पंजाब सरकार ने मंगलवार केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को प्रस्ताव लाकर रद्द कर दिया। ऐसा करने वाला पंजाब देश का पहला राज्य बन गया है। इसके अलावा पंजाब सरकार केंद्र सरकार के कृषि संबंधी विधेयकों की जगह 3 नई विधेयक लेकर आई है। दरअसल, केंद्र सरकार ने मानसून सत्र में कृषि से संबंधित तीन बिल पास पास कराए थे। इन बिलों का पंजाब, हरियाणा में काफी विरोध हो रहा है।
चंडीगढ़. पंजाब सरकार ने मंगलवार केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को प्रस्ताव लाकर रद्द कर दिया। ऐसा करने वाला पंजाब देश का पहला राज्य बन गया है। इसके अलावा पंजाब सरकार केंद्र सरकार के कृषि संबंधी विधेयकों की जगह 3 नई विधेयक लेकर आई है। दरअसल, केंद्र सरकार ने मानसून सत्र में कृषि से संबंधित तीन बिल पास पास कराए थे। इन बिलों का पंजाब, हरियाणा में काफी विरोध हो रहा है। आईए जानते हैं कि पंजाब सरकार कौन से बिल लेकर आई है और ये केंद्र सरकार से कितने अलग हैं।
पंजाब सरकार लाई है ये बिल, जानिए क्या है इनमें खास
1- फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) स्पेशल प्रोविजंस एंड पंजाब अमेंडमेंट बिल: इस बिल में प्रावधान है कि गेहूं और धान को एमएसपी के बराबर या उससे ज्यादा ही खरीदा जा सकता है। अगर कोई एमएसपी से नीचे खरीदता है तो उसे 3 साल की सजा होगी।
2- द एसेंशियल कमोडिटीज (स्पेशल प्रोविजंस एंड पंजाब अमेंडमेंट) बिल: पंजाब सरकार के मुताबिक, यह बिल उपभोक्ताओं को कृषि उपज की जमाखोरी और कालाबाजारी से बचाता है और किसानों और खेत मजदूरों की आजीविका की रक्षा करता है।
3- द फार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज (स्पेशल प्रोविजंस एंड पंजाब अमेंडमेंट बिल): किसी फार्मिंग एग्रीमेंट के तहत एमएसपी से नीचे गेहूं और धान की खरीद नहीं हो सकती। जो इसका उल्लंघन करेगा, उसे 3 साल की सजा होगी।
इसके अलावा पंजाब सरकार ने नागरिक प्रक्रिया संहिता 1908 में संशोधन किया है। इसके मुताबिक, 2.5 एकड़ तक जमीन वाले किसान कुर्की नहीं होगी, ना ही रिकवरी में उसकी जमीन अटैच की जाएगी।
केंद्र सरकार के कृषि से संबंधित नए बिल क्या हैं?
1- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल 2020 : सरकार का कहना है कि इस कानून के आने के बाद अब किसानों के लिए सुगम और मुक्त माहौल तैयार होगा। किसान अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की आजादी होगी। किसान कहीं भी अपनी उपज को बेंच सकेगा। किसान के पास अब ज्यादा विकल्प होंगे। इससे किसान को बेहतर कीमत मिल सकेगी। इस कानून से कोई भी व्यक्ति, कंपनी या सुपर मार्केट किसान का माल कहीं से खरीद सकते हैं। बिल के तहत, राज्य सरकारें मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर कोई कर नहीं लगा सकते। यह बिल किसानों को इस बात की आजादी देता है कि वो अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचे। सरकार का कहना है कि इस बिल से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
2- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा कानून : सरकार का कहना है कि इससे किसानों को कांट्रैक्ट फार्मिंग में आसानी होगी। किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स तक पहुंच सुनिश्चित होगी। इसके तहत कांट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा। बड़ी-बड़ी कंपनियां किसी खास उत्पाद के लिए किसान से कांट्रैक्ट कर सकती हैं। किसानों को अच्छा दाम ना मिलने की चिंता खत्म हो जाएगी।
3- आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल : सरकार का कहना है कि जब भी ऐसे कृषि उपज की बंपर पैदावार होती है, जो जल्दी खराब हो जाती हैं, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। लेकिन अब आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दालें, प्याज और आलू आदि को इस एक्ट से बाहर किया गया है। इसके तहत व्यापारियों पर लिमिट से अधिक स्टोरेज पर लगी रोक हट गई है।
क्यों हो रहा इन बिलों का विरोध?
1- बिल का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि जब किसानों के उत्पाद की खरीद मंडी में नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पाएगी कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है या नहीं। इस बिल में एमएसपी की गारंटी नहीं दी गई है। किसानों का कहना है कि इसमें एमएसपी की गारंटी मिले, ताकि इससे कम रेट पर खरीद पर सजा हो सके।
2- विरोध करने वाले किसान संगठनों का कहना है कि किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जाएगा। केंद्र सरकार पश्चिमी देशों के खेती का मॉडल भारत में थोपना चाहती है। कांट्रैक्ट फार्मिंग में कंपनियां किसानों का शोषण करती हैं। उनके उत्पाद को खराब बताकर रिजेक्ट कर दिया जाता है। वहीं, व्यापारियों का कहना है कि जब बड़े मार्केट लीडर खेतों से ही किसानों की उपज खरीद लेंगे तो मंडी में कौन जाएगा।
3- वहीं, आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल को लोग बड़ी कंपनियों और बड़े व्यापारियों के हित में बता रहे हैं। विरोधियों का कहना है कि कंपनियां और सुपर मार्केट सस्ते दाम पर उपज खरीदकर अपने बड़े-बड़े गोदामों में उसका भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे।