India@75: एमएस स्वामीनाथन ने छोड़ दी थी आईपीएस की नौकरी, हुआ कुछ ऐसा कि देश में ला दी 'हरित क्रांति'

भारत में अगर बदलाव की गाथा लिखी जाए, तो उस फेहरिश्त में हरित क्रांति लाने वाले एमएस स्वामीनाथन का भी नाम शामिल होगा। एक वक्त में देश में गेहूं की कमी हो गई थी। लेकिन स्वामीनाथन ने तस्वीर ही बदल डाली।

Moin Azad | Published : Aug 7, 2022 2:45 PM IST

एशियानेट न्यूज हिंदीः एमएस स्वामीनाथन ने देश में हरित क्रांति (Green Revolution) लाया था। उनके कारण ही देश में एक बड़ा बदलाव हुआ। दूसरे देशों पर भारत की अनाज निर्भरता को उन्होंने कम कर दिया था। वे हरित क्रांति के अगुवा बने। एक वक्त ऐसा आया था, जब देश में गेहूं की बड़ी किल्लत हो गई थी। उसी दौरान उनका IPS के लिए चयन हो चुका था, लेकिन एक ऐसी घटना घटी जिससे उनका मन बिल्कुल बदल गया। वे आईपीएस की नौकरी को छोड़ खेती-किसानी में जुट गए। उनकी नीतियां इतनी कारगर साबित हुई कि सिर्फ पंजाब में पूरे देश का 70 फीसदी गेहूं उगने लगा था। 

पिता बनाना चाहते थे डॉक्टर
उनके पिता डॉ. एमके सम्बशिवन एक सर्जन थे। वे बेटे को भी डॉक्टर बनाना चाहते थे। सम्बशिवन खुद गांधीजी के अनुयायी थे। विदेशी वस्त्रों की होली जलाते थे। तमिलनाडु (Tamilnadu) के कुम्भकोड़म में कई मंदिरों में दलित प्रवेश को लेकर भी आंदोलन चलाए थे। जानकारी दें कि स्वामीनाथन के पिता का देहांत के बाद उन्होंने मेडिकल स्कूल में एडमिशन ले लिया था। 1943 के बंगाल अकाल ने उनका मन बदल दिया था। अकाल की ऐसी-ऐसी तस्वीरें सामने आयी थी कि उन्होंने फैसला ले लिया कि देश के लिए कुछ करना होगा। उन्होंने पहले जुलॉजी की पढ़ाई की, फिर एग्रीकल्चर कॉलेज में एडमिशन लिया। क्योंकि वे चाहते थे कि कभी भी अकाल जैसी विभीषिका ना पड़े। 

यूपीएससी भी कर लिया था क्लियर
दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट से पीजी करने के बाद वे यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा में बैठे थे। वे आईपीएस के लिए चुन भी लिए गए थे। उन्होंने आईपीएस की नौकरी को तरजीह नहीं दी। वे यूनेस्को (UNESCO) की एगीकल्चर रिसर्च फेलोशिप करने चले गए। वे पोटैटो जेनेटिक्स पर रिसर्च करने वहां गए थे। वहां से वे यूनीवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर के प्लांट ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट चले गए। यहीं से उन्होंने पीएचडी की डिग्री भी ली। यूनीवर्सिटी ऑफ विंसकोंसिन में प्रोफेसर की जॉब ऑफर होने के बावजूद भी वे भारत लौट आए।

पंजाब से हुई शुरुआत
भारत में पैदावार बढ़ाने में उनका सबसे बड़ा योगदान था। हरित क्रांति के लिए उन्होंने जी जान लगा दिया। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में गेहूं की ज्यादा उपज देने वाली किस्मों के बीजों के साथ, ट्रैक्टर, कीटनाशक, उर्वरकों आदि का इस्तेमाल खेती में शुरू किया गया। इसकी शुरुआत पंजाब से हुई। 1970 तक पंजाब में पूरे देश भर का 70 फीसदी गेहूं उगाया जाने लगा था। भारत अनाज उत्पन्न करने के मामले में आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ गया था। यही वजह है कि अब अकाल जैसी परिस्थितियां एक इतिहास हो चुकी है।

पद्म विभूषण से हुए सम्मानित
इसके बाद 1972 में स्वामीनाथन को इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट का डायरेक्टर जनरल बना दिया गया था। इस दौरान उन्होंने कई रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापनी की। 1979 में वे कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव भी रहे। इस दौरान उन्होंने जंगलों के एक बड़ा सर्वे करवाया। इन योगदानों की वजह से उन्हें दुनिया का पहला ‘वर्ल्ड फूड प्राइज’ दिया गया। यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम ने तो उन्हें ‘फादर ऑफ इकोनॉमिक इकॉलॉजी’ भी कह दिया। वहीं भारत सरकार ने उन्हें भारत के दूसरे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित भी किया है। स्वामीनाथन वर्तमान समय चेन्नई में रहते हैं। 

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