Hijab Row : हाईकोर्ट में एजी बोले- साबित नहीं कर सकते कि हिजाब धर्म की अनिवार्य प्रथा का हिस्सा, कल फिर सुनवाई

Hijab Ban Hearing in Karnataka High court : कर्नाटक में हिजाब बैन के मुद्दे को लेकर सोमवार को फिर सुनवाई हुई। कोर्ट में राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देकर बताया कि क्यों, हिजाब को अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं माना जा सकता। ढाई घंटे से अधिक चली दलीलों के बाद कोर्ट कल तक के लिए स्थगित हो गई। कल दोपहर फिर मामले की सुनवाई होगी। 

(Hijab Ban hearing in Karnataka High court) कर्नाटक हाईकोर्ट में सोमवार को भी हिजाब बैन के मुद्दे को लेकर सुनवाई जारी रही। इस दौरान महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी (Ag Prabhuling navadgi) ने कोर्ट में सबरीमाला (Sabrimala) समेत कई मामलों का जिक्र किया। उन्होंने अदालत को बताया कि किस आधार पर हिजाब को धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं माना जा सकता है। महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के पास यह साबित करने का कोई तर्क नहीं है कि हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा है। 

कुरान के हवाले से दिए तर्क भी SC में हो चुके खारिज 
याचिकाकर्ताओं ने पिछली सुनवाई में कुरान का हवाला देकर हिजाब को इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा बताया था। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा था कि हिजाब को अनुमति न देना कुरान पर प्रतिबंध लगाने जैसा है। हाईकोर्ट ने उस वक्त भी छात्राओं के वकील से कहा था कि  दिखाएं, ऐसा कुरान में कहां लिखा है। सोमवार की सोमवार को सुनवाई के दौरान एजी नवदगी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कुरान की बात की थी, मैं उनके उस तर्क का भी जवाब दूंगा। नवदगी ने कोर्ट से छात्राओं की याचिका को पुराने फैसलों के आधाार पर विशेष तौर पर सबरीमाला केस में आए फैसले के आधार पर जांच करने का अनुरोध किया। 

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सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों में कुरान के तर्क नहीं माने 

महाधिवक्ता ने कहा कि पहले भी कई मामलों में कुरान का हवाला दिया गया है, लेकिन मैं चार ऐसे मामले बता रहा हूं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने कुरान के दिए गए हवालों को नकार दिया है। 

1- पहला मामला 1959 में कुरैशी नामक एक शख्स ने कुरान का हवाला देते हुए कहा था कि जानवरों की कुर्बानी अनिवार्य धार्मिक प्रथा है। कोर्ट ने इसे नकारा।

2- दूसरा मामला हरियाणा के जावेद ने कहा कि इस्लाम में कई शादियों की अनुमति है। इसे चुनौती देने वाले कानून को खत्म करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे नहीं माना। दरअसल, हरियाणा सरकार ने दो शादी करने वालों को चुनाव न लड़ने देने का कानून बनाया था। जावेद ने इसे कोर्ट में चुनौती दी थी। 

3- तीसरा इस्माइल फारुकी मामला, जहां सरकार ने एक मस्जिद का अधिग्रहण किया था। उन्होंने इसे यह कहते हुए चुनौती दी कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का मूल सिद्धांत है। कोर्ट ने इसे नकार दिया।

4- चौथा शायरा बानो मामला, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक देने की प्रथा को खत्म कर दिया था। 

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कर्नाटक हाईकोर्ट के भी एक फैसले का जिक्र
नवदगी ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक भी एक फैसले का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने एक मामला आया था, जहां वक्फ की जमीन एक होटल को पट्टे पर दी गई थी। इस फैसले का  इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि होटल में शराब और सूअर का मांस परोसा जाएगा, जो इस्लाम में हराम है। लेकिन हाईकोर्ट ने इस दलील को भी नकार दिया।  

सबरीमाला फैसले को आधार बनाकर पूछा सवाल
नवदगी ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से बताया कि अनुच्छेद 25 के हिसाब से हिजाब 'आवश्यक' नहीं है। यह केवल धार्मिक अभ्यास है। अनुच्छेद 25 धार्मिक प्रथाओं के संरक्षण की बात करता है न कि धार्मिक अभ्यास के बारे में। धर्म वास्तव में क्या है यह परिभाषित करना असंभव है। शिरूर मठ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्टैंड लिया कि जो अनिवार्य रूप से धार्मिक है वह संरक्षित है। सबरीमाला मामले में कोर्ट कहा कि आपको यह बताना होगा कि जिस प्रथा को आप संरक्षित करना चाहते हैं वह धर्म के लिए आवश्यक है। 

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