लद्दाख में चीनी सेना ने की हिमाकत तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जानें क्या कहकर सेना को दिया था फ्री हैंड

31 अगस्त 2020 को चीनी सैनिक टैंक के साथ एलएसी पर आगे बढ़ रहे थे। ऐसे में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने उन्होंने फोन किया था। रक्षा में ने 'जो उचित समझो वो करो' कहकर कार्रवाई के लिए खुली छूट दी थी।

Vivek Kumar | Published : Dec 19, 2023 6:35 AM IST / Updated: Dec 19 2023, 12:26 PM IST

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार दुश्मन से देश की रक्षा कर रही सेना को मुकाबले में फ्री हैंड देती है। इसकी एक बानगी पूर्व सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे की किताब में दी गई है। 31 अगस्त 2020 को चीनी पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने लद्दाख में हिमाकत की थी। रात में स्थिति तनावपूर्ण थी। उसी वक्त तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को फोन किया था। उन्होंने बताया था कि चीन पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर रेचिन ला पर्वत दर्रे में टैंक और सैनिकों को ला रहा है। नरवणे ने रक्षा मंत्री से पूछा कि इसके जवाब में हमें क्या करना चाहिए। इसपर रक्षा मंत्री ने जवाब दिया, 'जो उचित समझो वो करो'।

एमएम नरवणे ने अपने संस्मरण 'फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' में इसका जिक्र किया है। नरवणे ने बताया है कि उस रात रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के बीच फोन पर क्या बातचीत हुई थी। नरवणे ने लिखा है कि रक्षा मंत्री से बात करने के बाद उनके दिमाग में अलग-अलग सैकड़ों विचार आए थे। नरवणे ने लिखा, "मैंने आरएम (रक्षा मंत्री) को स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि वह मुझसे संपर्क करेंगे। रक्षा मंत्री ने लगभग 22.30 बजे तक बात की।"

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नरवणे ने लिखा, "रक्षा मंत्री ने कहा कि उन्होंने पीएम से बात की थी। यह पूरी तरह से एक सैन्य निर्णय था। उन्होंने कहा 'जो उचित समझो वो करो'। जिम्मेदारी अब पूरी तरह से मुझ पर थी। मैंने एक गहरी सांस ली और कुछ मिनटों के लिए चुपचाप बैठा रहा। दीवार घड़ी की टिक-टिक को छोड़कर सब कुछ शांत था। मैं आर्मी हाउस में था। एक दीवार पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का नक्शा था, दूसरी दीवार पर पूर्वी कमान का। जैसे ही मैंने उन्हें देखा, मैं प्रत्येक इकाई के स्थान और गठन की कल्पना कर सकता था। हम हर तरह से तैयार थे, लेकिन क्या मैं वास्तव में युद्ध शुरू करना चाहता था?"

जीवन और मौत का सवाल था फैसला लेना

नरवणे ने लिखा, "कोरोना महामारी के कारण देश बुरी स्थिति में था। अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही थी, ग्लोबल सप्लाई चेन टूट गई थी। सवाल था कि क्या हम इन परिस्थितियों में लंबे समय तक हथियारों के पूर्जे की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर पाएंगे? दुनिया के कौन से देश हमारे समर्थक हैं। चीन और पाकिस्तान से मिलकर खतरा होता है तो क्या होगा? मेरे दिमाग में सैकड़ों अलग-अलग विचार कौंध गए।"

उन्होंने लिखा, "यह कोई वार गेम नहीं था जो आर्मी वॉर कॉलेज के बालू के मॉडल रूम में खेला जा रहा था। यह जीवन और मौत का सवाल था।" नरवणे ने कहा कि कुछ देर शांति से विचार करने के बाद उन्होंने उत्तरी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी को फोन किया था।

पहले गोली नहीं चलाना चाहती थी भारतीय सेना

वाईके जोशी से बातचीत में नरवणे ने कहा, "हम गोली चलाने वाले पहले व्यक्ति नहीं हो सकते। इससे चीनियों को आगे बढ़ने और हमें आक्रामक बताने का बहाना मिल जाएगा। यहां तक कि मुखपारी (कैलाश रेंज पर) में भी पिछले दिन में पीएलए ने सबसे पहले गोलीबारी की थी। पीएलए द्वारा दो राउंड और हमारे द्वारा तीन राउंड होने के कारण यह मीडिया के ध्यान से बच गया था।"

चीनी सेना के सामने भेज दिए टैंक

नरवणे का मानना था कि सेना को यही रुख बरकरार रखना चाहिए। उन्होंने लिखा, "मैंने उनसे (वाईके जोशी) कहा कि हमारे टैंकों की एक टुकड़ी को दर्रे की आगे की ढलानों पर ले जाएं और उनकी गन नीचे की ओर कर दें ताकि पीएलए हमारी गनों की नली को घूरती रहे।" सेना प्रमुख से आदेश मिलते ही तुरंत सैनिकों ने टैंकों को तैनात कर दिया था। पीएलए टैंक तक तक पहाड़ी के शिखर पर पहुंचे से कुछ सौ मीटर पहले थे। भारतीय टैंकों को देखकर वे अपने रास्ते पर ही रुक गए।

यह भी पढ़ें- गलवान में भारत-चीन झड़प पर जनरल नरवणे ने लिखा- शी जिनपिंग नहीं भूलेंगे वो दिन

नरवणे ने लिखा, "उनके हल्के टैंक हमारे मध्यम आकार के टैंकों का मुकाबला नहीं कर सकते थे।" पीएलए ने 29-30 अगस्त की मध्यरात्रि को मोल्दो से चुटी चांगला के क्षेत्र में पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट की ओर सैनिकों को भेज दिया था। शाम तक वे कैलाश रेंज के क्षेत्र में कुछ सैनिकों को आगे ले गए। 30 तारीख की शाम तक भारतीय सेना पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट के साथ-साथ कैलाश रेंज पर भी मजबूत स्थिति में थी।

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