फ्रांस दौरे से पहले PM मोदी का इंटरव्यू, जानें UNSC में स्थायी सदस्यता से लेकर 'ग्लोबल साउथ' में भारत की भूमिका पर क्या बोले मोदी

PM मोदी गुरुवार 13 जुलाई को फ्रांस की दो दिवसीय यात्रा के लिए रवाना हो गए। पीएम मोदी के फ्रांस दौरे से पहले फ्रांस के मशहूर अखबार लेस इकोस (Les Echos) ने प्रधानमंत्री आवास पर पीएम मोदी का इंटरव्यू लिया। पेश हैं इंटरव्यू के प्रमुख अंश।

Contributor Asianet | Published : Jul 13, 2023 7:46 AM IST / Updated: Jul 13 2023, 03:47 PM IST

नई दिल्ली। PM मोदी गुरुवार 13 जुलाई को फ्रांस की दो दिवसीय यात्रा के लिए रवाना हो गए। मोदी 14 जुलाई को फ्रांस के बास्तील डे परेड में चीफ गेस्ट के तौर पर शामिल होंगे। पीएम मोदी के फ्रांस दौरे से पहले फ्रांस के मशहूर अखबार लेस इकोस (Les Echos) ने नई दिल्ली में स्थित प्रधानमंत्री आवास पर पीएम मोदी का इंटरव्यू लिया। इस दौरान मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता से लेकर ग्लोबल साउथ में भारत की भूमिका तक कई विषयों पर बात की। पेश हैं, उनके इंटरव्यू के प्रमुख अंश।

सवाल: भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है। विश्व परिदृश्य पर इससे देश की स्थिति में क्या बदलाव आया है?

जवाब- भारत एक समृद्ध सभ्यता है, जो हजारों वर्ष पुरानी है। आज भारत दुनिया में सबसे युवा राष्ट्र है। भारत की सबसे मजबूत संपत्ति हमारे युवा हैं। उस वक्त जब दुनिया के कई देश बूढ़े हो रहे हैं और उनकी जनसंख्या कम हो रही है। ऐसे में भारत के युवा और कुशल कार्यबल आनेवाले दशकों में दुनिया भर के लिए किसी संपत्ति से कम नहीं होंगे। खास बात ये है कि इस बदलती दुनिया में भारत का युवा लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए पूरी तरह उत्सुक और तैयार है।

सवाल: आपकी नजर में भारत के शक्ति स्तंभ क्या हैं?

जवाब : हमारे पास सभ्यतागत लोकाचार और विरासत है, जो हमें आधार प्रदान करती है। वैश्विक शांति और प्रगति में हमने हमेशा योगदान दिया है। हमने दुनिया को योग, आयुर्वेद, अध्यात्म, विज्ञान, गणित और खगोल विज्ञान दिया है। हम प्रचुर मात्रा में ऐसी शक्तियां पाकर धन्य हैं। हमारा मानना ​​है कि हमें प्रगति करते हुए एक आधुनिक राष्ट्र बनना चाहिए। हमें अपने अतीत से गर्व और प्रेरणा मिलती है। हम केवल तभी प्रगति कर सकते हैं जब हम अन्य राष्ट्रों के साथ मिलकर ऐसा करेंगे। ये हमारा सौभाग्य है कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में नये सिरे से दिलचस्पी बढ़ी है। योग अब एक घरेलू शब्द है। हमारी पारंपरिक आयुर्वेद चिकित्सा को स्वीकार्यता मिल रही है। भारतीय सिनेमा, व्यंजन, संगीत और नृत्य की दुनियाभर में मांग है।

सवाल: भारत और अमेरिका के संबंधों में पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ोतरी देखी गई। ऐसा अभी क्यों हो रहा है, इसके पीछे भारत का तर्क क्या है?

जवाब- ये सच है कि भारत-अमेरिका के रिश्ते में बदलाव के बाद से सकारात्मक प्रगति हो रही है। पिछले 9 सालों में इसमें तेजी आई है और ये नए स्तर पर पहुंच गया है। वहां हमारे संबंधों को मजबूत करने के लिए दोनों पक्षों के सभी हितधारकों से व्यापक समर्थन मिल रहा है। चाहे वो देश हो, सरकार हो, संसद हो, उद्योग हो, शिक्षा जगत हो या फिर वहां के लोग। निश्चित रूप से अमेरिकी कांग्रेस ने हमारे रिश्ते को ऊपर उठाने के लिए लगातार समर्थन बढ़ाया है।

सवाल: क्या आप मानते हैं कि भारत ‘ग्लोबल साउथ’ का स्वाभाविक नेता है?

जवाब- मुझे लगता है कि 'वर्ल्ड लीडर' कहना काफी भारी है और भारत को किसी भी चीज का अहंकार नहीं करना चाहिए, ना ही कोई पद ग्रहण करना चाहिए। मुझे लगता है कि पूरे ग्लोबल साउथ के लिए हमें सामूहिक नेतृत्व की जरूरत है, ताकि इसकी आवाज पहले से ज्यादा मजबूत हो और पूरा समुदाय अपना नेतृत्व स्वयं कर सके। मुझे नहीं लगता कि इस तरह के सामूहिक नेतृत्व का निर्माण करने के लिए भारत को एक नेता के रूप में अपनी स्थिति के संदर्भ में सोचना चाहिए और ना ही हम उस अर्थ में सोचते हैं।

