फ्रांसीसी लेखक से मुलाकात ने बदल दी जिंदगी, मीरा बहन ने भारत की आजादी के लिए दी प्राणों की आहुति

मीरा बहन उन विदेशियों में प्रमुख नाम है जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। महात्मा गांधी की करीबी शिष्या, साथ में यात्रा करने वाली आंदोलन में कामरेड की भूमिका निभाने वाली मीरा भारत में 34 वर्षों तक रहीं।
 

Asianet News Hindi | Published : Jun 15, 2022 6:14 AM IST / Updated: Jun 15 2022, 11:53 AM IST

नई दिल्ली. मीरा बहन के नाम से विख्यात मेडेलीन स्लेड का जन्म 1892 में लंदन के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनके पिता सर एडमंड स्लेड, रॉयल ब्रिटिश नेवी में रियर एडमिरल थे। फ्लोरेंस मेडेलीन उनकी मां का नाम था। किशोरावस्था में मेडेलीन का जुनून 18वीं सदी के जर्मन संगीतकार लुडविग वैन बीथोवेन का संगीत था। 

फ्रांसीसी लेखक से रहीं प्रभावित
फ्रांसीसी लेखक रोमेन रोलैंड से मुलाकात ने मेडेलीन का जीवन बदल दिया। रोलैंड ने उन्हें गांधी की अपनी जीवनी पढ़ने के लिए दी। जिसमें 1924 की शुरुआत में ही 20वीं सदी का सबसे महान भारतीय नेता बताया गया था। मेडेलीन गांधीजी के आदर्शों और जीवन से अभिभूत थीं। उन्होंने तुरंत ही गांधीजी को पत्र लिखकर उनके आश्रम में रहने और सेवा करने की गुजारिश की। तब महात्मा गांधी ने सकारात्मक उत्तर दिया कि क्या वह आश्रम के सख्त प्रोटोकॉल से गुजरने के लिए तैयार हैं। इसके बाद मेडेलीन 7 नवंबर 1925 को महात्मा गांधी के अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम पहुंचीं। उन्होंने शाकाहार अपनाया और मद्यपान व ब्रह्मचर्य का व्रत लिया। उन्होंने हिंदी सीखी और चरखे पर हाथ से कताई भी की। गांधीजी ने ही उनका नाम मीरा रखा था। 

गोलमेज सम्मेलन में लिया हिस्सा
मीरा बहन 1930 में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए गांधीजी के साथ लंदन गईं। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के साथ ही उन्होंने गिरफ्तारी भी दी। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा के बाद उन्हें गांधीजी और कस्तूरबा के साथ फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इन सभी को पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद रखा गया था। मीरा उन दिनों बीमार कस्तूरबा गांधी की देखभाल करती थीं, जिन्होंने आगा खान पैलेस में अंतिम सांस ली थी।

गांधीजी की हत्या के बाद भी रहीं
गांधीजी की हत्या के बाद मीरा बहन करीब 11 साल तक और भारत में रहीं। उन्होंने अपना जीवन स्वतंत्र भारत में गांधी के आदर्शों को व्यवहार में लाने की कोशिश में बिताया। उन्होंने गांधीवादी आत्मनिर्भर गांवों की स्थापना की। छोटा नागपुर में आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम किया और हिमालय में वनों की कटाई के खिलाफ अभियान चलाया। मीरा 1959 में 64 साल की उम्र में अपने पैतृक देश इंग्लैंड लौट गईं। लेकिन जल्द ही मीरा अपने किशोरावस्था के जुनून-बीथोवेन के संगीत को आगे बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रिया चली गईं। उन्होंने अपना शेष जीवन उन गांवों में बिताया जहां बीथोवेन रहते थे। भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किए जाने के एक साल बाद 1982 में मीरा बहन का ऑस्ट्रिया में ही निधन हो गया। 

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