता है और तलाल का परिवार उस पर राजी हो जाता है तो निमिशा की जान बचायी जा सकती है। ऐसे में अब पूरी दुनिया की निगाहें, भारत सरकार के एक्शन और अन्य सामाजिक संगठनों के रूख व भविष्य में उठाए जाने वाले कदम पर है।

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