आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम 1923
पुलिस और पुलिस स्टेशन से डरने की ज़रूरत नहीं है, यह बात कई बार खुद पुलिस के आला अधिकारियों ने कही है। यह सच है कि पुलिस से डरने की ज़रूरत नहीं है। क़ानून के सामने सभी बराबर हैं। पुलिस स्टेशन में भी फ़ोटो, वीडियो लिए जा सकते हैं। यह कोई अपराध नहीं है। यह हम नहीं कह रहे हैं.. अदालतें भी इस बात का उल्लेख कर चुकी हैं। इसके लिए अलग से क़ानून भी है। पहले भी ऐसे मामलों पर अदालतें फ़ैसले सुना चुकी हैं। आज भी न्यायपालिका इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम-1923 (Penalties and Prosecutions Under Official Secrets Act, 1923) के तहत पुलिस स्टेशनों में फ़ोटो, वीडियो लेना कोई अपराध नहीं है, बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है। इसलिए, क़ानूनी तौर पर, पुलिस स्टेशनों के अंदर पुलिसकर्मियों की वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति दी जानी चाहिए।
क्या पुलिस से बातचीत भी रिकॉर्ड की जा सकती है?
साथ ही, पुलिस स्टेशन में बातचीत को रिकॉर्ड भी किया जा सकता है। आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत पुलिस स्टेशन 'प्रतिबंधित क्षेत्र' नहीं है, इसलिए पुलिस स्टेशन के अंदर वीडियो रिकॉर्डिंग क़ानूनन अपराध नहीं है। वहाँ पुलिस से की जाने वाली बातचीत को भी रिकॉर्ड किया जा सकता है। हालाँकि, यह ध्यान रखना होगा कि यह उनके कर्तव्य में बाधा डालने वाला न हो।
अगर पुलिस गोपनीयता का अधिकार उठाए तो..
यहाँ पुलिस अपनी निजता के अधिकार का भी हवाला दे सकती है। यानी भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हमें जीने का अधिकार और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसमें निजता का अधिकार भी शामिल है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि जब कोई पुलिस अधिकारी अपनी निजता का आनंद ले रहा हो, तो लोक सेवक के रूप में ड्यूटी पर रहते हुए उसके कार्यों को ऐसे अधिकार द्वारा संरक्षित नहीं किया जाता है। इसलिए किसी पुलिस अधिकारी की वीडियो रिकॉर्डिंग करना अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
पुलिस स्टेशन में वीडियो- बॉम्बे हाईकोर्ट का सनसनीखेज फैसला
आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (Penalties and Prosecutions Under Official Secrets Act, 1923) के तहत पुलिस स्टेशन को 'प्रतिबंधित क्षेत्र' के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। इसी बात का उल्लेख करते हुए 2018 में दो आपसी विवादों को सुलझाने के लिए वर्धा में हुई बातचीत का गुप्त रूप से वीडियो बनाने वाले एक व्यक्ति पर वर्धा में 'जासूसी' का आपराधिक मामला बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा सुनाए गए इस मामले के विवरण पर गौर करें तो.. जस्टिस मनीष पिताले, जस्टिस वाल्मीकि की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों की सूची में पुलिस स्टेशन शामिल नहीं है। इसलिए वहां वीडियो बनाना कोई अपराध नहीं है।