सिंधु जल संधि: पाकिस्तान के कहने पर विश्व बैंक ने नियुक्त किया मध्यस्थता अदालत, भारत ने कहा- नहीं कर सकते ऐसा

सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को लेकर पाकिस्तान के कहने पर विश्व बैंक ने मध्यस्थता अदालत नियुक्त किया है। इसपर भारत ने कहा है कि विश्व बैंक ऐसा नहीं कर सकता। विश्व बैंक भारत के लिए संधि की व्याख्या नहीं कर सकता।

नई दिल्ली। भारत ने जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए विश्व बैंक द्वारा लिए गए फैसले पर सवाल उठाए हैं। विश्व बैंक ने दो अलग-अलग प्रक्रियाओं के तहत मध्यस्थता अदालत और एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने का फैसला किया है। इसपर भारत ने कहा है कि विश्व बैंक ऐसा नहीं कर सकता।

पिछले सप्ताह भारत ने सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान को नोटिस जारी किया था। इसमें भारत ने विवादों से निपटने में इस्लामाबाद की हठधर्मिता को देखते हुए सिंधु जल संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की थी। पाकिस्तान ने भारत के किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर सवाल उठाए हैं।

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विदेश मंत्रालय ने कहा- विश्व बैंक नहीं कर सकता संधि की व्याख्या
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को कहा, “मुझे नहीं लगता कि वे (विश्व बैंक) हमारे लिए संधि की व्याख्या करने की स्थिति में हैं।” बता दें कि विश्व बैंक द्वारा किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत के अध्यक्ष की नियुक्ति की घोषणा की थी। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान को नोटिस भेजा था और कहा था कि भारत संधि में संशोधन करेगा।

भारत ने पाकिस्तान को भेजा है नोटिस
भारत को विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता अदालत की नियुक्ति पर निराश हुई है। अरिंदम बागची ने कहा कि भारत के सिंधु जल आयुक्त ने 25 जनवरी को संधी में संशोधन के संबंध में पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। इसका मकसद था कि पाकिस्तान संधि का उल्लंघन बंद करे। भारत ने उसे बातचीत के लिए अवसर दिया था। भारत ने पाकिस्तान से 90 दिनों के भीतर संधि के अनुच्छेद 12 (III) के तहत बातचीत शुरू करने के लिए एक उपयुक्त तिथि बताने का आह्वान किया था।

बागची ने कहा, "मुझे नहीं पता अभी तक पाकिस्तान की ओर से क्या प्रतिक्रिया आई है। मुझे इस मुद्दे पर विश्व बैंक के किसी प्रतिक्रिया या कमेंट की जानकारी भी नहीं है। मुझे नहीं लगता कि वे (विश्व बैंक) हमारे लिए संधि की व्याख्या करने की स्थिति में हैं। यह हमारे दोनों देशों के बीच एक संधि है और संधि के बारे में हमारा आकलन है कि इसमें श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण का प्रावधान है।"

क्या है मामला?
बता दें कि भारत से पाकिस्तान जाने वाली नदियों के पानी के बंटवारे के लिए 1960 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था। इसे सिंधु जल संधि नाम दिया गया। विश्व बैंक समझौते का हस्ताक्षरकर्ता है। समझौते के तहत सतलज, व्यास और रावी नदी का पानी भारत के हिस्से में है। भारत अपनी जरूरत के अनुसार इन तीनों नदियों के पानी का इस्तेमाल कर सकता है।

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वहीं, सिंधु, झेलम और चेनाब नदी का पानी पाकिस्तान के हिस्से में है। भारत खेती और घरेलू काम के लिए इनके पानी का इस्तेमाल कर सकता है। इसके साथ ही निश्चित मापदंडों के भीतर भारत इन नदियों पर हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट भी बना सकता है। इस प्रावधान के तहत भारत ने किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर काम किया है। पाकिस्तान की ओर से इसपर अड़ंगा लगाया जा रहा है। पाकिस्तान के आग्रह पर विश्व बैंक ने दोनों परियोजनाओं के लिए विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत नियुक्त करने का फैसला किया। यह भारत को मंजूर नहीं है।

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