महाराष्ट्र में एक बार फिर मराठा आरक्षण की आग जलने लगी है और राज्य भर में यह आंदोलन हिंसक हो चला है। राज्य की मौजूदा शिंदे सरकार भी एक्शन प्लान तैयार कर चुकी है।
Maratha Reservation Politics. महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे बड़ा मुद्दा मराठा आरक्षण है जिसका जिन्न एक बार फिर से निकल गया है। एक्टिविस्ट मनोज ने भूख हड़ताल शुरू की तो पुणे से लेकर लातूर और बीड़ से लेकर राज्य के बाकी हिस्सों में भी आंदोलन होने लगे हैं। सोमवार को कई स्थानों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसप झड़पें भी हुईं। इस महाराष्ट्र के एक बीजेपी विधायक ने इस्तीफा दे दिया है। वहीं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के दो करीबी सांसदों ने भी मराठा आरक्षण को सपोर्ट किया है। इस बीच सूचना है कि महाराष्ट्र की शिंदे सरकार भी मराठा आरक्षण के मुद्दे को अपने पक्ष में करने की तैयारियां कर रही है। आइए जानते हैं क्या है यह मराठा आरक्षण का मुद्दा?
Maratha Reservation: कौन हैं मराठा
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठने वाले मनोज जरांजे कहते हैं कि मराठा और कुरमी एक ही हैं। जबकि संभाजी ब्रिगेड का कहना है कि मराठा कोई जाति नहीं है बल्कि महाराष्ट्र में रहने वाला हर व्यक्ति मराठा है। तर्क दिया कि जातियों का आाधार व्यवसाय है जबकि मराठा वे किसान हैं, खेती बाड़ी के साथ ही क्षत्रिय की तरह मराठा योद्धा बनकर काम करते रहे और बड़े-बड़े पदों तक पहुंचे। जानकारी के लिए बता दें कि जून 2004 में रिटायर जस्टिस एसएन खत्री की अगुवाई वाले राज्य पिछड़ा आयोग ने मराठा-कुनबियों और कुनबी-मराठा को ओबीसी में शामिल करने को मंजूदी दी थी।
Maratha Reservation: क्या है मराठाओं की डिमांड
माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में मराठाओं की आबादी 33 प्रतिशत है और वे ज्यादातर मराठी भाषा बोलते हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जो मराठी बोलता है, वही मराठा है। मराठा आंदोलन की सबसे बड़ी डिमांड यह है कि मराठाओं को ओबीसी का दर्जा दिया जाए। दावा है कि 1948 तक निजााम का शासन खत्म होने तक मराठाओं को कुनबी ही माना जाता था और वे ओबीसी थे। इसलिए उन्हें ओबीसी का दर्जा दिया जाना चाहिए। आंदोलन कर रहे मनोज जरांजे की भी यही मांग है कि जब तक मराठा कुनबी को ओबीसी का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता है, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।
Maratha Reservation: कब-कब भड़की मराठा आंदोलन की आग
मराठा आरक्षण की सबसे बड़ी मांग 1982 में की गई और तब पहली बार बड़ा आंदोलन खड़ा किया गया था। मराठी नेता अन्ना साहेब पाटिल ने आर्थिक आधार पर मराठा आरक्षण की मांग की थी। सरकार ने उनकी मांग को नहीं माना तो अन्ना साहेब पाटिल ने आत्महत्या कर ली थी। साल 2014 से पहले तत्कालीन सीएम पृथ्वीराज चह्वाण ने सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में 16 प्रतिशत मराठा आरक्षण की मांग को मान लिया था। हालांकि नवंबर 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस अध्यादेश पर रोक लगा दी थी। मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे रद्द कर दियाऔर कहा कि आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता है।
यह भी पढ़ें
मुकेश अंबानी को 5 दिन में तीसरी बार जान से मारने की धमकी, जानें इस बार क्या है डिमांड?