कोरोना पॉजिटिव लोगों ने यूं जीती जंगः 3 सबक से देश के पहले जर्नलिस्ट ने वायरस की बजा डाली बैंड

देश में हर दिन कोरोना के लाखों केस आ रहे रहे हैं। हजारों लोग मर भी रहे हैं, जबकि ठीक होने वालों की तादाद लाखों में है। फिर भी, इंसान मरने वालों का आंकड़ा देखकर डर और खौफ में जी रहा है। सबको लग रहा है हर कोई इस वायरस की चपेट में आ जाएगा, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। सावधानी, बचाव और पॉजिटिव सोच रखने वाले शख्स से यह बीमारी कोसों दूर भागती है।

Sushil Tiwari | Published : May 10, 2021 2:24 PM IST / Updated: May 18 2021, 06:30 PM IST

हरियाणाः  इंसान के हौसलों की पहचान मुसीबत के समय में ही होती है। यह समय भी भारत के लिए कठिन है। कोरोना संक्रमण ने जिंदगियों पर बुरा असर डाला है, लेकिन बहुत सारे लोगों ने महामारी के आगे घुटने नहीं टेके। ये लोग दूसरों के लिए मिसाल हैं। कोरोना संक्रमित होने के बावजूद इन लोगों ने आत्मबल बनाए रखा और महामारी को हराकर निकल आए। 

Asianetnews Hindi के सुशील तिवारी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना पॉजिटिव हुए लोगों से बातचीत की। समझने की कोशिश की कि आखिर इस खतरनाक बीमारी को उन्होंने कैसे हराया। गजब की हौंसला देने वाला कहानियां निकलकर आईं। कोरोना से जंग जीतने वाले कुछ हीरो हॉस्पिटलाइज्ड, कुछ होम आइसोलेशन में थे। हर किसी ने कोरोना को नजदीक से देखा है। लक्षण से लेकर टेस्ट करवाने और ठीक होने तक इन्होंने जो कुछ किया, वो हर किसी को हिम्मत देने वाला है।

Latest Videos

दूसरी कड़ी में पढ़िए हरियाणा के जुगल किशोर की हौसला देने वाली कहानी। उस दौरान ये देश के शायद पहले पत्रकार थे, जो कोरोना पॉजिटिव हुए थे। इन्होंने कोरोना को कैसे हराया, यह हर किसी को जानना चाहिए...। पढ़िए शब्दशः...

पहली कड़ी: कोरोना पॉजिटिव लोगों ने कैसे जीती जंगः 2 दिन बुरे बीते, फिर आया यूटर्न...क्योंकि रोल मॉडल जो मिल गया था

''मेरा नाम जुगल किशोर है, मूलतः हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले का रहने वाला हूं, फिलहाल भोपाल में जर्नलिस्ट हूं। 03 अप्रैल, शुक्रवार का दिन था। हल्की सी हरारत महसूस हुई थी। पेशे से एक जर्नलिस्ट हूं, इसलिए इस लक्षण को पूरी गंभीरता से लिया। संक्रमित कैसे हुआ यह भी मुझे पता था। ड्यूटी के दौरान मेरा संपर्क एक पुलिस वाले से हो गया था। उस समय कोरोना नया-नया आया था। सरकार अवेयरनेस को लेकर काफी एक्टिव थी, लेकिन लोग जागरूक नहीं हो रहे थे। 5 अप्रैल को टेस्ट करवाया, 8 को रिपोर्ट आ गई। पॉजिटिव था। घरवालों ने यह सुना तो सभी लोग नर्वस हो गए। उस समय होम क्वारंटाइन का चलन कम था। बिना देर किए शहर के एक बड़े हॉस्पिटल पहुंच गया। 5 दिन वहां था, इसके बाद दूसरे हॉस्पिटल में चला गया। यह इसलिए क्योंकि तब तक मेरे कई और साथी वहां पहुंच चुके थे। बड़ी वजह यह थी कि सरकार ने उस हॉस्पिटल को कोविड सेंटर बना दिया था। उस समय जेब से एक पैसा खर्च नहीं हुआ। सब कुछ सरकार देख रही थी। आप कपड़ा ले जाओ, इलाज कराओ और कपड़ा छोड़कर आ जाओ। मैं उस समय देश का शायद पहला ऐसा पत्रकार था, जो फील्ड में काम करते हुए कोरोना पॉजिटिव हुआ था।''

कोरोना का सबसे तगड़ा इलाज मुझे मिल गया था...

