
नई दिल्ली। लोकसभा के शीतकालीन सत्र का सातवां दिन बेहद अहम होने वाला है। आज यानि 09 दिसंबर 2025 को संसद में चुनाव सुधारों और स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर लंबी, 10 घंटे की बहस होने जा रही है। लोकसभा में माहौल पहले से ही गर्म है, क्योंकि विपक्ष लगातार वोट चोरी, बीएलओ की मौतें, चुनाव आयोग की निष्पक्षता जैसे मुद्दों को लेकर सरकार पर आक्रामक है। खास बात यह भी है कि आज की बहस में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और अन्य 10 बड़े नेता हिस्सा लेंगे। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल 10 दिसंबर को सरकार की ओर से पूरे मामले का जवाब देने वाले हैं। ऐसे में आज की बहस सियासी रूप से बेहद संवेदनशील और दिलचस्प हो सकती है।
पिछले कई दिनों से संसद से लेकर सड़कों तक विपक्ष का आरोप है कि SIR प्रक्रिया के दौरान वोट चोरी हो रही है। विपक्ष SIR को “भ्रमित करने वाली प्रक्रिया” बताकर सरकार पर हमला कर रहा है। सबसे गंभीर आरोप इस बात पर है कि अधिक काम के दबाव में BLO (Booth Level Officer) की मौतें हो रही हैं। विपक्ष का दावा है कि कई BLO आत्महत्या कर चुके हैं या अत्यधिक तनाव के कारण उनकी मौत हुई है। उधर, बिहार विधानसभा चुनाव में हुई NDA की रिकॉर्ड जीत के बाद विपक्ष ने फिर से “वोट चोरी” का आरोप उछाल दिया है। इसी वजह से आज की SIR बहस और भी विवादास्पद मानी जा रही है।
SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) चुनाव आयोग की वह प्रक्रिया है जिसके जरिए देशभर की वोटर लिस्ट को अपडेट किया जाता है।
इसमें खासतौर पर तीन काम होते हैं:
मकसद साफ है कि कोई भी योग्य नागरिक वोटर लिस्ट से न छूटे और कोई भी अयोग्य व्यक्ति लिस्ट में न रहे। लेकिन विपक्ष का सवाल है कि अगर प्रक्रिया इतनी साफ और पारदर्शी है, तो फिर BLO की मौतें, वोटर डिलीशन, एक ही व्यक्ति का दो जगह वोट, और NRC डॉक्यूमेंट्स की एंट्री जैसी बातें क्यों सामने आ रही हैं?
चुनाव आयोग ने SIR प्रक्रिया 12 राज्यों में लागू की है। इसमें कुल 51 करोड़ से ज्यादा वोटर्स शामिल हैं। SIR वाले राज्य: अंडमान-निकोबार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल। पहला चरण बिहार में पूरा हो चुका है, जहां 7.42 करोड़ वोटर्स की फाइनल लिस्ट जारी की गई थी।
हां-अगर आपके दस्तावेज मैच नहीं होते, या BLO आपके पते पर कई बार जाकर आपको नहीं पाता, तो आपका नाम हटाया जा सकता है। इसी वजह से कई राज्यों में बड़ी संख्या में नागरिक चिंतित हैं कि कहीं SIR के नाम पर वोट डिलीशन का खेल तो नहीं चल रहा।
SIR के दौरान वोटर को पहचान और निवास साबित करने के लिए विभिन्न दस्तावेज स्वीकार किए जाते हैं:
यानी ऐसे कई दस्तावेज हैं जिनसे आपका नाम जुड़ या कट सकता है।
देशभर में अब तक 98.69% फॉर्म का डिजिटलीकरण हो चुका है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े पैमाने पर तेज़ी किसलिए? क्या यह सामान्य प्रक्रिया है, या चुनावों से पहले कोई बड़ा बदलाव की तैयारी? उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में 15.44 करोड़ वोटर्स में से लगभग 96.91% फॉर्म का डिजिटलीकरण हो चुका है। मध्य प्रदेश में लगभग 99.97% फॉर्म डिजिटलीकृत हैं। कुछ राज्य 100% पर पहुंच चुके हैं।
चुनाव आयोग का कहना है कि 1951 से 2004 तक SIR कई बार हुआ, लेकिन पिछले 21 सालों में यह नहीं किया गया। अब जब देश में बड़े पैमाने पर माइग्रेशन, दो जगह वोटर नाम, मृत मतदाताओं का डेटा, और विदेशी नागरिकों की एंट्री जैसी समस्याएं बढ़ी हैं तो SIR जरूरी हो गया था।
शीतकालीन सत्र में इस बार 10 बड़े बिल पेश किए जा रहे हैं। इनमें शामिल हैं:
लेकिन SIR की गर्मी इन बिलों की बहस को भी पीछे धकेल रही है।
आज की बहस सिर्फ वोटर लिस्ट की नहीं है-यह भारत की चुनावी पारदर्शिता, लोकतांत्रिक व्यवस्था और मतदाता अधिकारों की असली परीक्षा है।