आरएसएस चीफ मोहन भागवत का बड़ा बयान: पुजारियों ने समाज में मतभेद पैदा कर जातियां बनाई, भगवान ने जाति नहीं बनाई

संत रोहिदास का कद तुलसीदास, कबीर और सूरदास से भी बड़ा है इसलिए उन्हें संत शिरोमणि माना जाता है। यद्यपि वह शास्त्रार्थ में ब्राह्मणों को नहीं जीत सके लेकिन वह कई दिलों को छूने में सक्षम थे।

RSS Chief Mohan Bhagwat on caste system: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने समाज के जाति प्रथा पर जोरदार प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि पुजारियों ने इस समाज को जातियों में बांट दिया। भगवान ने जाति नहीं बनाई थी। धरती पर सब समान हैं, मनुष्य का जन्म होता है तो वह जातियों में नहीं बंटा होता। भगवान ने कोई भेद नहीं किया। पुजारियों ने जाति बनाकर बांट दिया।

संत शिरोमणि रोहिदास की 647वीं जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पहुंचे थे। रविंद्र्र नाट्य मंदिर में आयोजित इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देश में विवेक और चेतना सभी समान हैं, बस राय अलग है। भागवत ने कहा कि जब हम आजीविका कमाते हैं, तो समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी होती है। जब हर काम समाज की भलाई के लिए होता है, तो कोई काम बड़ा, छोटा या अलग कैसे हो सकता है?

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पुजारियों ने मतभेद पैदा कर जातियां बनाई

मोहन भागवत ने कहा कि हमारे निर्माताओं के लिए हम समान हैं। कोई जाति या संप्रदाय नहीं है। ये मतभेद हमारे पुजारियों द्वारा बनाए गए थे जो गलत था। उन्होंने कहा कि संत रोहिदास का कद तुलसीदास, कबीर और सूरदास से भी बड़ा है इसलिए उन्हें संत शिरोमणि माना जाता है। यद्यपि वह शास्त्रार्थ में ब्राह्मणों को नहीं जीत सके लेकिन वह कई दिलों को छूने में सक्षम थे। उन्होंने लोगों के मन में भगवान में विश्वास पैदा किया।

संत रोहिदास का मानना था कि धर्म केवल अपना पेट भरना नहीं है। वह कहते थे कि अपना काम करो और अपने धर्म के अनुसार करो। समाज को एकजुट करो और उसकी प्रगति के लिए काम करो क्योंकि धर्म यही है। ऐसे विचारों और उच्च आदर्शों के कारण ही कई बड़े नाम संत रोहिदास के शिष्य बने।

संत शिरोमणि रोहिदास के चार मंत्र

आरएसएस चीफ भागवत ने कहा कि संत रोहिदास ने समाज को चार मंत्र दिए- सत्य, करुणा, आंतरिक पवित्रता और निरंतर परिश्रम और प्रयास। उन्होंने कहा कि अपने आस-पास जो कुछ भी हो रहा है उस पर ध्यान दो लेकिन किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म को मत छोड़ो। जबकि धार्मिक संदेशों को संप्रेषित करने का तरीका अलग है, संदेश स्वयं एक ही हैं। अन्य धर्मों के लिए द्वेष के बिना व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करना चाहिए।

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