दिग्विजय का हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप, सिंधिया की बगावत, विधायकों का इस्तीफा...17 दिन में गिरी कमलनाथ सरकार

मध्यप्रदेश में 15 महीने पहले बनी कमलनाथ सरकार महज 17 दिन में ढह गई। सरकार पर 4 मार्च से संकट के बादल मंडराने शुरू हो गए थे। सबसे पहले दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया। जिसके बाद सिंधिया और उनके विधायकों ने बगावत करते हुए इस्तीफा दिया। विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई और सीएम को अपना इस्तीफा देना पड़ा। 
 

भोपाल. मध्यप्रदेश की राजनीति में जारी उठापटक अब थम गई है। सीएम कमलनाथ ने फ्लोर टेस्ट कराने से पहले ही उन्होंने राज्यपाल को इस्तीफा देने का निर्णय लिया है। जिसके बाद से अब संख्या बल के आधार पर भाजपा बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है। जिसके बाद प्रदेश में अब भाजपा सरकार की वापसी का रास्ता साफ हो गया है। ऐसे में हम आपको बताते हैं कि मध्यप्रदेश की सियासी में जारी उठापटक कब और कहां से शुरू हुई। कमलनाथ सरकार पर 4 मार्च से संकट के बादल मंडराने शुरू हुए थे जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया। 

जानिए कब क्या-क्या हुआ? 

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4 मार्च-  कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, भाजपा उनके विधायकों को दिल्ली ले जा रही है। कांग्रेस ने दावा किया कि उनके 6 विधायक, बसपा के 2 और एक निर्दलीय विधायक को गुरुग्राम के एक होटल में बंधक बनाया गया है।

5 मार्च- विधायकों के गुरुग्राम ले जाए जाने की खबर के बाद कमलनाथ कैबिनेट के मंत्री जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह भोपाल पहुंचे। जहां से 6 विधायक वापस लौट आएं। इनमें 2 बसपा और 1 सपा का विधायक भी शामिल था। हालांकि, चार विधायक फिर भी लापता रहे, उनमें से एक ने हरदीप सिंह डंग ने इस्तीफा भी दे दिया।

9 मार्च- मध्यप्रदेश में 9 मार्च को ड्रामा और तेज तब हो गया, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के 22 कांग्रेसी विधायक अचानक भोपाल से बेंगलुरु चले गए। इन 22 विधायकों में से 6 कमलनाथ सरकार में मंत्री भी थे। 

10 मार्च- सिंधिया खेमे के विधायकों के बगावत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिया। जिसके बाद कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल गहरा गए। जब 22 विधायकों ने अपना त्याग पत्र राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष को भेजा। 

11 मार्च- ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 11 मार्च को भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। जहां पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। 

12 मार्च- बागी विधायकों को मनाने के लिए मंत्री जीतू पटवारी व अन्य कांग्रेसी नेता बेंगलुरु पहुंचे। जहां वो विधायकों से मिलने रामदा होटल पहुंचे। लेकिन पुलिस ने विधायकों से मिलने नहीं दिया। जिसके बाद पुलिस और जीतू पटवारी के बीच झड़प हुई थी। 

14 मार्च- सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफे मंजूर
शनिवार शाम विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापित ने सिंधिया समर्थक छह पूर्व मंत्रियों के इस्तीफे मंजूर कर लिए। पहले मंत्री पद गया और अब ये 6 विधायक भी नहीं रह गए। इसके बाद मध्य रात्रि राज्यपाल लालजी टंडन ने फ्लोर टेस्ट की तारीख तय कर दी। उन्होंने बजट सत्र के पहले दिन 16 मार्च को ही फ्लोर टेस्ट के निर्देश दिए।

16 मार्च- विधानसभा में सोमवार को गवर्नर ने एक मिनट में अभिभाषण का सिर्फ आखिरी पैरा पढ़ा और इसके 15 मिनट बाद ही अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कोरोनावायरस का हवाला देते हुए 26 मार्च तक के लिए सदन स्थगित कर दिया। फ्लोर टेस्ट टल गया। शाम करीब 4 बजे राज्यपाल लालजी टंडन ने कमलनाथ को पत्र लिखा। इसमें उन्हें 24 घंटे का अल्टिमेटम देते हुए 17 मार्च को ही फ्लोर टेस्ट कराने को कहा गया। उधर, पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और 10 भाजपा विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 12 घंटे में फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की।

17 मार्च- प्रदेश सरकार और विपक्ष के बीच जारी सियासी युद्ध मंगलवार को और दिलचस्प हो गया। सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। कोर्ट ने विपक्ष की 12 घंटे में फ्लोर टेस्ट कराने की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति और सीएम कमलनाथ को नोटिस जारी कर बुधवार सुबह जवाब देने के निर्देश दिए। इसके बाद कमलनाथ का राज्यपाल लालजी टंडन को लिखा दूसरा पत्र सामने आया। इसमें सीएम ने सोमवार रात लिखे गए पहले पत्र पर खेद व्यक्त करते हुए राज्यपाल को जवाब दिया और लिखा- आपने कहा कि 17 मार्च तक फ्लोर टेस्ट नहीं कराने पर यह माना जाएगा कि मुझे वास्तव में बहुमत नहीं है, आपकी यह बात आधारहीन और असंवैधानिक है। इससे पहले शिवराज ने राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार के अल्पमत में होने की बात रखी।

18 मार्च- दिग्विजय सिंह 16 बागी विधायकों से मिलने के लिए बेंगलुरु पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रिजॉर्ट के बाहर ही रोक लिया। नाराज दिग्वजिय वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस ने उन्हें व कांग्रेस के अन्य नेताओं को करीब सवा घंटे तक हिरासत में रखा। इसके बाद वह भूख हड़ताल पर बैठ गए। बागियों से मुलाकात के लिए उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगाई, जो खारिज हो गई।

19 मार्च- सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए फैसले से मध्य प्रदेश की सियासत में 17 दिन से मचे घमासान के थमने के संकेत मिले। सुबह 10.30 बजे से शाम 6.08 बजे तक तीन चरणों में जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने सुनवाई कर स्पीकर को 20 मार्च की शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश दिए। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग न हो, इसके लिए फ्लोर टेस्ट कराना बहुत जरूरी है।

मध्यप्रदेश में क्या है स्थिति?

मध्य प्रदेश में कुल विधानसभा सीटें- 230
दो विधायकों को निधन के बाद यह संख्या- 228
22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर
अब संख्या- 206
बहुमत के लिए चाहिए-104
भाजपा के पास- 107
कांग्रेस के पास- 99 (4- निर्दलीय, 2- बसपा, 1- सपा)

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