आदि महोत्सव में बोले मोदी-ऐसा लग रहा है कि जैसे भारत की अनेकता और भव्यता आज एक साथ खड़ी हो गई है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (16 फरवरी) को दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आदि महोत्सव(Aadi Mahotsav) का उद्घाटन किया। यह अपने तरह का एक मेला है, जिसमें आदिवासी संस्कृति, शिल्प, खान-पान, कॉमर्स और पारंपरिक कला का प्रदर्शन किया जाएगा।

Amitabh Budholiya | Published : Feb 16, 2023 3:27 AM IST / Updated: Feb 16 2023, 12:41 PM IST

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (16 फरवरी) को दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आदि महोत्सव(Aadi Mahotsav) का उद्घाटन किया। यह अपने तरह का एक मेला है, जिसमें आदिवासी संस्कृति, शिल्प, खान-पान, कॉमर्स और पारंपरिक कला का प्रदर्शन किया जाएगा।

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मोदी ने कहा-यह अनंत विवधिताएं हमें एक भारत-श्रेष्ठ भारत के सूत्र में पिरोती हैं। आप सभी को 'आदि महोत्सव' की हार्दिक शुभकामनाएं। ऐसा लग रहा है कि जैसे भारत की अनेकता और भव्यता आज एक साथ खड़ी हो गई हैं। यह भारत के उस अनंत आकाश की तरह है जिसमें उसकी विविधताएं इंद्रधनुष की तरह उभर कर सामने आ जाती हैं। उनके उत्पादों के माध्यम से विभिन्न कलाओं, कलाकृतियों, संगीत और सांस्कृतिक प्रदर्शन को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मुझे लगता है कि भारत की विविधता और इसकी भव्यता एक साथ आ गई है और आज इसकी परंपरा को उजागर कर रही है।

जब विविधताओं को '𝐄𝐤 𝐁𝐡𝐚𝐫𝐚𝐭 𝐒𝐡𝐫𝐞𝐬𝐡𝐭𝐡𝐚 𝐁𝐡𝐚𝐫𝐚𝐭' के धागे में पिरोया जाता है, तो भारत की भव्यता दुनिया के सामने उभरती है। यह आदि महोत्सव इसी भावना का प्रतीक है। यह महोत्सव विकास और विरासत के विचार को और अधिक जीवंत बना रहा है। जो पहले खुद को दूर-सुदूर समझता था अब सरकार उसके द्वार जा रही है, उसको मुख्यधारा में ला रही है। आदिवासी समाज का हित मेरे लिए व्यक्तिगत रिश्तों और भावनाओं का विषय है।

मोदी ने कहा-21वीं सदी का नया भारत 'सबका साथ सबका विकास' के दर्शन पर काम कर रहा है। सरकार उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है, जिनसे लंबे समय से संपर्क नहीं हो पाया है। आपके बीच आकर मुझमें अपनों से जुड़ने का भाव आता है।

मैंने देश के कोने कोने में आदिवासी समाज और परिवार के साथ अनेक सप्ताह बिताए हैं। मैंने आपकी परंपराओं को करीब से देखा भी है, उनसे सीखा भी है और उनको जिया भी है। आदिवासियों की जीवनशैली ने मुझे देश की विरासत और परंपराओं के बारे में बहुत कुछ सिखाया है।

पिछले 8-9 वर्षों में 'आदि महोत्सव' जैसे आयोजन देश के लिए एक आंदोलन बन गए हैं। मैं भी कई आयोजनों में भाग लेता हूं; मैं ऐसा इसलिए करता हूं क्योंकि आदिवासी समाज का कल्याण मेरे लिए व्यक्तिगत भी है और भावनात्मक भी।आज वैश्विक मंचों से भारत आदिवासी परंपरा को अपनी विरासत और गौरव के रूप में प्रस्तुत करता है।

आज भारत विश्व को बताता है कि अगर आपको जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों का समाधान चाहिए तो हमारे आदिवासियों की जीवन परंपरा देख लीजिए...आपको रास्ता मिल जाएगा। जब मैं सक्रिय राजनीति में नहीं था, तब मैं आदिवासी समुदायों और परिवारों के पास जाता था और उनके साथ पर्याप्त समय बिताता था। मैंने आदिवासी समाज की प्रथाओं से सीखा भी है और जिया भी है।

हम कैसे प्रकृति से संसाधन लेकर भी उसका संरक्षण कर सकते हैं इसकी प्रेरणा हमें हमारे आदिवासी समाज से मिलती है। भारत के जनजातीय समाज द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है और ये विदेशों में निर्यात किए जा रहे हैं।

आज सरकार का जोर जनजातीय आर्ट्स को प्रमोट करने, जनजातीय युवाओं के स्किल को बढ़ाने पर भी है। देश में नए जनजातीय शोध संस्थान खोले जा रहे हैं। इन प्रयासों से जनजातीय युवाओं के लिए उनके अपने ही क्षेत्र में नए अवसर बन रहे हैं। इनमें से 400 से ज्यादा स्कूलों में पढ़ाई शुरू भी हो चुकी है और एक लाख से ज्यादा जनजातीय छात्र इन स्कूलों में पढ़ाई भी करने लगे हैं। आदिवासी बच्चे देश के किसी भी कोने में हों, उनकी शिक्षा और उनका भविष्य मेरी प्राथमिकता है। 2004 से 2014 के बीच केवल 90 'एकलव्य स्कूल' खुले थे जबकि 2014 से 2022 तक हमने 500 से ज्यादा 'एकलव्य स्कूल' स्वीकृत किए हैं।

पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना इस वर्ष के बजट में शुरू की गई है जो वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण और विपणन सहायता प्रदान करेगी। यह आदिवासी समुदायों के लिए रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करेगा। देश जब आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को अपनी प्राथमिकता देता है, तो प्रगति के रास्ते अपने आप खुल जाते हैं। हमारी सरकार में 'वंचितों को वरीयता' के मंत्र को लेकर, देश विकास के नए आयाम को छू रहा है।

आदिवासी युवाओं को भाषा की बाधा के कारण बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता था लेकिन अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प भी खोल दिया गया है। अब हमारे आदिवासी बच्चे, आदिवासी युवा अपनी भाषा में पढ़ सकेंगे, आगे बढ़ सकेंगे।

आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जा रहा है। देश के हजारों गांव जो पहले वामपंथी उग्रवाद से ग्रसित थे उन्हें 4G कनेक्टिविटी से जोड़ा जा रहा है। यहां के युवा अब इंटरनेट और इंफ़्रा के जरिए मुख्यधारा से कनेक्ट हो रहे हैं।

जनजातीय मामलों के मंत्रालय के तहत जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ लिमिटेड (TRIFED) की यह एक वार्षिक पहल है। कार्यक्रम स्थल पर 200 से अधिक स्टालों में देश भर की जनजातियों की समृद्ध और विविध विरासत को प्रदर्शित करेगा। महोत्सव में लगभग 1000 आदिवासी कारीगर भाग लेंगे। 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इसलिए इस महोत्सव का फोकस हस्तशिल्प, हथकरघा, मिट्टी के बर्तन, आभूषण आदि जैसे सामान्य आकर्षणों के साथ आदिवासियों द्वारा उगाए गए श्री अन्न(अनाज) को प्रदर्शित करने पर होगा। क्लिक करके ये भी पढ़ें

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