Opinion: 1947 के विभाजन के नतीजों से निपटने का तरीका है नागरिकता कानून; राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर

Published : Jan 04, 2020, 04:13 PM IST
Opinion: 1947 के विभाजन के नतीजों से निपटने का तरीका है नागरिकता कानून; राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर

सार

नागरिकता कानून पर जारी विवाद के बीच एक अहम बिंदु पर जोर दिया जाना चाहिए। दरअसल, यह कानून 1947 में हुए भारत के विभाजन के नतीजों से निपटने का ही तरीका है। 

राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर

नागरिकता कानून पर जारी विवाद के बीच एक अहम बिंदु पर जोर दिया जाना चाहिए। दरअसल, यह कानून 1947 में हुए भारत के विभाजन के नतीजों से निपटने का ही तरीका है। 1950 की शुरुआत में, भारत और पाकिस्तान दोनों में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर नेहरू-लियाकत समझौता किया गया था। भारत में सभी धर्मों को समान अधिकार दिया गया, बावजूद इसके पाकिस्तान के संविधान ने अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया। ( ज्यादा जानकारी पाकिस्तान पर जैफ्रोलोट की किताब से ली जा सकती है। )

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का लगातार उत्पीड़न ही तथ्य बन गया। यही हाल इसाईयों का भी हुआ। जैसा हमने आसिया बीबी मामले में देखा। सलमान तासीर की हत्या के बाद पूरे एशिया में इसकी पुष्टि भी हो गई। 

20 वीं सदी में पाकिस्तान से आए शर्णार्थियों को अपने आप ही नागरिकता मिल जाती थी। जैसे मनमोहन सिंह भारत के नागरिक बने। नेहरू-लियाकत संधि में मुस्लिमों को पाकिस्तान और हिंदुओं को भारत में नागरिकता का जिक्र नहीं था। हालांकि भारत में ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी भी समुदाय से होने वाले राजनीतिक शरणार्थी नागरिक बन सकते हैं, लेकिन यह एक अलग प्रक्रिया है। 

हमारे पास धर्मनिरपेक्ष संविधान है जबकि पाकिस्तान में थियोक्रेसी (एक ऐसा राष्ट्र है, जहां एक धर्म गुरु भगवान के नाम पर शासन करता है) है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार एक वास्तिवकता है। ननकाना साहिब में गुरुद्वारे पर हुए हमले से इसकी पुष्टि भी होती है।

PREV

Recommended Stories

IndiGo Crisis: 9वें दिन चेयरमैन ने तोड़ी चुप्पी, कहा- 'ये हमारी चूक, माफ कर दीजिए'
SIR Deadline: यूपी-बंगाल समेत कई राज्यों में बढ़ सकती है डेडलाइन, आज बड़ा फैसला