''15 दिन कैसे बीते, यह मैं ही जानता हूं। उस समय कोरोना को लेकर ज्यादा कुछ रिसर्च नहीं थी। चारों तरफ खौफ को देखकर डर गया था। कैसे ठीक होऊंगा, क्या होगा...मन में कई तरह के सवाल उफान मार रहे थे। इस डर के बीच मन में हिम्मत भी आ रही थी। उस हिम्मत का सोर्स कोई और नहीं बल्कि मेरा परिवार, पिता जी, पत्नी, दोस्त थे। कोरोना का सबसे तगड़ा इलाज हिम्मत ही थी। जो नर्वस हो गया उसके लिए इस लड़ाई को लड़ पाना मुश्किल था। 5 से 8 अप्रैल के बीच जबरदस्त फीवर, कफ, बॉडी में दर्द, भूख ना लगना, स्वाद समझ में ना आना...यह सब था। हॉस्पिटल में शुरुआत के 4-5 दिन तनाव में बीता, इसके बाद वहां पर मेरे जैसे और लोग मिल गए। उनको देखकर और मजबूत हो गया।''

बच्चों से नहीं कर पाता था वीडियो कॉलिंग क्योंकि...

''हॉस्पिटल में रहने के दौरान परिवार से बात करने में ज्यादा दिक्कत होती थी। क्योंकि परिवार भावुक कर देता था। पिता जी सबसे ज्यादा हिम्मत बनाते थे। पत्नी भी हौसला देती थी। बच्चों से वीडियो कॉलिंग नहीं कर पाता था। बच्चे बहुत छोटे हैं। एक पहली, दूसरा पांचवी में पढ़ता है। वो कोरोना को नहीं समझते थे। पूछने लगते थे- पापा आप कहां हो, कब आओगे। वो भावुकता वाला पल होता था। इसलिए परिवार के लोगों से कह दिया था- बच्चों से बात ना कराएं। इस बीमारी में हिम्मत चाहिए थी, लेकिन मैं भावुक हो जाता था।''

जल्दी ठीक हो जाऊं, इसके लिए घर से गांव तक पढ़ा जाने लगा मंत्र

''उधर, दूसरी तरफ मेरे राज्य हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ में चाचा, दादा-काका और गांव के लोग बैचन थे। शायद उनके जानने वालों में यह पहला केस था। पॉजिटिव होने की खबर जब लोगों ने सुनी तो वहां सन्नाटा छा गया था। इसके बाद सबने जो किया उसे सुनकर जानकर मेरे अंदर और ताकत आने लग गई। मुझे लगा अब इस बीमारी की बैंड बजा दूंगा। गांव में देवी जी का एक मंदिर है। जल्दी स्वस्थ हो जाऊं, इसके लिए रात-दिन महामृत्युंजय का पाठ होने लगा। यज्ञ-हवन किया जाने लगा। मंत्र जाप शुरू हो गया। रातभर जागकर जागरण होने लगा। दोस्तों ने महाकाल की मन्नत मां डाली। जो भी जानने वाले थे, वो अपने-अपने तरीके से मेरे जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करने लगे। पिता जी ने सख्त हिदायत दी थी कि जब भी टाइम मिले गायत्री मंत्र मन ही मन पढ़ते रहना। वाकई इस मंत्र ने मुझे चमत्कारिक एनर्जी दी।''

सीसीटीवी से देखकर होता था हाइटेक इलाज, डॉ. हौसला भी खूब बढ़ाते थे...

''मैंने महसूस किया, गंभीर बीमारी में इंसान भले हॉस्पिटल पहुंच जाता है लेकिन उसका कोई अपना नहीं होता है। इंसान अपनों का चेहरा देखने को तरस जाता है। जिस हॉस्पिटल में 5 दिन बाद शिफ्ट हुआ, वहां के डॉक्टर सीसीटीवी देखकर मरीजों को ऑपरेट करते थे, सिर्फ एक नर्स होती थी। अगर किसी मरीज का बीपी लो हुआ तो सीसीटीवी देखकर डॉक्टर तत्काल फोन करता था और बताता था फला दवाई ले लो। डॉक्टरों के पास ऑनलाइन रिपोर्ट पहुंच जाती थी। वो लोग भी जबरदस्त एनर्जी देते थे। मुझे याद है, एक दिन मेरा बीपी 99 था। यह देखकर एक डॉक्टर का कॉल आया। उन्होंने कहा- जुगल जी आप तो विराट कोहली से भी बढ़िया खेल रहे हो। आपका रिकवरी रेट शानदार है। इसी रफ्तार और इसी जुनून के साथ खेलते रहिए। डॉक्टर ने कहा था- पानी दबाकर पीना। 6 से 7 लीटर गुनगुना पानी पी जाता था।''

