Exclusive: रूस सिर्फ 5 दिन में चांद पर पहुंचा, हमारे चंद्रयान-3 को 45 दिन क्यों लगे? जानें इसरो चीफ का जवाब

इसरो का चंद्रयान-3 पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है। इसकी सबसे बड़ी कामयाबी यह है रसियन स्पेसक्राफ्ट जहां क्रैश हो गया, वहीं चंद्रयान 3 ने सफलता का नया कीर्तिमान स्थापित किया।

 

ISRO Chief Exclusive Interview. चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत का पूरे विश्व में डंका बज रहा है। इस बड़ी उपलब्धि के बाद इसरो कई और प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। इन्हीं बातों को लेकर एशियानेेट न्यूज नेटवर्क ने इसरो चेयरमैन से विशेष बातचीत की है। चंद्रयान-3 मिशन को लेकर Asianet News Network के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन राजेश कालरा ने ISRO चेयरमैन एस सोमनाथ से ISRO सेंटर में विस्तार बातचीत की। इस दौरान वो चीजें निकलकर आईं, जिनके बारे में लोगों को अब तक नहीं पता था।

क्या है लूना-25 बनाम चंद्रयान-3 की स्टोरी

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इसमें रॉकेट का अंतर है। हमने भी रॉकेट को यूज किया और रूस ने ऐसे रॉकेट का इस्तेमाल किया, जो डायरेक्ट मून तक जाता है। उनके रॉकेट का वजन काफी ज्यादा था, जबकि हमने हल्के रॉकेट का प्रयोग किया। लूना-25 के अपस्टेजेस पावरफुल थे। यही वजह थी वह 5 दिन में ही चंद्रमा पर पहुंच गया। जब आपका रॉकेट पावरफुल नहीं होता है तो हमें सैटेलाइट पावरफुल बनाना होता है। प्रोपल्शन पावर वाला होता है। इसमें प्रोपल्शन होता है जो लूनार तक पहुंचाता है। लेकिन ये भी एक झटके में नहीं होता है।

क्यों देर से पहुंचा चंद्रयान-3

हमें मैनुवर को सही मैनर और वेलोसिटी के साथ आगे ले जाना होता है। पृथ्वी के चारों तरफ जो मूवमेंट होती है, प्रोपल्शन एनर्जी क्रिएट करता है और अलग-अलग आर्बिट को पार करता है। लास्ट ऑर्बिट में हम फायर करते हैं और स्पीड बढ़ाते हैं ताकि वह सर्कल जल्दी पूरा हो और स्पेस क्राफ्ट चंद्रमा पर पहुंचे। इस प्रॉसेस में ज्यादा समय लगता है। चंद्रमा पर पहुंचने के बाद भी समय लगता है। जैसे कि चंद्रयान-3 में दो पार्ट थे। जैसे कि प्रोपल्शन मॉड्यूल जो कि लैंडर को चंद्रमा तक ले गया। हमने ऐसा चंद्रयान-1, 2 और मंगलयान तक किया। यही प्रक्रिया चंद्रयान-3 के लिए भी की गई।

चंद्रयान 3 मिशन की सफलता

14 जुलाई 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 मिशन देश के सबसे भारी रॉकेट GSLV लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM-3) से लॉन्च किया गया।

- करीब 42 दिनों की यात्रा के बाद 23 अगस्त को विक्रम लैंडर ने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की। इस दौरान PM मोदी दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से वचुर्अल माध्यम के जरिए ISRO से जुड़े और पूरी प्रॉसेस देखी।

- इसके बाद विक्रम लैंडर के साथ गए प्रज्ञान रोवर ने चांद की सतह पर घूमकर पेलोड्स के जरिए नई जगहों की जांच-पड़ताल की।

- चांद की तस्वीरें भेजने और जांच-पड़ताल के बाद इसरो ने 2 सितंबर को प्रज्ञान रोवर को स्लीप मोड में डाला।

- हालांकि, 22 सितंबर को चांद पर एक बार फिर सूर्य की रोशनी पड़ने के बाद लैंडर और रोवर के दोबारा एक्टिव होने का इंतजार है।

- बता दें कि भारत का चंद्रयान-3 मिशन दुनिया का सबसे सस्ता मून मिशन है। इस पर महज 615 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।

WATCH इसरो चीफ एस. सोमनाथ का सुपर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

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