सार

कोरोना को लेकर जितनी दहशत है, हकीकत उससे बहुत अलग है। लाखों केस देखकर हर इंसान डरा हुआ है। हर किसी को यही लग रहा है कि यह बहुत बड़ा हौवा है। इससे कोई ठीक नहीं होगा। यह वायरस सबकुछ खत्म कर देगा। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। 

भोपाल. आपकी सावधानी, आपका बचाव और आपकी सोच इस बीमारी को किसी दवा से जल्दी ठीक कर सकती है। Asianetnews Hindi के सुशील तिवारी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना पॉजिटिव हुए लोगों से बातचीत की। समझने की कोशिश की कि आखिर इस खतरनाक बीमारी को उन्होंने कैसे हराया। गजब की हौंसला देने वाला कहानियां निकलकर आईं। कोरोना से जंग जीतने वाले कुछ हीरो हॉस्पिटलाइज्ड, कुछ होम आइसोलेशन में थे। हर किसी ने कोरोना को नजदीक से देखा है। लक्षण से लेकर टेस्ट करवाने और ठीक होने तक इन्होंने जो कुछ किया, वो प्रेरणा देने वाला है।

पहली कड़ी में पढ़िए भोपाल के अमित जैन की प्रेरणा देने वाली कहानी। जैन कोरोना पॉजिटिव हुए थे। इन्होंने कोरोना को कैसे हराया, यह हर किसी को जानना चाहिए...। पढ़िए शब्दशः...

''मेरा नाम अमित जैन (47) है। भोपाल का रहने वाला हूं। पत्नी, दो बच्चे, माता-पिता ये परिवार है। मंडीदीप में मेरी फैक्ट्री है। उस दिन 15 सितंबर था। हल्का फीवर, शरीर में अजीब सी जकड़न, आंखों में जलन महसूस हुई। घर में रखी पैरासीटामॉल की गोली थी, उसे खा लिया। घरवालों ने सलाह दी- बिना डॉक्टर के दवाई ना लो। मन अंदर से बेचैन था। ऊट-पटांग ख्यालों के जद्दोजहद में जैसे-तैसे दिन बीत गया। 16 सितंबर को सुबह-सुबह सरकारी हॉस्पिटल पर कोरोना का टेस्ट करवाने पहुंचा। रिपोर्ट शाम को आनी थी, इसलिए माइंड में अब एक ही बात चल रही थी कि पता नहीं क्या होगा। पत्नी अलग सोच में पड़ गई थी। हम दोनों सोच रहे थे, लेकिन एक दूसरे से कुछ कह नहीं पा रहे थे। आखिरकार शाम को रिपोर्ट आ गई। जो डर था, वही निकला। पॉजिटिव।''

अलर्ट ना होता तो बीमारी हावी हो गई होती...

''15 को फीवर आया और 16 को टेस्ट। मैं इस मामले में कुछ ज्यादा ही एक्टिव था। बड़ा सबक यह मिला कि बिना देर किए अगर टेस्ट करवा लें तो समय रहते बेहतर इलाज मिल सकता है। अगर समय पर दवाई मिल जाती है तो हालात कंट्रोल में रहते हैं। मैंने कई केस बिगड़ते देखे थे। कई लोगों को इसलिए मरते देखा क्योंकि वो मेडिकल से दवाई खाते रहे, जब केस बिगड़ा तो टेस्ट करवाने भागे। नतीजा- मामला हाथ से निकल चुका था। इसलिए निवेदन है- लक्षण दिखने पर बिना देर किए सबसे पहले टेस्ट करवाएं। एक दिन का भी लेट सबकुछ खत्म कर सकता है।''

''16 सितंबर या कह लें 15 तारीख को ही मैं आइसोलेट हो गया था। मेरे पास नगर निगम से अटैच्ड डॉक्टरों का लगातार फोन आया। उन्होंने पूछा- आपको कोई दिक्कत तो नहीं है। कोई मेडिसिन तो नहीं चाहिए। मैंने मना कर दिया। क्योंकि फेमली डॉक्टर से मेडिसिन लिखवा ली थी। 6 दिन में मैं पूरी तरह से ठीक भी हो गया। इस दौरान मेरा बाथरूम अलग था, मेरे बर्तन अलग थे। 24 घंटे कैद रहता था। दरवाजा भी नहीं खोलता था। 10 फीट दूर मौजूद पत्नी से फोन पर बात करता था।''

2 दिन बहुत खतरनाक बीते, तीसरा दिन यूटर्न वाला था...

