
नई दिल्ली। इंडिगो पिछले छह दिनों से ऐसे संकट से गुजर रही है, जैसा भारत के एविएशन इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया। दिल्ली और मुंबई में 220 से ज्यादा फ्लाइट्स कैंसिल हो गईं। हजारों यात्री फंस गए। DGCA ने इंडिगो को कारण बताओ नोटिस भेज दिया। आखिर छह दिनों में भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन कैसे लड़खड़ा गई? इस पूरे मामले की गहराई को समझने के लिए एविएशन एक्सपर्ट ग्रुप कैप्टन एमजे ऑगस्टीन विनोद (रिटायर्ड) ने जो बातें बताईं, वे चौंकाने वाली हैं। यह संकट किसी एक गलती या एक फैसले का नतीजा नहीं था। यह कई छोटी-छोटी समस्याओं के एक जगह इकट्ठा होने से हुआ विस्फोट था। यह एक क्लासिक Domino Effect था, जहां छोटे-छोटे छेद एक लाइन में आ गए और बड़ा हादसा हो गया।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि इंडिगो ने यह संकट खुद पैदा किया, ताकि नए FDTL नियमों को पीछे हटाया जा सके। लेकिन विनोद इस थ्योरी को साफ़ खारिज करते हैं। उनका कहना है कि कोई भी बड़ी कंपनी खुद को इतना बड़ा नुकसान कभी नहीं पहुंचाएगी। यह तार्किक रूप से असंभव है। इंडिगो को इस संकट में जितना फाइनेंशियल नुकसान हुआ, वह किसी भी संभावित फायदे से कई गुना ज्यादा है। यानी यह जानबूझकर नहीं हुआ-यह गलती से, लेकिन कई कारणों के साथ हुआ।
इंडिगो इतनी बड़ी एयरलाइन है कि उसके किसी भी ऑपरेशन में छोटी सी गड़बड़ी भी पूरे देश की उड़ानों को हिला सकती है। लेकिन इस बार गड़बड़ी “छोटी” नहीं थी-यह एक सिस्टम फेलियर थी। एविएशन एक्सपर्ट और रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन एमजे ऑगस्टीन विनोद ने इस संकट की असली जड़ें बताईं और उनका विश्लेषण चौंकाने वाला है। उन्होंने साफ कहा: “यह कोई साज़िश या जानबूझकर किया फैसला नहीं था। यह सिस्टम में जमा होती छोटी-छोटी गलतियों का अचानक फट जाना था।”
जी हां। इसी को विनोद डोमिनो इफेक्ट कहते हैं। उन्होंने एक अहम कारण बताया जिसके बारे में बहुत लोग नहीं जानते कि इंडिगो और एयर इंडिया दोनों ने अपने कई एयरबस विमानों में हाल ही में एयरबस ELAC सॉफ़्टवेयर अपग्रेड किया था। विनोद का सवाल था: “क्या इस अपग्रेड से कोई ऑपरेशनल शॉक पड़ा? अगर पड़ा तो क्या सिस्टम उसे संभालने लायक मजबूत था?” उनका कहना है कि एयरलाइंस का सिस्टम बहुत टाइट शेड्यूल पर चलता है। यानी हर पायलट मिनट-मिनट पर प्लान, हर फ्लाइट जस्ट-इन-टाइम, हर एयरक्राफ्ट लगातार चलते रहते हैं। ऐसे में एक छोटी गड़बड़ी भी बहुत तेजी से पूरी एयरलाइन में फैल जाती है। और वही हुआ। इसे वे एविएशन का स्विस-चीज़ फेलियर मॉडल बताते हैं-छोटे-छोटे छेद (गलतियां) एक लाइन में आते हैं, और सिस्टम ढह जाता है।
भारत का एविएशन पिछले 10 साल से तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन पायलटों, खासकर कैप्टन, की कमी हमेशा रही है। विनोद बताते हैं कि एक कैप्टन बनने में 6–7 साल लगते हैं। कैप्टन का ट्रेनिंग प्रोग्राम 10–12 महीने होता है। फर्स्ट ऑफिसर से कैप्टन प्रमोशन आसान नहीं है। भारत में ट्रेनिंग सेंटर कम हैं। पायलटों का विदेश जाना तेज़ है यानी पायलट बनते जितने हैं, उससे ज्यादा हर साल विदेश जाते हैं। ये एयरलाइंस जैसे-एतिहाद, एमिरेट्स, कतर, लुफ्थांसा इनकी सैलरी भारत से लगभग 3 गुना है। विनोद कहते हैं कि “आप किसी को कैसे रोकेंगे? ज्यादा सैलरी देकर, लेकिन भारत में टिकट की कीमतें लिमिटेड हैं, इसलिए एयरलाइन ज्यादा पैसा नहीं दे सकती।” यह एक खतरनाक चक्र बन जाता है: कम पायलट → ज्यादा काम → थकान → FDTL नियम सख्त → और कम पायलट → ज्यादा कैंसिलेशन। इंडिगो ऐसे ही एक जाल में फंस गई।
