Russia Ukraine Conflict: जर्मनी-फ्रांस की कोशिशों से युद्ध का खतरा टला, दोनों देश सीजफायर को राजी

Published : Jan 27, 2022, 09:28 AM ISTUpdated : Jan 27, 2022, 09:33 AM IST
Russia Ukraine Conflict: जर्मनी-फ्रांस की कोशिशों से युद्ध का खतरा टला, दोनों देश सीजफायर को राजी

सार

युद्ध के मुहाने पर खड़े रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine Conflict) को लेकर एक पॉजिटिव खबर है। दोनों देशों के बीच टकराव टालने बुधवार को पेरिस में चली करीब 8 घंटे की मीटिंग के बाद दोनों देशों; खासकर रूस के तेवरों में कमी आई है। यानी दोनों देश सीजफायर के लिए राजी हो गए हैं।

पेरिस. रूस और यूक्रेन के बीच (Russia Ukraine Conflict) तनाव को लेकर एक पॉजिटिव खबर मिली है। दोनों देशों के बीच टकराव टालने बुधवार को पेरिस में चली करीब 8 घंटे की मीटिंग के बाद दोनों देशों; खासकर रूस के तेवरों में कमी आई है। यानी दोनों देश सीजफायर के लिए राजी हो गए हैं। यह युद्ध टालने में फ्रांस और जर्मनी ने अहम भूमिका निभाई। उम्मीद जताई जा रही है कि दुनिया के सामने एक बड़ा संकट आते-आते टल गया। यूक्रेन और रूस 2019 के बाद पहली बार यूक्रेन फोर्सेस और अलगाववादियों के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर फ्रांस और जर्मनी के साथ संयुक्त बयान जारी करने पर रजामंद हुए। 

यह अच्छी बात कि कोई शर्त नहीं रखी
यूक्रेन को लेकर रूस का रवैया शुरू से ही तीखा रहा है। लेकिन यह अच्छी बात है कि इस मीटिंग के बाद वे नरम पड़ा है। संयुक्त बयान में बताया गया कि दोनों देश बिना शर्त सीजफायर के लिए राजी हो गए हैं। इस संबंध में दो हफ्ते बाद बर्लिन में एक और बैठक होगी। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के एक सहयोगी ने कहा कि यह एक अच्छी खबर है।

बर्लिन में होगी अब बैठक
रूस के डिप्लोमैट दिमित्री कोजाक के अनुसार, कई बातों पर असहमति के बाद इस बात पर सहमति बनी कि पूर्वी यूक्रेन में सीजफायर सभी पक्षों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। अब दो हफ्ते बाद बर्लिन की बैठक में पेरिस की तरह ही दोनों देशों के डिप्लोमैट शामिल होंगे। इन बैठकों में राष्ट्र प्रमुखों को शामिल करना एजेंडे में नहीं रखा गया है। यूक्रेन के राजदूत एंड्री यरमक ने बयान में कहा कि यह वार्ता आसान नहीं थी, क्योंकि स्थायी युद्धविराम के लिए आपसी सहयोग बहुत जरूरी होता है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि 2019 के बाद किसी मुद्दे की अधिकारिक विज्ञप्ति पर दोनों देश सहमत हुए हैं।

अमेरिका लगातार रूस को चेता रहा था
रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव (Ukraine Russia tension) दुनियाभर के लिए चिंता का विषय बन गया था। आशंका बढ़ने लगी थी कि दोनों देशों के बीच की यह लड़ाई अमेरिका, पश्चिम देश V/s रूस न हो जाए। यूक्रेन के बॉर्डर पर रूस के सैनिकों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। वहीं, टैंक, लॉन्चर, मिसाइलें आदि युद्ध के लिए तैयार रखे गए थे।

यह है विवाद की मुख्य वजह
रूस यूक्रेन की नाटो की सदस्यता का विरोध कर रहा है। लेकिन यूक्रेन की समस्या है कि उसे या तो अमेरिका के साथ होना पड़ेगा या फिर सोवियत संघ जैसे पुराने दौर में लौटना होगा। दोनों सेनाओं के बीच 20-45 किमी की दूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन पहले ही रूस को चेता चुके हैं कि अगर उसने यूक्रेन पर हमला किया, तो नतीजे गंभीर होंगे। दूसरी तरफ यूक्रेन भी झुकने को तैयार नहीं था। उसके सैनिकों को नाटो की सेनाएं ट्रेनिंग दे रही हैं। अमेरिका को डर है कि अगर रूस से यूक्रेन पर कब्जा कर लिया, तो वो उत्तरी यूरोप की महाशक्ति बनकर उभर आएगा। इससे चीन को शह मिलेगी। यानी वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा।

इसलिए दोनों देशों में ठनी है
पश्चिमी देशों की खुफिया संस्थाओं का अनुमान है कि युक्रेन की सीमाओं पर रूसी सेना की संख्या जनवरी के आखिरी तक 1.75 लाख तक पहुंच सकती है। पश्चिमी देशों में दूसरे विश्व युद्ध के बाद ऐसे हालात फिर से बन रहे थे। रूस को आशंका है कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बना, तो नाटो के ठिकाने उसकी सीमा के नजदीक तक पहुंच जाएंगे। कभी पूर्वी यूक्रेन पुतिन समर्थक हुआ करता था। लेकिन 2014 में रूस के क्रीमिया पर हमले के बाद से स्थिति बदल गई। यूक्रेन के लोग रूस विरोधी सरकारों को चुनते आए हैं। 2014 में हुए युद्ध में रूस ने युक्रेन से क्रीमिया को छीनकर अपना कब्जा कर लिया था। 1991 से पहले यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था। लेकिन अब वो एक रूस को पसंद नहीं करता है।

नाटो क्या है
नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन(नाटो) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा अमेरिका के वॉशिंगटन में किया गया था। यह एक अंतर- सरकारी सैन्य संगठन है। इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में अवस्थित है। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 30 है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य पश्चिम यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना था। इसमें फ्रांस।  बेल्जियम। लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल, अमेरिका, पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी और स्पेन शामिल  

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