''16-17 सितंबर। शुरुआत के दो दिन खतरनाक बीते। उन दिनों को यादकर सिहर जाता हूं। बुरे ख्याल आ रहे थे। मोबाइल पर बार-बार पॉजिटिव वाली रिपोर्ट देख रहा था और सोच रहा था अब क्या होगा, परिवार का क्या होगा, मेरे बच्चों को कौन देखेगा, अब बचूंगा या नहीं...। लेकिन यह सिर्फ दो दिन था। तीसरे दिन मेरे अंदर जैसे किसी ने जादू कर दिया। 18 सितंबर को मेरे मन में अचानक से एक पॉजिटिव ख्याल आया, ‘’100 में से एक आदमी की मौत हो रही है। 99 लोग ठीक भी हो रहे हैं, तो मैं उस एक आदमी को अपना बेंचमार्क क्यों मानूं। ठीक हो रहे 99 लोगों को मैं अपना रोल मॉडल क्यों ना बना लूं। गलत और नेगेटिव सोचने का वो आखिरी दिन था। इसके बाद से मेरे मन में कभी बुरे विचार नहीं आए।''

शुरुआत के दो दिन में वो सब कर डाला जो कभी ना किया था...

''मुझे कुछ हो गया तो परिवार का भरण-पोषण कैसे चलेगा। इसलिए सबसे पहले LIC वाले को फोन लगाया। पूछा- भाई मेरी सभी पॉलिसी में नॉमिनी कौन-कौन है। मेच्योरिटी कब होने वाली है। कौन सी LIC कितने अमाउंट की है। मेच्योरिटी के बाद ये पैसा किसको मिलेगा। पैसा मिलने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी। मेरे ऊटपटांग सवाल सुनकर एजेंट भी सकपका गया। वो बार-बार बोल रहा था, सर आप परेशान क्यूं हो रहे हैं। कुछ नहीं होगा। पॉजिटिव रहिए। बैंक में भी फोन कर डाला। सेम सवाल वहां भी करने लगा। हर तरफ से भरोसा मिलता था।''

मुझे लगातार बात करता देख परेशान हो गई थी पत्नी

''शेयर मार्केट के एजेंटों से भी बात कर डाली। पूछा- मेरा कौन सा और कितना शेयर पड़ा है। किसका रेट क्या चल रहा है। अभी बेंच दूं तो कितना पैसा मिलेगा, कब तक पैसा आ जाएगा। पैसा किस खाते में जाएगा। हालांकि ये सभी बातें मुझे पता थीं लेकिन तसल्ली के लिए ये सवाल तूफान बनकर अंदर उबल रहा था। इस बीच ये बातें मैंने अपने तक ही रखीं थीं। मुझे लगातार फोन पर बात करता हुआ पत्नी ने सुन लिया था। वो सीधा पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, इसलिए फोन करती थी। पूछती थी- कुछ चाहिए तो नहीं। 10-10 मिनट पर उसका फोन आता था। उसका मकसद यही था कि मैं परेशान हूं। वो बातें मैं उसके साथ भी शेयर करूं। लेकिन ये घटिया सवाल सिर्फ दो दिन थे, इसके बाद तो मेरा पॉजिटिव थिंकिंग वाला घोड़ा दौड़ने लगा।''

डॉक्टर ने लगाई फटकार, कहा- सिर्फ 5 दिन में मैं तुम्हें दौड़ा दूंगा लेकिन...

''मेडिक्लेम वाले को फोन लगाकर डांटा। कहा- मैं कोरोना पॉजिटिव हूं। मेरे इलाज का पैसा मिलेगा या नहीं। मैंने जो मेडिक्लेम करवाया है, उसका पैसा कब मिलेगा। तुम लोग किसको पैसा दोगे। वो चुपचाप सुन रहा था और मैं उसे लगातार डांटे जा रहा था। जवाब आया- सर, आप डरिए मत। भगवान ना करे आपको कुछ हो। लेकिन अगर कुछ होता है तो आपका पैसा सुरक्षित है। सबकुछ परिवार को मिल जाएगा। भाभी जी नॉमिनी हैं। बाकी आपका पूरा इलाज मैं करवाऊंगा। बताइए, कहां एडमिट होना चाहते हैं। मैं आपको हॉस्पिटल की लिस्ट दे देता हूं। लेकिन प्लीज आप पॉजिटिव थिंकिंग कीजिए। इन लोगों से बात करने के बाद मैंने फेमली डॉक्टर को भी कॉल लगाया। उल्टा वो मुझे सुनाने लगे। कहा- बहुत बेकार आदमी हो। तुम्हे कुछ नहीं हुआ है। तुम पूरी तरह से ठीक हो। सिर्फ 5 दिन में मैं तुम्हें दौड़ा दूंगा। उल्टा मत सोचो।''