DGCA ने पायलटों की थकान रोकने के लिए नए FDTL नियम लागू किए। ये दुनिया के नियमों के बराबर हैं। लेकिन क्या भारत का एविएशन सिस्टम इसके लिए तैयार था? विनोद कहते हैं कि “एक बड़े सिस्टम में छोटी-सी पॉलिसी भी बड़ा भूकंप ला सकती है।” इंडिगो भारत के 65% डोमेस्टिक पैसेंजर ले जाती है। इतने बड़े ऑपरेशन में कोई छोटा बदलाव भी बड़ा असर लाता है। नया FDTL लागू होते ही पहले से कम पायलट, बढ़ी थकान मॉनिटरिंग, बढ़ी छुट्टियां, सख्त शिफ्ट यानी शेड्यूल तुरंत बिगड़ गया।
विनोद बताते हैं कि “हमारे पास पायलट ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त सेंटर ही नहीं हैं। इसलिए हम कैडेट्स को अमेरिका, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका भेजते हैं।” यानी भारत अपनी ही जरूरी एविएशन बैकबोन को बाहरी देशों पर निर्भर रखता है। साथ ही भारत के कई एयरपोर्ट इतने छोटे हैं कि वे “शॉक एब्ज़ॉर्ब” नहीं कर सकते। उदाहरण के तौर पर यूरोप के बड़े एयरपोर्ट में कैपेसिटी इतनी होती है कि अतिरिक्त भीड़ बढ़ने पर भी सिस्टम नहीं टूटता। भारत में उल्टा है। थोड़ी भी भीड़-लाउंज फुल -रनवे ओवरलोड- ग्राउंड स्टाफ प्रेशर-कैस्केडिंग डिले।
यह हिस्सा चौंकाने वाला है। विनोद बताते हैं कि “DGCA आज भी उसी मैनपावर पर चल रहा है जो 30 साल पहले था।” एविएशन बढ़ता जा रहा है, लेकिन निगरानी करने वाली संस्था का स्टाफ वही है। इससे मॉनिटरिंग धीमी हो गई। इंस्पेक्शन कम हो गया। ट्रेनिंग अप्रूवल में देरी, एयरलाइन दबाव-सब बढ़ जाता है।
इंडिगो ने पीक सीजन के लिए फ्लाइट बढ़ाई थीं। पर तब उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि इतने पायलट अचानक नौकरी छोड़ देंगे। विनोद बताते हैं कि "पता कीजिए छह महीने में कितने पायलट एतिहाद और एमिरेट्स गए हैं-संख्या हैरान कर देगी।" यानी इंडिगो ने पुरानी उपलब्ध पायलट संख्या के हिसाब से प्लान बनाया था-लेकिन पायलट माइग्रेशन उनकी गणना से कहीं ज्यादा हुआ।
इंडिगो फंसी तो कुछ एयरलाइंस ने टिकट बहुत बढ़ा दिए। एक्स्ट्रा चार्ज महंगे किए। विनोद ने नाराज होकर कहा कि “यह आत्महत्या है… मुसीबत में भी मौका ढूंढना। भगवान सबको देख रहे हैं।” उन्होंने कहा कि किराए की लिमिट सिर्फ बेस किराए पर होती है, इसलिए कई एयरलाइंस फूड चार्ज, सीट चार्ज, एक्स्ट्रा बैगेज, कंवीनियंस फी सब महंगे कर देती हैं।
शॉर्ट में असली वजहें:
कहना मुश्किल है। विनोद का संकेत साफ है कि “यह सिर्फ एक एयरलाइन का संकट नहीं है, यह भारत के एविएशन सिस्टम का संकट है।” यानी सुधार पायलट ट्रेनिंग, एयरपोर्ट क्षमता, DGCA संसाधन, FDTL इम्प्लीमेंटेशन-इन सब में एकसाथ करना होगा। इंडिगो तो अपना सिस्टम रीबूट कर लेगी, लेकिन देश का एविएशन इंफ्रास्ट्रक्चर अभी भी पीछे है।