कर्नाटक हाईकोर्ट ने रद्द किया ऑनलाइन गेम्स को बैन करने करने वाला कानून, जुए के खिलाफ कानून बनाने की छूट

5 अक्टूबर, 2021 को किए गए संशोधन के तहत उन खेलों में दांव लगाने या सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसमें पहले या बाद में भुगतान किए गए पैसे के रूप में टोकन जारी किए जाते हैं। इस प्रावधान में किसी भी खेल में वर्चुअल करंसी और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन पर भी प्रतिबंध लगाया गया था। 

बेंगलुरू। कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों को रद्द कर दिया। इनके तहत ऑनलाइन गेम और सट्टेबाजी को प्रतिबंधित करने वाले प्रावधानों को भी रद्द किया गया है। चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाया। यह मामला ऑनलाइन गेम्स के खिलाफ बनाए गए कर्नाटक सरकार के कानून को लेकर कोर्ट पहुंचा था। कोर्ट ने इस मामले में ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन और अन्य याचिकाकर्ताओं को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम के प्रावधान संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं और इसे रद्द कर दिया गया है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि पूरे एक्ट को खत्म नहीं किया गया है, बल्कि केवल उल्लंघन करने वाले प्रावधानों को खत्म किया गया है। बेंच ने स्पष्ट किया कि इस आदेश से जुआ के खिलाफ संविधान के अनुरूप नया कानून लाने वाले सरकार के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 

क्या है मामला 
5 अक्टूबर, 2021 को किए गए संशोधन के तहत उन खेलों में दांव लगाने या सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसमें पहले या बाद में भुगतान किए गए पैसे के रूप में टोकन जारी किए जाते हैं। इस प्रावधान में किसी भी खेल में वर्चुअल करंसी और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन पर भी प्रतिबंध लगाया गया था। संशोधन अधिनियम के तहत उल्लंघन के लिए अधिकतम सजा तीन साल की कैद और ₹1 लाख तक का जुर्माना किया गया था। 

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याचिकाकर्ताओं के तर्क
अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं में दावा किया गया है कि कौशल वाले वे खेल जिनमें पैसे लगाने का जोखिम शामिल हो, उन्हें खेलने से नहीं रोका जा सकता। राज्य सरकार का अधिनियम शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित फैसले के विपरीत और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी), 21 और 301 का उल्लंघन था। संवैधानिक न्यायालयों ने बार-बार यह माना है कि कौशल के खेल (पैसे को जोखिम में डालना या नहीं) दांव लगाने या सट्टेबाजी की राशि नहीं हैं। इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षित हैं। 

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राज्य का तर्क, दूसरे के प्रदर्शन पर आपका क्या कौशल 
दूसरी ओर, राज्य सरकार ने महाधिवक्ता प्रभुलिंग के नवदगी के माध्यम से तर्क दिया कि इस तरह के खेल के लिए किसी महान कौशल की आवश्यकता नहीं होती है और वास्तव में यह मुख्य रूप से मौके का खेल है। उन्होंने कहा कि आप खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर पैसा लगा रहे हैं, जिस पर आपकी कोई भूमिका या नियंत्रण नहीं है। उन्होंने पूछा कि यह कौशल का खेल कैसे माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के पास इसका कोई ठोस कारण नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने उनकी दलीलों को दरकिनार कर दिया। 

कौशल के खेल पर प्रतिबंध का अधिकार नहीं 
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि गेम ऑफ चांस और गेम ऑफ स्किल में अंतर है। उन्होंने कहा - केवल गेम ऑफ चांस को राज्य के अधिकारियों द्वारा प्रतिबंधित करने के बिंदु तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसके विपरीत, राज्य सरकारों के पास कौशल के खेल पर प्रतिबंध लगाने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह भेद वर्षों से अस्तित्व में है।

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सुप्रीम कोर्ट ने दी है ऐसे खेलों की अनुमति
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि संशोधन अधिनियम का उद्देश्य मौका और जुए के खेल को रोकना है। हालांकि, उस प्रक्रिया में कौशल के खेल पर रोक लगाना मनमाना है। इस मामले में विधायिका सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों से आगे निकल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कौशल के खेल की अनुमति दी है। उन्होंने कहा कि अगर मैं ऑनलाइन शतरंज का खेल खेल रहा हूं और हम कहते हैं कि विजेता को एक राशि मिलेगी तो इस कानून के हिसाब से यह एक अपराध होगा। अधिनियम उस खेल पर भी प्रतिबंध लगाते हैं जो जुआ नहीं हैं। 

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ऑनलाइन गेम्स में खिलाड़ी व्यक्तिगत तौर पर खेल रहे
ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी आर्यमा सुंदरम ने तर्क दिया - मेरे सभी सदस्य थर्ड पार्टी व्यूअरशिप की पेशकश नहीं करते हैं। ये ऑनलाइन गेम केवल वास्तविक खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध हैं। वह (खिलाड़ी) किसी और के कौशल पर दांव नहीं लगा रहे हैं।खिलाड़ी को व्यक्तिगत रूप से एक खेल में भाग लेना होता है, जो कौशल का खेल है। फिर उस पर दांव लगाना है। सवाल यह है कि क्या यह जुआ होगा और संविधान की सूची 2 की प्रविष्टि 34 के अंतर्गत आता है।

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