कोरोना@काम की खबर: EMI भरने वालों के लिए खुशखबरी, 3 महीने तक बैंक को नहीं देने होंगे पैसे

भारत में कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुई आर्थिक दिक्कत से निपटने के लिए रेपो रेट में 0.75% की कटौती की है। अब सभी तरह के कर्ज सस्ते होंगे। रेपो रेट वह दर है जिसपर आरबीआई से बैंकों को कर्ज मिलता है। 

नई दिल्ली. भारत में कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुई आर्थिक दिक्कत से निपटने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने बड़ा ऐलान किया है। आरबीआई ने रेपो रेट में 0.75% की कटौती की है। अब सभी तरह के कर्ज सस्ते होंगे। रेपो रेट वह दर है जिसपर आरबीआई से बैंकों को कर्ज मिलता है। वहीं, रिवर्स रेपो रेट में भी 90 बेसिस पॉइंट की कटौती करते हुए 4% कर दी है। इससे लोगों की EMI कम होगी। उन्होंने बैंक को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि लोगों के पास कैश की कमी ना हो।

आरबीआई ने क्या कहा?
आरबीआई के मुताबिक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों, NBFC (हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों सहित) और ऋण संस्थानों सहित सभी वाणिज्यिक बैंकों को 1 मार्च को बकाया सभी ऋणों के लिए किश्तों के भुगतान पर 3 महीने की मोहलत देने की अनुमति दी जा रही है। 

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किश्त भुगतान में 3 महीने की छूट मिलेगी

आरबीआई के ऐलान के बाद अब सभी बैंकों की तरफ से ईएमआई में छूट दी गई है। लेकिन यह छूट 3 महीने के लिए होगी। मार्च से अगले तीन महीने की ईएमआई में छूट तो मिलेगी, लेकिन बैंक तय करेंगे कि ग्राहकों को छूट कैसे देनी है।

बैंक की किश्त नहीं भरने पर सिबिल स्कोर भी नहीं होगा खराब

अगर आपने किसी बैंक से लोन लिया है और तीन महीने तक किश्त नहीं भरते हैं तो आपका सिबिल स्कोर भी खराब नहीं होगा। आप तीन महीने बाद से अपनी ईएमआई फिर से शुरू कर सकते हैं। सिबिल स्कोर खराब होने पर बैंक से लोन मिलना मुश्किल हो जाता है।

कैश रिजर्व रेशियो (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती

उन्होंने कहा, दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर कोरोना महामारी का असर है। यह भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।- कैश रिजर्व रेशियो (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती करके 3% कर दिया गया है। यह एक साल तक की अवधि के लिए किया गया है।

वित्त मंत्रालय ने आरबीआई को लिखा था लेटर

वित्त मंत्रालय ने आरबीआई को एक लेटर भेजा है जिसमें यह सुझाव दिया गया है कि इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट्स(EMI), इंटरेस्ट के पेमेंट और लोन रीपेमेंट पर कुछ महीनों की छूट दी जाए। मंत्रालय ने नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स के क्लासिफिकेशन में ढील देने का सुझाव भी दिया था।

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