पॉजिटिव सोच को एनर्जी मिले इसलिए खूब देखें बच्चों वाली फिल्में

''तीसरे दिन से कपाल भारती, अनुलोम-विलोम स्टार्ट कर दिया। अब अच्छा लगने लगा। अच्छा सोचने पर मन भी प्रसन्न रहने लगा। सुबह बढ़िया नाश्ता मिल जाता था। पुरानी किताबों को सर्च करके निकाला। स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस की किताब सबसे पहले पढ़ीं। इनसे एनर्जी मिलने लगी। साहस और हिम्मत आने लगा। लगने लगा मुझे तो कुछ हुआ ही नहीं है। इतनी हिम्मत आ गई कि तीसरे दिन कुछ देर के लिए मोबाइल पर ऑफिस का काम भी कर डाला। कमजोरी तो लगती थी, लेकिन सोचता था बिजी रहूंगा तो फालतू के ख्याल नहीं आएंगे। दिमाग थक जाएगा तो नींद भी अच्छी आएगी। दोपहर में तीन-चार घंटे बढ़िया सोता था। दिनभर गैप दे-देकर फल-फ्रूट, काढ़ा, गर्म पानी यही सब चलता था। शाम को लैपटॉप खोलकर बैठ जाता था। उसमें बच्चों के लिए कई फिल्में डाउनलोड थीं। कोरोना ने बच्चा भी बना दिया। जो फिल्में कभी नहीं देखीं, वो सब देख डाली। हैरीपॉटर, कार्टून मूवी कई बार देखीं।''

बुरे वक्त में आपने जो संबंध बनाए होते हैं, वही आते हैं काम

''कोरोना ने एक बड़ा सबक यह दिया कि बुरे वक्त पर आपने जो संबंध बनाए हैं, वो बहुत काम आते हैं। सब्जी वाला खुद फोन करके सब्जी दे जाता था। दूध वाला दो-तीन बार फोन करता था। ब्रेड-बिस्किट तक के लिए फोन आता था। कपड़े इस्त्री नहीं करवाने थे, फिर भी वो फोन करके पूछता था भैया-भाभी कोई जरूरत तो नहीं है। यह सब देखकर सुकून मिलता था। लगता था पैसा तो कोई भी कमा सकता है, लेकिन मौका मिलने पर इंसान भी कमाना चाहिए। बुरे वक्त में वही काम आते हैं। 10 दिन कैद था। इस बीच पत्नी ने इतना खिलाया कि वजन बढ़ गया। 11वें दिन टेस्ट कराया तो रिपोर्ट नेगेटिव आ गई। 4 दिन घर में और कैद रहा। इस दौरान बच्चों के साथ खूब मस्ती की।''

कोरोना कोई हौवा नहीं, हॉस्पिटल का ख्याल मन में मत लाओ...

''एक बात समझ में आई कि ज्यादातर कोरोना पॉजिटिव लोग घर पर आराम से ठीक हो सकते हैं। ये कोई हौवा नहीं है। सड़ा हुआ हॉस्पिटल भी एक बेड के लिए 20 से 25 हजार रु. चार्ज करता है। आदमी मरा जा रहा है कि कैसे भी करके एक बेड मिल जाए। अगर देखा जाए तो 60 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनको बेड की जरूरत नहीं है। वो घर पर ठीक हो सकते हैं, लेकिन वो इतना डरा हुआ होता है कि सबसे पहले बेड तलाश करता है। कोरोना का नाम सुनते ही वो सोचने लगता है कि अब मैं मर जाऊंगा, लेकिन मेरा दावा है 60 फीसदी लोग घर पर ठीक हो सकते हैं।''


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