Madhya Pradesh: दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स को मिला डायनासोर का दुर्लभ अंडा

डायनासोर (dinosaur) को दुनिया से विलुप्त हुए दशकों बीत चुके हैं लेकिन उसको लेकर लोगों में आज भी कौतूहल रहता है। आज भी लोग डायनासोर के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। 

नई दिल्ली. दिल्ली विश्वविद्यालय ने एक बयान में दावा किया है कि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक दल ने मध्य प्रदेश से एक ‘एग-इन-एग’ डायनासोर के अंडे की खोज की है। माना जा रहा है कि यह जीवाश्म संभवतः इतिहास में पहली बार सामने आया है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह खोज दुर्लभ और महत्वपूर्ण खोज है क्योंकि अब तक सरीसृपों का कोई डिंब-इन-ओवो अंडा नहीं पाया गया था। यह निष्कर्ष वैज्ञानिक रिपोर्ट पत्रिका के नवीनतम अंक में प्रकाशित किए गए हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि असामान्य टाइटानोसॉरिड डायनासोर अंडा एमपी के धार जिले के बाग इलाके से खोजा गया है। यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि क्या डायनासोर भी कछुए और छिपकलियों, या मगरमच्छ और पक्षियों की तरह ही प्रजनन किया करते थे। उन्होंने कहा कि मध्य भारत का अपर क्रेटेशियस लैमेटा फॉर्मेशन लंबे समय से डायनासोर के जीवाश्मों (कंकाल और अंडे के अवशेष दोनों) की खोज के लिए जाना जाता है। शोधकर्ताओं ने बाग शहर में पडलिया गांव के पास बड़ी संख्या में टाइटानोसॉरिड सॉरोपॉड घोंसलों का रिकार्ड दर्ज किया है। इन घोंसलों का अध्ययन करते समय ही शोधकर्ताओं को यह असामान्य अंडा मिला है।

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सामान्य से 10 गुना बड़ा है अंडा
रिसर्चर्स के दल ने असामान्य अंडे सहित 10 अंडों से युक्त एक सॉरोपॉड डायनासोर का घोंसला भी पाया है। जिसमें दो निरंतर और गोलाकार अंडे की परतें थीं, जो एक विस्तृत अंतर से अलग होती हैं। यह डिंब-इन-ओवो यानी दूसरे अंडे के अंदर एक अंडा वाले पक्षियों की याद दिलाती हैं। एक ही घोंसले में पैथोलॉजिकल अंडे के साथ-साथ आसन्न अंडे की सूक्ष्म संरचना ने इसे टाइटानोसॉरिड सॉरोपॉड डायनासोर के साथ पहचान कराई। बयान में कहा गया है कि अतीत में यह सुझाव दिया गया था कि डायनासोर का प्रजनन कार्य कछुओं और अन्य सरीसृपों के समान ही होता है। 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पेपर के प्रमुख लेखक डॉ हर्ष धीमान ने कहा कि डीयू के शोधकर्ता ने बताया टाइटानोसॉरिड घोंसले से डिंब-इन-ओवो अंडे की खोज से इस संभावना का पता चलता है कि सॉरोपॉड डायनासोर में मगरमच्छ या पक्षियों के समान एक डिंबवाहिनी आकार था। प्रोफेसर गुंटुपल्ली वी आर प्रसाद, जो प्रकाशित लेख के संबंधित लेखक हैं, ने इससे सहमति व्यक्त की है। बयान में कहा गया है कि नई खोज इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि मध्य और पश्चिमी भारत में डायनासोर के जीवाश्मों की काफी संभावनाएं हैं। जो डायनासोर की प्रजातियों की विविधता, घोंसले के व्यवहार और प्रजनन जीव विज्ञान पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

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