लोहड़ी पर्व पारंपरिक रूप से खेती से जुड़ा है। फसल की कटाई के बाद और नई फसल की बुआई के बीच मनाए जाने वाले इस त्योहार में सूर्य देव और अग्नि देव की पूजा होती है।
नई दिल्ली। आज देश में लोहड़ी त्योहार (Lohri Festival) मनाया जा रहा है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत के राज्यों में इस पर्व को बड़े हर्शोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी पर्व पारंपरिक रूप से खेती से जुड़ा है। फसल की कटाई के बाद और नई फसल की बुआई के बीच मनाए जाने वाले इस त्योहार में सूर्य देव और अग्नि देव की पूजा होती है।
लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस तरह भगवान सूर्य और अग्नि देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। लोहड़ी का त्योहार अलाव जलाकर मनाया जाता है। अलाव को पवित्र माना जाता है और इसे उर्वरता, सौभाग्य और शुभता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवविवाहित जोड़े या नवजात शिशु के लिए पहली लोहड़ी का बहुत महत्व होता है।
नृत्य-संगीत के बिना पूरी नहीं होती लोहड़ी
लोहड़ी नृत्य-संगीत के बिना पूरी नहीं होती। इस मौके पर पंजाब के लोग रंगीन कपड़े पहनते हैं और ढोल की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हैं। लोहड़ी त्योहार की शुरुआत के बारे में विभिन्न कहानियां हैं। कुछ कहानियों के अनुसार, त्योहार की शुरुआत हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में हुई, जहां देश के बाकी क्षेत्रों की तुलना में सर्दियां बहुत अधिक ठंडी होती हैं। लोग रबी फसल की कटाई के साथ शीतकालीन संक्रांति के बीतने और आने वाले वसंत के मौसम को मनाने के लिए अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं।
ऐसे मनाते हैं लोहड़ी
गांवों में पौष मास के पहले से ही लड़के-लड़कियां लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले एकत्रित करते हैं। इससे मोहल्ले या गांव में खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। लोहड़ी की शाम को लोग अलाव जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं। लोहड़ी की आग में तिल, गुड़, रेवड़ी, मूंगफली, खील और मक्की के दानों की आहुति देने की परंपरा है। इस दौरान लोग रेवड़ी, खील, गज्जक और मक्का खाते हैं। लोहड़ी के दिन घरों में महिलाएं गजक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग जैसे पकवान बनाती हैं।
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