40 साल बाद बग्घी पर निकली राष्ट्रपति की सवारी, जानें क्या है इसकी खासियत और कहानी

गणतंत्र दिवस 2024 के परेड की सलामी लेने के लिए जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सोना जड़ित बग्घी से पहुंची तो लोगों में कौतूहल बढ़ गया। क्योंकि भारत में इस बग्घी का इस्तेमाल 40 साल पहले बंद कर दिया गया था।

 

President Buggy. गणतंत्र दिवस परेड के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और चीफ गेस्ट फ्रांसिसी राष्ट्रपति एमानुए मैंक्रो राजशाही बग्घी से कर्तव्य पथ पहुंचे। यह ऐतिहासिक बग्घी है लेकिन इसका इस्तेमाल 40 साल पहले ही बंद कर दिया गया था। इस बग्घी के भारत आने की कहानी भी कम रोचक नहीं है। इस साल गणतंत्र दिवस परेड में पहुत कुछ पहली बार हुआ है और राष्ट्रपति की सवारी भी इसमें से एक रही।

पाकिस्तान से टॉस जीतकर भारत ने पाई थी बग्घी

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15 अगस्त 1947 को जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो दो भाइयों के बीच बंटवारे की तरह हर सामान का बंटवारा होने लगा। हर चीज का बंटवारा करने के लिए भारत की तरफ से एचएम पटेल और पाकिस्तान की तरफ से चौधरी मोहम्मद अली को प्रतिनिधि बनाया गया। सभी चीजों को 2-1 के अनुपात में बांटा जा रहा था। जब बारी राष्ट्रपति के बग्घी की आई तो मामला फंस गया क्योंकि बग्घी तो एक ही थी। मामला फंसता देख एक कमांडेंट ने आइडिया दिया कि टॉस के सहारे इसका फैसला किया जाए। फिर क्या था सिक्का उछाला गया और भारत ने टॉस से यह बग्घी जीत ली। लेकिन बाद में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो बग्घी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था।

 

 

प्रथम राष्ट्रपति ने की थी पहली सवारी

ब्रिटिश शासन के दौरान वायसराय इस बग्घी का इस्तेमाल करते थे लेकिन आजादी के बाद राष्ट्रपति ने इसका प्रयोग करना शुरू की। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बग्घी की पहली सवारी की थी। इसके बाद कई राष्ट्रपतियों ने इस ऐतिहासिक बग्घी की सवारी की। इसकी खासियत यह है कि इसे घोड़े ही खींचते हैं और इस पर कई तरह से हीरे जवाहरात जड़े हैं। सोने की प्लेटिंग की गई है। आजादी से पहले इसे 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े खींचते थे लेकिन बाद में सिर्फ 4 घोड़े ही इसे खींचते हैं। 2014 में बीटिंग रिट्रीट के दौरान प्रणब मुखर्जी ने बग्घी की सवारी की थी। इसके बाद रामनाथ कोविंद ने भी सवारी की लेकिन गणतंत्र दिवस परेड में 40 साल बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बग्घी की सवारी की।

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