हालांकि, ये भी सच है कि 'ग्लोबल साउथ' को लंबे समय से दरकिनार किया गया है, जिसके चलते इसके सदस्यों के भीतर काफी पीड़ा है। उन्हें हमेशा एक्शन के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन जब भी फैसले लेने की बात आती है तो उन्हें अपने लिए कोई आवाज नहीं मिलती। मुझे लगता है कि अगर हम लोकतंत्र की सच्ची भावना से काम करते और ग्लोबल साउथ को भी वही सम्मान और अधिकार दिए होते तो पूरी दुनिया कहीं ज्यादा ताकतवर और मजबूत समुदाय बन सकती थी। जहां तक बात ग्लोबल साउथ में भारत की भूमिका की है तो मैं भारत को एक ऐसे मजबूत कंधे के तौर पर देखता हूं, जो ग्लोबल साउथ को एक ऊंची छलांग लगाने के लिए मजबूत कंधे का सहारा बन सकता है। ग्लोबल साउथ के लिए भारत ग्लोबल नॉर्थ के साथ भी मिलकर अच्छे संबंध बना सकता है। ऐसे में भारत का कंधा एक पुल का काम करेगा। इसलिए मुझे लगता है कि इस पुल को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि नॉर्थ-साउथ ग्लोबल के बीच संबंध मजबूत हो सकें।

सवाल: आप संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत करते रहे हैं। क्या इस मायने में संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता दांव पर है?

जवाब- मुद्दा सिर्फ विश्वसनीयता का नहीं है, बल्कि इससे भी बड़ा कुछ है। मेरा मानना ​​है कि दुनिया को द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बनीं बहुपक्षीय शासन संरचनाओं के बारे में ईमानदारी से बातचीत करने की जरूरत है। दुनिया भर में संस्थाओं की स्थापना हुए करीब 80 साल हो चुके हैं और इतने समय में दुनिया काफी बदल चुकी है। सदस्य देशों की संख्या चार गुना बढ़ चुकी है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदल चुका है। हम टेक्नोलॉजी के नए युग में रह रहे हैं। नई ताकतों का उदय हुआ है, जिससे वैश्विक संतुलन के सापेक्ष बदलाव आया है। हम जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद, महामारी और अंतरिक्ष सहित नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हम इन बदलावों से आगे बढ़ सकते हैं।

पीएम मोदी ने आगे कहा- इस बदली हुई दुनिया में कई सवाल उठते हैं - क्या ये संगठन आज के दौर के प्रतिनिधि हैं? क्या वे उन भूमिकाओं का निर्वहन करने में सक्षम हैं, जिनके लिए उन्हें स्थापित किया गया था? क्या दुनिया भर के देशों को लगता है कि ये संगठन मायने रखते हैं, या फिर ये उपयुक्त हैं? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद खासतौर पर इस विसंगति का प्रतीक है। हम एक वैश्विक निकाय के प्राथमिक अंग के रूप में इसकी चर्चा कैसे करें, जबकि पूरे अफ्रीका महाद्वीप और लैटिन अमेरिका की उपेक्षा की जाती है? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पूरी दुनिया के लिए बोलने का दावा कैसे कर सकता है, जबकि दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश और उसका सबसे बड़ा लोकतंत्र ही इसका स्थायी सदस्य नहीं है? इतना ही नहीं, इसकी विषम सदस्यता इसे अपारदर्शी फैसले लेने की ओर ले जाती है, जो वर्तमान की चुनौतियों से निपटने में इसकी असहायता को उजागर करती है।

मुझे लगता है कि दुनियाभर के ज्यादातर देश इस बात को लेकर साफ हैं कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में क्या बदलाव देखना चाहते हैं, जिसमें भारत को भूमिका निभानी चाहिए। हमें सिर्फ उनकी आवाज सुनने और उनकी सलाह मानने की जरूरत है। हमें इस मामले में फ्रांस द्वारा अपनाई गई साफ और तर्कयुक्त स्थिति की सराहना करनी चाहिए।

सवाल: 2047 में भारत के लिए आपका नजरिया क्या है? आप वैश्विक संतुलन में भारत के योगदान को कैसे देखते हैं?

जवाब- हम 2047 में अपनी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ काम कर रहे हैं। हम 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनते देखना चाहते हैं। एक विकसित अर्थव्यवस्था जो अपने सभी लोगों की मूलभूत जरूरतों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और अवसरों को पूरा करती हो। भारत एक जीवंत और सहभागी संघीय लोकतंत्र बना रहेगा, जिसमें सभी नागरिक अपने अधिकारों को लेकर सुरक्षित हैं। राष्ट्र में अपने स्थान के प्रति आश्वस्त और अपने भविष्य को लेकर आशावादी हैं।

पीएम मोदी ने आगे कहा- भारत इनोवेशन और टेक्नोलॉजी में ग्लोबल लीडर बनेगा। भारत एक राष्ट्र के साथ ही टिकाऊ जीवनशैली, स्वच्छ नदियों, नीले आसमान, जैव विविधता और वन्य जीवन से भरपूर जंगलों वाला देश है। हमारी अर्थव्यवस्था अवसरों के केंद्र के साथ ही ग्लोबल ग्रोथ का इंजन और स्किल एंड टैलेंट का स्रोत होगी। भारत लोकतंत्र की शक्ति का सशक्त प्रमाण होगा। हम अंतरराष्ट्रीय कानून पर आधारित और बहुपक्षवाद के अनुशासन द्वारा समर्थित एक संतुलित बहुध्रुवीय दुनिया को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे।

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