
संघ का शताब्दी समारोह: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को 100 साल हो चुके हैं। 2 अक्टूबर यानी दशहरे के मौके पर संघ अपना शताब्दी महोत्सव मना रहा है। इसके तहत 2 अक्टूबर 2025 से लेकर 20 अक्टूबर 2026 तक देशभर में सात बड़े आयोजन किए जाएंगे। इस मौके पर 1 अक्टूबर को पीएम मोदी ने राष्ट्र के विकास में RSS के योगदान को बताने वाला स्मारक डाक टिकट और 100 रुपए का एक सिक्का भी जारी किया। इस मौके पर उन्होंने कहा, संघ के स्वयंसेवक निरंतर देश की सेवा में लगे हुए हैं। वे समाज को मजबूत कर रहे हैं। इसके लिए मैं देशवासियों को बधाई देता हूं।
एक राष्ट्रवादी संगठन के रूप में 27 सितंबर 1925 को नागपुर में केशव बलिराम हेडगेवार ने दशहरे के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी थी। इसका उद्देश्य नागरिकों में सांस्कृतिक जागरूकता, अनुशासन, सेवा और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देना था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए एक एक जन-पोषित आंदोलन है। संघ का मुख्य जोर देशभक्ति और राष्ट्रीय चरित्र निर्माण पर है। इसका प्रयास लोगों में मातृभूमि के प्रति समर्पण, अनुशासन, संयम, साहस और वीरता का संचार करना है।
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केशव हेडगेवार बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी थे। 1920 में तिलक के निधन के बाद उनके अन्य अनुयायियों की तरह हेडगेवार ने भी महात्मा गांधी द्वारा लिए गए कुछ फैसलों का विरोध किया। खासकर वे गांधी द्वारा खिलाफत आंदोलन को समर्थन देने के बिल्कुल भी पक्ष में नहीं थे। इसके अलावा गोरक्षा भी कांग्रेस के एजेंडे में शामिल नहीं थी। ऐसे में हेडगेवार और तिलक के कुछ अनुयायियों ने गांधी से नाता तोड़ लिया। इसके बाद 1921 में हेडगेवार को उनके कुछ भाषणों पर देशद्रोह का आरोप लगाते हुए जेल में डाल दिया गया। हालांकि, जुलाई 1922 में वे रिहा हुए। इसके बाद उन्हें एक ऐसा संगठन बनाने की जरूरत महसूस हुई, जिसका उद्देश्य राष्ट्रवादी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्र निर्माण करना हो। इसी, बीच 1923 में नागपुर में हिंदू विरोधी दंगे हुए, जिसके बाद हेडगेवार ने हिंदू समाज को संगठित करने की ठान ली।
पिछले 100 सालों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत से बाहर पूरे विश्व में पहुंच चुका है। इसकी शाखाएं दुनियाभर के 39 देशों में चल रही हैं। वर्तमान में आरएसएस के 14,35,980 स्वयंसेवक हैं। संघ की पहली शाखा नागपुर में मुट्ठी भर युवाओं के साथ शुरू हुई थी। धीरे-धीरे अन्य प्रांतों में भी शाखाएं लगने लगीं। बता दें कि संगठन ने अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य को अपनाया है। इस रास्ते पर लगातार आगे बढ़ने के लिए संघ ने एक अनुशासित कार्य पद्धति अपनाई है, जिसके तहत शाखाओं का दैनिक और नियमित संचालन किया जाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सबसे अहम पद संघ प्रमुख यानी सरसंघचालक का होता है। इनका चयन संघ की "प्रतिनिधि सभा" की बैठक में होता है। हालांकि, संघ का अपना लोकतांत्रिक ढांचा है, लेकिन अंतिम निर्णय सरसंघचालक का ही होता है। अब तक के संघ के इतिहास में ऐसा रहा कि हर सरसंघचालक अपना उत्तराधिकारी खुद चुनता आया है। संघ में अब भी ये परंपरा चल रही है।
| क्रमांक | सरसंघचालक का नाम | अवधि |
| 1- | डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार | 1925 से 1940 तक |
| 2- | माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर | 1940 से 1973 तक |
| 3- | मधुकर दत्तात्रेय देवरस | 1973 से 1994 तक |
| 4- | प्रोफेसर राजेंद्र सिंह | 1994 से 2000 तक |
| 5- | कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन | 2000 से 2009 तक |
| 6- | डॉक्टर मोहनराव मधुकरराव भागवत | 2009 से वर्तमान तक |
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