जानें कैसे स्वतंत्र देश के रूप में दुनिया के नक्शे पर उभरा भारत, कैसे तय हुआ संवैधानिक राजतंत्र से लोकतांत्रिक गणराज्य तक का सफर

आज भारत अपना स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) मना रहा है। इस मौके पर आइए जानते हैं कि कैसे भारत एक स्वतंत्र देश के रूप में दुनिया के नक्शे पर उभरा और किस तरह संवैधानिक राजतंत्र से लोकतांत्रिक गणराज्य तक का सफर तय किया गया।

 

नई दिल्ली। आज भारत पूरे हर्षोल्लास के साथ आजादी का पर्व मना रहा है। आज भारत जिस मुकाम पर है उसकी नींव 76 साल पहले 15 अगस्त 1947 को देश को मिली आजादी के साथ रखी गई थी। भारत ने एक स्वतंत्र देश के रूप में दुनिया के नक्शे पर उभरा। इसने संवैधानिक राजतंत्र से लोकतांत्रिक गणराज्य तक का मुश्लिक सफर तय किया।

भारत को आजादी विभाजन के दर्द के साथ मिली थी। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने भारत को विभाजित करने के फैसले को विधायी आकार दिया था। अंग्रेजों ने जब देखा कि अब और वक्त तक भारत को गुलाम रखना संभव नहीं है तो उन्होंने लौटने का फैसला किया। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि भारत का पूरा भूभाग एक मुल्क के रूप में आजाद हो। ऐसा होता तो भारत दुनिया की बड़ी ताकत बन जाता। अंग्रेजों ने भारत को बांटने का फैसला किया ताकि यह आजाद तो हो, लेकिन कमजोर देश बनकर रहे।

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1947 में माउंटबेटन के भारत आने से बहुत पहले से ही धार्मिक आधार पर भारत को बांटने की तैयारी चल रही थी। इसके लिए नक्शे बनाए गए। कांग्रेस के प्रतिनिधित्व वाले भारतीय पक्ष और पाकिस्तान के प्रस्तावक मुस्लिम लीग के बीच सहमति नहीं बन रही थी। माउंटबेटन के भारत आने से ब्रिटेन के बाहर निकलने में तेजी आई। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम को ब्रिटिश संसद द्वारा पास किया गया। 18 जुलाई 1947 इसपर शाही मुहर लगी। इस अधिनियम ने भारत की स्वतंत्रता की तारीख 15 अगस्त 1947 तय की थी। पाकिस्तान को एक दिन पहले स्वतंत्रता दी गई थी ताकि दोनों देशों के समारोहों में माउंटबेटन की भागीदारी को सुविधाजनक बनाया जा सके।

जल्दबाजी में बनाई गई भारत-पाकिस्तान की सीमाएं

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाएं तय करने का काम जल्दबाजी में एक महीने में पूरा किया गया था। सभी स्टेकहोल्डर्स इसे स्वतंत्रता दिवस से पहले पूरा करना चाहते थे। वे जानते थे कि इससे बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होंगे और सांप्रदायिक दंगे होंगे। अंत में वही हुआ। दंगों में 10 लाख से अधिक लोग मारे गए। 1.5 करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ा।

पंजाब और बंगाल में सीमा रेखाएं खींचने का काम ब्रिटिश अधिकारी सर सिरिल रैडक्लिफ को दिया गया था। उन्होंने दो सीमा आयोगों का नेतृत्व किया। एक पंजाब के लिए और दूसरा बंगाल के लिए थी। उन्हें पहले से भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। 8 जुलाई 1947 को वह पहली बार भारत आए थे। रैडक्लिफ जल्दबाजी में सीमा रेखाएं खींचने का काम किया।

रियासतों का एकीकरण

अंग्रेजों ने भारत को एक नहीं होने दिया था। देश छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था। 550 से अधिक रियासतें थी, जिन्हें अर्ध-स्वायत्त दर्जा प्राप्त था। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने उन्हें भारत या पाकिस्तान के साथ जुड़ने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया। निर्णय भौगोलिक निकटता और आबादी की प्राथमिकताओं के आधार पर किया जाना था। भारत के उपप्रधान मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने अधिकांश रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत किया। कूटनीतिक बातचीत, अनुनय और कुछ मामलों में सैन्य हस्तक्षेप के माध्यम से उन्होंने अधिकतर रियासतों को भारत में मिला लिया था। हालांकि, हैदराबाद और जूनागढ़ (वर्तमान गुजरात में) की रियासतें इसके लिए तैयार नहीं थीं।

जूनागढ़ पर नवाब मुहम्मद महाबत खान III का शासन था। मुख्य रूप से हिंदू आबादी होने के बावजूद नवाब ने पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया, जिससे अशांति फैल गई। भारतीय सेनाओं ने हस्तक्षेप किया और बाद में हुए जनमत संग्रह में जूनागढ़ देश का हिस्सा बन गया। वहीं, हैदराबाद में निजाम मीर उस्मान अली खान आजादी चाहते थे। उन्हें अपने राज्य की भौगोलिक स्थिति के साथ-साथ हिंदू बहुसंख्यक आबादी के कारण दबाव का सामना करना पड़ा। सितंबर 1948 में पटेल ने एक सैन्य अभियान चलाया। चार दिन चले युद्ध के बाद हैदराबाद का भारतीय संघ में विलय हो गया।

जम्मू-कश्मीर में महाराजा हरि सिंह मुस्लिम बहुल राज्य के शासक थे। उन्होंने स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी, लेकिन पाकिस्तान द्वारा भेजे गए भाड़े के सैनिकों द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के बाद, उन्होंने भारत में विलय कर लिया। इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, जिसके चलते कश्मीर का कुछ हिस्सा आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है।

संवैधानिक राजतंत्र से लोकतांत्रिक गणराज्य

भारत को स्वतंत्रता मिलने के साथ ही 9 दिसंबर 1946 को अंतरिम सरकार द्वारा गठित संविधान सभा ने शासन का कार्यभार संभाला था। इसके सदस्यों ने नए संविधान का मसौदा तैयार करने तक देश की अस्थायी संसद के रूप में कार्य किया। संविधान सभा में विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के 389 सदस्य थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष थे। डॉ बी आर अंबेडकर ने संविधान की मसौदा समिति की अध्यक्षता की।

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संविधान का अंतिम मसौदा 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था। 26 जनवरी 1950 को सुबह 10.18 बजे अंतिम गवर्नर-जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारत को एक गणतंत्र घोषित किया। क्योंकि उसी समय संविधान लागू हुआ था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद 31 तोपों की सलामी के साथ शपथ लेने वाले पहले राष्ट्रपति बने। इसने भारत संवैधानिक राजतंत्र से लोकतांत्रिक गणराज्य बना।

तिरंगा और राष्ट्रगान

आजादी मिलने से कुछ सप्ताह पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने कांग्रेस के झंडे में चरखे की जगह केंद्र में अशोक चक्र के साथ केसरिया-सफेद-हरा तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में चुना। 24 जनवरी 1950 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जन गण मन को राष्ट्रगान और वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत घोषित किया।

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