परिवार का जबरदस्त सपोर्ट, तभी बीमारी की बजा पाया बैंड

''एक और बात, आप किसी बीमारी से तभी लड़ सकते हैं, जब आपका परिवार आपके साथ हो। घर से पिता जी, पत्नी, चाचा का फोन आता था लेकिन कोई भी यह नहीं पूछता था कि बीपी की कंडीशन क्या है, रिपोर्ट क्या आई, कमजोरी तो नहीं है, सांस लेने में दिक्कत तो नहीं है, लंग्स बराबर काम कर रहा है या नहीं, फेफड़ों में पानी तो नहीं घुस गया है, नींद बराबर आ रही है या नहीं...। सबको पता था, अगर किसी ने निगेटिव बात की तो मैं और नर्वस हो जाऊंगा। मेरे परिवार ने जबरस्त सपोर्ट किया। सिंगल बार बीमारी को लेकर किसी ने कोई बात नहीं की। बार-बार किसी से अगर उसकी बीमारी के बारे में पूछा जाए तो वो ठीक होने के बजाय और डाउन होता चला जाता है। पेशेंट के दिमाग में कई तरह के भ्रम पैदा होने शुरू हो जाते हैं। कई बार कुछ जानने वालों का फोन आता था। वो बीमारी को लेकर निराश करने वाले सवाल पूछते थे। मेरा उनको स्ट्रेट जवाब होता था, फोन रखिए और फोन काट देता था।''

खुद को पॉजिटिव रखना था, इसलिए बना ली थी सोशल मीडिया से दूरी

''खुद को पॉजिटिव रखने के लिए मैंने एक और रास्ता निकाल लिया था। एक जर्नलिस्ट होकर भी मैंने उस दौरान सोशल मीडिया और न्यूज चैनल से खुद को अलग कर लिया। वहां हर दूसरी-तीसरी पोस्ट कोरोना से संबंधित होती थी। ऐसी खबरें अंदर बन रही हिम्मत को और डिस्टर्ब करती थीं। एक दिन सोशल मीडिया पर किसी मित्र ने कोरोना को लेकर लंबा-चौड़ा मैसेज पोस्ट किया। मुझे लगा भाई काफी जानकार जान पड़ता है। पलटकर फोन लगाया। पूछा- भाई साहब आप तो काफी जानकार मालूम पड़ते हैं। पता है उसने क्या कहा। बेशर्मों की तरह हंसते हुए बोला- मेरे पास यह पोस्ट कहीं से आई थी, इसलिए आगे बढ़ा दिया। उस दिन के बाद से मैंने सोशल मीडिया वालों से बात करना बंद कर दिया। हालांकि यह सिर्फ हॉस्पिटल में रहने के दौरान ही था। चैनल और सोशल मीडिया से दूरी तो बना ली लेकिन समय काटने के लिए मैंने फिल्म देखना स्टार्ट कर दिया। कॉमेडी सीरियल, कॉमेडी फिल्में, मोबाइल में गेम खेलने को आदत बना ली।''

रिपोर्ट नेगेटिव आ जाए, इसके लिए शुरू हो गया था पूजा-पाठ

''15 दिन वहां था। 14वें दिन मेरा एक बार फिर कोरोना टेस्ट हुआ। उस समय रिपोर्ट निगेटिव आना एक अचीवमेंट माना जाता था। जिस दिन मेरी रिपोर्ट आनी थी, उससे पहले मेरे घर, गांव में पूजा-पाठ में तेजी आ गई। मैं खुद भगवान से प्रार्थना करने लगा था। मुझे याद है, रिपोर्ट निगेटिव आने पर कई डॉक्टर और अधिकारियों का बधाई देने के लिए फोन आया। गांव में जश्न शुरू हो गया। घर में मिठाइयां बंटने लगीं। उस दिन बहुत खुश था। रिपोर्ट देखकर खूब रोया। सबसे पहले पिता जी को फोन किया, उन्होंने कहा- बहुत अच्छा...और फोन काट दिया। बाद में पता चला उनका भी आंसू बह निकला था।''

''27 अप्रैल को हॉस्पिटल से घर आ गया। इसके बाद 14 दिन तक और आइसोलेशन में रहा। अब मैं पूरी तरह से फिट और एनर्जेटिक फील कर रहा था।''

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona

Share this article
click me!

Latest Videos

दारोगा की घूस में निपट गए दीवानजी, घसीटते ले गई टीम #Shorts
गैस से क्रेडिट कार्ड तक...1 अक्टूबर से बदल जाएंगे 5 नियम । 1 October New Rule
बदलापुर कांड में नया सस्पेंस, वैन में मिले धब्बे और रिपोर्ट ने भी उड़ाए होश । Badlapur Akshay Shinde
आखिर क्यों 32 दिन में दोबारा जेलेंस्की से मिले PM Modi, सामने आया बड़ा प्लान
अमित शाह की कौन सी बात बांग्लादेश को चुभ गई, भारत को दे डाली सलाह । Amit Shah । Bangladesh