शांति दूत बनकर सामने आए पीएम मोदी, जानें रूस-यूक्रेन के बीच कैसे बना रहे संतुलन

प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें दो महीनों में दोनों देशों की यात्रा भी शामिल है। उनकी कूटनीति ने भारत को वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में स्थापित किया है।

Yatish Srivastava | Published : Aug 30, 2024 1:59 AM IST / Updated: Aug 30 2024, 08:02 AM IST

 नेशनल न्यूज। पीएम नरेंद्र मोदी रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने के लिए काफी महत्वपूर्ण रोल निभा रहे हैं। इस प्रयास में उन्होंने लगातार दो महीने में रूस और यूक्रेन का दौरा भी किया है जिसका कुछ असर देखने को मिला है। रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक चाल ने भारत को वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में स्थापित कर दिया है। तीन दशकों में पहली कोई भारत का पीएम यूक्रेन यात्रा पर गया था। उनकी इस पहल ने विरोधी वैश्विक शक्तियों के बीच आपस में एक संतुलन बनाने की क्षमता को भी दर्शाया था। 

रूस और यूक्रेन से भारत के रिश्ते बेहतर
रूस और यूकेन दोनों ही देशों से भारत के संबंध काफी बेहतर हैं। इस युद्ध और अशांति के बीच पीएम मोदी शांति स्थापित करने वाले दूत के रूप में आगे आए हैं जिससे विश्व को काफी उम्मीदें मिली हैं। उन्होंने शांति स्थापित करने के लिए अवसर तलाशे हैं, चाहे वह जी20 शिखर सम्मेलन हो या फिर रूस और यूक्रेन का दौरा हो। रूस के साथ भारत के रिश्ते शीत युद्ध से हैं। 1971 में शांति, मित्रता और सहयोग को लेकर भारत-सोवियत संधि दोनों देशों के बीच मजबूत और पुराने रिश्तों को दिखाती है। रूस भारत का महत्वपूर्ण रक्षा भागीदार रहा है जो दशकों से देश को सैन्य उपकरण और तकनीकी के क्षेत्र में मदद करता आ रहा है।  की आपूर्ति कर रहा है। वहीं सोवियत संघ से स्वतंत्रत होने के बाद से यूक्रेन भी भारत के लिए महत्वपूर्ण भागीदार रहा है। रक्षा, शिक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों में यूक्रेन भारत का सहयोगी देश है।

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अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद भी नहीं झुका भारत
रूस और यूक्रेन के बीच जंग के बाद पश्चिमी देशों के दबाव के बाद भी भारत ने अपना रुख साफ रखा। दोनों देशों के संबंध बनाए रखना की चुनौती को पीएम मोदी ने खूब निभाया। रूस और यूक्रेन के बीच उन्होंने हमेशा बातचीत से हल निकालकर शांति बनाने पर जोर दिया। मोदी सरकार ने दोनों देशों के साथ बातचीत जारी रखी और किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के सामने नहीं झुका। कच्चे तेल की खरीद समेत रूस के साथ भारत के व्यापारिक सौदों से यह स्पष्ट भी होता है।

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