डॉ.अंबेडकर भी धर्म पर जोर देते थे, दुनिया के महापुरुषों ने आध्यात्म को धर्म का आधार बनाया: मोहन भागवत

भागवत ने कहा कि संतों, महात्माओं, साधु-संन्यासियों के आध्यात्म का मूल धर्म ही रहा है। आप किसी भी संत, महात्मा, साधु-संन्यासी या रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी या अंबेडकर जैसे महापुरुषों को देखिए सबने धर्म को प्रमुख स्थान दिया। डॉ.अंबेडकर भी कहा करते थे कि धर्म के बिना कुछ नहीं होगा।

RSS on Religious spirituality: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अध्यात्म का आधार धर्म ही है। समाज को जगाने वाले दुनिया के सभी महापुरुषों जिन्होंने आध्यात्म को आधार बनाया उनके लिए भी बिना धर्म के यह करना संभव नहीं था। धर्म और अध्यात्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। धर्म सबको साथ लेकर चलना सीखाता है। 

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत मंगलवार को अलोपीबाग में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के आश्रम में आयोजित आराधना महोत्सव के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य ब्रह्मलीन ब्रह्मानंद सरस्वती की 150वीं जयंती के अवसर पर यह महोत्सव आयोजित है। यह कार्यक्रम 8 दिसंबर तक चलेगा। इस महोत्सव में श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा श्रीनाथ पीठाधीश्वर स्वामी आचार्य जितेंद्र नाथ जी महाराज द्वारा सुनाई जाएगी।

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श्री भागवत ने कहा कि संतों, महात्माओं, साधु-संन्यासियों के आध्यात्म का मूल धर्म ही रहा है। आप किसी भी संत, महात्मा, साधु-संन्यासी या रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी या अंबेडकर जैसे महापुरुषों को देखिए सबने धर्म को प्रमुख स्थान दिया। डॉ.अंबेडकर भी कहा करते थे कि धर्म के बिना कुछ नहीं होगा।

आध्यात्मिकता से जीवन को शुद्धता मिलती

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख ने कहा कि आध्यात्मिकता से ही हमारा व्यक्तिगत जीवन हो या हमारा पारिवारिक जीवन या हमारा राष्ट्रीय सामाजिक जीवन, सबको शुद्धता मिलती है। धर्म भी आध्यात्मिकता से निकलता है। धर्म का अर्थ है सबको साथ लेकर चलना, सबको एक साथ चलाना, सबका उत्थान करना। धर्म नहीं हो तो जंगलराज की स्थितियां स्थापित होंगी। धर्म के बिना कमजोर और मजलूमों पर अत्याचार होगा। मजबूत दूसरों पर अत्याचार करेंगे। लेकिन धर्म कहता है कि जो मजबूत है वह आगे बढ़ेगा लेकिन मजबूत कमजोरों की रक्षा भी करेगा। 

धर्म देता है लोगों को मार्गदर्शन

मोहन भागवत ने कहा कि धर्म के बिना मनुष्य दिशाहीन हो जाता है। धर्म से मार्गदर्शन मिलता है, लोगों में भटकाव नहीं होगा। मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए आध्यात्मिक होना होगा। भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को अलग-अलग देखना हमारा दृष्टिकोण नहीं है क्योंकि हम सभी चीजों को एक समग्र दृष्टिकोण से देखते हैं। हमारे देश का यह सौभाग्य है कि अपने आचरण से लोगों का मार्गदर्शन करने वाले महापुरुषों की परंपरा अखंड चलती रही है। ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद सरस्वती उसी परंपरा के थे।

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