भाई ने 13 साल की बहन को कर दिया था प्रेग्नेंट, गर्भ को गिराने की इजाजत देने वाले जज ने लिया बड़ा फैसला

Permission for termination of minor pregnancy कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर पोर्न की आसानी से उपलब्धता युवाओं पर गलत डाल रहा। समय आ गया है कि हमारे स्कूलों में दी जा रही यौन शिक्षा पर दोबारा विचार किया जाए। 

Dheerendra Gopal | Published : Jul 22, 2022 3:25 PM IST

नई दिल्ली। केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने नाबालिग लड़कियों के गर्भवती (minor girl pregnancy) होने के बढ़ रहे मामलों पर चिंता जताई है। हाईकोर्ट ने कहा कि इंटरनेट के असुरक्षित इस्तेमाल से बच्चों पर गलत असर पड़ रहा है। यौन संबंधित ऐसे मामलों को रोकने के लिए सेक्स एजुकेशन पर दोबारा विचार करने की जरुरत है। दरअसल, केरल हाईकोर्ट एक नाबालिग रेप पीड़िता के 24 हफ्ते के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देते हुए यह चिंता जताई है। कोर्ट ने प्रक्रिया के संचालन के लिए एक मेडिकल टीम के गठन का भी आदेश दिया है। किशोरी की उम्र 13 साल है और उसे 30 हफ्ते का गर्भ है। कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर पोर्न की आसानी से उपलब्धता युवाओं पर गलत डाल रहा। कोर्ट ने यह भी कहा कि समय आ गया है कि हमारे स्कूलों में दी जा रही यौन शिक्षा पर दोबारा विचार किया जाए। 13 साल की लड़की को उसके नाबालिग भाई ने प्रेग्नेंट कर दिया था। जस्टिस अरुण ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए अबॉर्शन की अनुमति दी।

राज्य व एजेंसियां लेंगी बच्ची की पूरी जिम्मेदारी

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केरल हाईकोर्ट के न्यायाधीश वी जी अरुण ने 13 वर्षीय बच्चे की याचिका पर विचार करते हुए कहा कि यदि बच्चा जन्म के समय जीवित है तो अस्पताल यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चे को सर्वोत्तम चिकित्सा उपचार की पेशकश की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता बच्चे की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है, तो राज्य और उसकी एजेंसियां ​​पूरी जिम्मेदारी लेंगी और बच्चे को चिकित्सा सहायता और सुविधाएं प्रदान करेंगी।

अदालत ने सरकारी अस्पताल में पीड़ित लड़की के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी। अदालत ने 14 जुलाई को जारी एक आदेश में कहा कि विचित्र प्रश्न पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, मैं कानून के सख्त पत्र पर टिके रहने के बजाय नाबालिग लड़की के पक्ष में झुकना उचित समझता हूं। अधिनियम 1971, 24 सप्ताह की बाहरी सीमा प्रदान करता है, जिसके बाद समाप्ति की अनुमति नहीं है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कर दिया था इनकार

दिल्ली उच्च न्यायालय में, मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद की खंडपीठ ने 25 वर्षीय अविवाहित महिला को 23 सप्ताह और 5 दिनों की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करते हुए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने यह कहा था कि यह आपसी सहमति से बनाए गए संबंध के बाद की उत्पन्न स्थिति है। एक खंडपीठ ने कहा, "आज तक, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 का नियम 3 बी खड़ा है, और यह अदालत, भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए, क़ानून से आगे नहीं जा सकती है। 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए अविवाहित महिला को 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने का आदेश दे दिया था। कोर्ट ने कहा था कि महिला शादीशुदा नहीं है, केवल इस वजह से उसे गर्भपात करवाने से नहीं रोका जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई तक दिल्ली एम्स के डायरेक्शन में एक पैनल बनाने और अबॉर्शन से जुड़ी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश भी दिया है।

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