लोकसभा चुनाव 2024: दो लड़कों का विफल प्रयोग मोदी लहर के सामने कहां टिकेगा?

उत्तर प्रदेश में बीते लोकसभा चुनाव में जब सपा-बसपा-रालोद का गठजोड़ और कांग्रेस की रणनीतिक साझेदारी थी तब भाजपा के नेतृत्व में राजग को 51 फीसदी वोट और 64 लोकसभा सीट जीतने से नहीं रोक पाई थी।

Asianet News Hindi | Published : Feb 21, 2024 5:02 PM IST / Updated: Feb 21 2024, 10:35 PM IST

लेखक- प्रेम शुक्ल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन का ऐलान हो गया। इस ऐलान के मुताबिक सपा ने कांग्रेस को 17 लोकसभा सीटें देने का निर्णय लिया है। इंडि अलायंस के गठन का प्रयास बीते कई महीनो से जारी है। इस गठबंधन की संकल्पना बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने की थी। इसकी पहली बैठक भी बिहार की राजधानी पटना में आयोजित हुई। तब राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव की चाल थी कि किसी तरह नीतिश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में ढकेल कर अपने पुत्र तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी कर ली जाए।

लालू प्रसाद यादव ने इंडि अलायंस की हर बैठक में इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने का प्रयास भी किया। किसी जमाने में लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के साथ-साथ तीसरे मोर्चे के दलों पर भी प्रभाव रखते थे। अब कांग्रेस बिहार में भी लालू प्रसाद यादव को यदाकदा आंखें तरेर लेती है। दूसरा मोर्चा और तीसरा मोर्चा जैसी कोई चीज बची ही नहीं। जो बच गए हैं उनमें हर किसी का अपनी डफली अपना राग है। इसलिए आखिरी बैठक तक नीतिश बाबू बूझ गए कि लालू परिवार उन्हें मृगतृष्णा दिखा कर बिहार को भी लूट रही है और उनकी जनता दल यूनाइटेड पर भी डाका डालने की योजना है। अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने जिस तरह इंडि अलायंस के संयोजक और अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तवित कर अपना खेल पहले ही कर चुके थे। सो नीतिश कुमार ने लालू परिवार से गच्चा खाने के पहले ही राजद को गच्चा दे दिया ।

ममता बनर्जी ने इंडि अलायंस का अध्यक्ष मल्लाकार्जुन खड़गे को बनाना तो प्रस्तावित किया पर कांग्रेस और कम्युनिस्टों के लिए कोई सीट छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हुईं। यहां तक कि उन्होंने राहुल गांधी की न्याय यात्रा को बंगाल में घुसने तक नहीं दिया। यही हाल अरविंद केजरीवाल का भी है। पंजाब में वे सभी 13 सीटों पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुके हैं। दिल्ली में भी केजरीवाल कुटिल खेल के लिए बीते चुनाव में भी कुख्यात रहे हैं। राष्ट्रीय लोक दल के साथ तो समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव सीटों का समझौता भी घोषित कर चुके थे पर जयंत चौधरी ने सपा छोड़ कर भाजपा के साथ जाना तय किया।

महाराष्ट्र में आए दिन उद्धव ठाकरे के प्रवक्ता संजय राऊत कांग्रेस की तुलना में ज्यादा सीटों की मांग सामने कर रहे हैं। शरद पवार की राजनीति पर कांग्रेस बीते पांच दशकों से पूर्वानुमान लगाने में विफल हो चुकी है। जबसे राहुल गांधी मणिपुर से महाराष्ट्र के लिए यात्रा पर निकले हैं, तब से उनकी कांग्रेस से कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य अशोक चव्हाण, पूर्व मंत्री और टीम राहुल के साथी मिर्लिंद देवड़ा और पूर्व मंत्री और मुंबई युवा कांग्रेस के अध्यक्ष जीशान सिद्दीकी के पिता बाबा सिद्दीकी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं।

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2019 में कांग्रेस की गठबंधन की साथी जनता दल सेकुलर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में आ चुकी है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के साथ कोई आने के लिए तैयार नहीं। तमिलनाडु में कांग्रेस के साथी दल द्रविड मुनेत्र कड़गम भयंकर एंटी इनकंबेंसी का शिकार है। केरल में कांग्रेस और वाम मोर्च के समझौते की बात करना दूर की कौड़ी है। उत्तर प्रदेश में बीते लोकसभा चुनाव में जब सपा-बसपा-रालोद का गठजोड़ और कांग्रेस की रणनीतिक साझेदारी थी तब भाजपा के नेतृत्व में राजग को 51 फीसदी वोट और 64 लोकसभा सीट जीतने से नहीं रोक पाई तो अब बुवा-बबुआ के अलगाव के बाद दो लड़कों का विफल प्रयोग प्रचंड मोदी लहर के सामने कहां टिकने वाला है?

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