सार
पू्र्व सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने अपने संस्मरण में गलवान में हुए संघर्ष (India China Galwan clash) का जिक्र करते हुए लिखा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस दिन को नहीं भूलेंगे।
नई दिल्ली। 28वें सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने अपने संस्मरण में 2020 में गलवान में भारत और चीन की सेना के बीच हुए संघर्ष (India China Galwan clash) का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि चीन नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों को धमकाता है। उसने ऐसा ही भारत के साथ किया। भारत और भारतीय सेना के लिए जरूरी हो गया था कि वह दुनिया को दिखाए कि "बहुत हो गया"।
अपने संस्मरण 'फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' में जनरल नरवणे ने लिखा कि 15 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में झड़प हुई थी। इस घटना में बीस भारतीय सैनिक और अज्ञात संख्या में चीनी सैनिक मारे गए। रात के समय हुई झड़प से दोनों पड़ोसी देशों के बीच सीमा पर तनाव बढ़ गया था।
नेपाल और भूटान जैसे छोटे पड़ोसियों को डरा रहा चीन
नरवणे ने चीन के बारे में लिखा, "वे हर जगह भेड़िया-योद्धा कूटनीति और सलामी-स्लाइसिंग रणनीति पर चल रहे थे। नेपाल और भूटान जैसे छोटे पड़ोसियों को डरा रहे थे। दक्षिण चीन सागर में अपने दावे बढ़ा रहे थे। उन्हें इसकी कोई कीमत (विशेषकर मानव जीवन के संबंध में) नहीं चुकानी पड़ी थी। भारत और भारतीय सेना को दुनिया को दिखाना पड़ा कि अब बहुत हो गया। हमें पड़ोस के गुंडे को चुनौती देनी पड़ी।"
अपने संस्मरण में नरवणे ने गलवान घाटी की घटना से पहले और बाद में भारत-चीन टकराव पर विस्तार से लिखा है। उन्होंने बताया है कि चीनी कार्रवाई के खिलाफ भारत ने किस तरह प्रतिक्रिया दी। LAC (Line of Actual Control) पर चीन को जवाब देने के लिए सेना ने किस तरह की तैयारी की थी।
शी जिनपिंग नहीं भूलेंगे 16 जून का सबक
जनरल नरवणे ने लिखा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 16 जून को मिले सबक को कभी नहीं भूलेंगे। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को लड़ाई में दो दशकों में पहली बार बड़ी संख्या में जवानों की मौत का सामना करना पड़ा था। 16 जून को शी जिनपिंग का जन्मदिन है। यह ऐसा दिन नहीं है जिसे वह जल्द भूल नहीं पाएंगे। जनरल नरवणे ने लिखा कि गलवान झड़प उनके पूरे करियर के "सबसे दुखद दिनों में से एक" थी। जनरल नरवणे 31 दिसंबर 2019 से 30 अप्रैल, 2022 तक सेना प्रमुख रहे।
गलवान घाटी में क्यों हुआ संघर्ष?
नरवणे के अनुसार, गलवान घाटी में चीनी सेना ने पेट्रोलिंग पॉइंट 14 (पीपी-14) में लगाए गए दो टेंटों को हटाने से इनकार कर दिया। इसके चलते संघर्ष हुआ। उनके इनकार के बाद भारतीय सेना ने भी उसी सामान्य क्षेत्र में अपने तंबू लगाने का फैसला किया। विवाद मई 2020 में शुरू हुआ था। पीपी-15 और पीपी-17ए सहित अन्य स्थानों पर फ्लैग-लेवल की बैठकें हो रहीं थीं। सैनिक सहमत दूरी पर पीछे हट गए थे, जिससे हिंसक फेस-ऑफ की संभावना कम हो गई थी।
पीपी-14 पर हमने चीनी सेना से अपने तंबू हटाने के लिए कहा, वे अपना रुख बदलते रहे। वे कुछ और समय मांग रहे थे। इस बीच चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर पथराव कर दिया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि उन तंबुओं को हटाने का उनका कोई इरादा नहीं था। इसका मुकाबला करने के लिए हमने उसी सामान्य क्षेत्र में अपने तंबू लगाने का फैसला किया।
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जब भारतीय सेना के जवान तंबू लगाने गए तो चीनी सैनिकों ने हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त की। 16 बिहार के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू मामले को शांत करने के प्रयास के लिए सैनिकों की एक छोटी पार्टी के साथ गए, लेकिन चीनी सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया। अंधेरा होने पर दोनों पक्ष अतिरिक्त सैनिकों को लेकर वहां पहुंचे और रात भर मुठभेड़ जारी रही।
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