सिंधिया ने दिलाई 1967 की याद, जब ज्योतिरादित्य की दादी विजयाराजे ने गिराई थी कांग्रेस की सरकार

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। जिसके बाद से मध्यप्रदेश की कमलनाथ संकट में आ गई है। सिंधिया के इस कदम ने 1967 की याद दिला दी। जब सिंधिया की दादी राजमाता विजयराजे ने कांग्रेस की सरकार एक झटके में गिरा दी थी। 

Asianet News Hindi | Published : Mar 10, 2020 12:02 PM IST

भोपाल. रंगों का महापर्व होली के मौके पर मध्यप्रदेश में सोमवार की रात से चटक हुआ सियासी रंग अब हल्का होने लगा है। मध्यप्रदेश की सियासत की लड़ाई अब मंगलवार को तमाम कवायदों के बाद अब यह निर्णायक मोड़ में पहुंच गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपने समर्थक विधायकों संग बीजेपी के खेमें में पहुंच गए हैं। सिंधिया के इस कदम से कमलनाथ सरकार का बाहर होना लगभग तय हो गया है। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस कदम ने एक बार फिर राजमाता विजयराजे सिंधिया की याद दिला दी है। 

दरअसल, राजमाता विजयराजे सिंधिया ने ठीक इसी प्रकार का कदम उठा कर 1967 में कांग्रेस पार्टी की सरकार को गिरा दिया था। इस दौरान राजमाता सिंधिया ने जनसंघ में शामिल हो गई थी। जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हुई थी। 

उस समय कांग्रेस ने नहीं मानी राजमाता की बात 

1967 में ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने थे। टिकट बंटवारे और छात्र आंदोलन के मुद्दे पर बात करने के लिए विजयाराजे पचमढ़ी में हुए कांग्रेस युवक सम्मेलन में पहुंचीं थीं। इस सम्मेलन का उद्धाटन इंदिरा गांधी ने किया था।
इस दौरान विजयाराजे ने छात्र आंदोलनकारियों पर गोलीबारी का मुद्दा उठाया और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ग्वालियर एसपी को हटाने की मांग भी की थी। लेकिन, मुख्यमंत्री ने सिंधिया की बात नहीं मानी।''

36 विधायकों के साथ गोविंद नरायण को बनवाया सीएम 

पचमढ़ी के घटनाक्रम के बाद विजयाराजे ने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ दी। वे गुना संसदीय सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर उतरीं और चुनाव जीता। चुनाव के बाद 36 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी और विजयाराजे ने इन विधायकों के समर्थन से सतना के गोविंद नारायण सिंह को सीएम बनवा दिया। इसी तरह मध्य प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी और डीपी मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा था। 

राजमाता का सियासी सफर

सिंधिया परिवार का राजनीतिक सफर या यूं कहें कि संसदीय राजनीति का सफर विजयराजे सिंधिया से शुरू हुआ। उन्हें ग्वालियर राजघराने की राजमाता के नाम से भी जाना जाता है। राजमाता ने 1957 में कांग्रेस के टिकट पर शिवपुरी (गुना) लोकसभा सीट से चुनाव जीता और अपनी राजनीति की शुरुआत की। हालांकि यह सिलसिला लंबे समय तक नहीं चला और बाद में उन्होंने जनसंघ का दामन थाम लिया। 1980 में जनसंघ में उनकी राजनीति की नई शुरुआत हुई और बाद में इस पार्टी की उपाध्यक्ष तक बनाई गईं। 

सिंधिया परिवार की राजनीति

विजयराजे के बेटे और ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की राजनीति भी जनसंघ से शुरू हुई लेकिन 1980 में वे कांग्रेस से जुड़ गए। माधवराव सिंधिया ने मध्य प्रदेश में गुना निर्वाचन क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर 1971 के आम चुनाव लड़ा और जीता। उनकी मां राजमाता विजयराजे सिंधिया पहले से ही संघ की सदस्य थींय़ एक तरफ माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस का दामन थामा तो दूसरी ओर उनकी दो बहनें वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे ने अपनी मां का अनुसरण करते हुए बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की। 

कुछ इस कदर नाराज होते गए सिंधिया

3 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की बजाए कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। राहुल ने तब कहा था कि समय और सब्र दो सबसे बड़े योद्धा हैं। लेकिन, ज्योतिरादित्य और कमलनाथ के बीच दरार यहीं से बढ़ी।

ज्योतिरादित्य लगातार मध्य प्रदेश सरकार के प्रति आक्रामक रुख अख्तियार करते गए। उन्होंने अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का समर्थन किया था।

ज्योतिरादित्य ने इसी साल फरवरी में वचनपत्र के वादों को पूरा करने पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि वादे पूरे नहीं हुए तो सड़कों पर उतरेंगे। इसके कुछ दिनों बाद ही सोनिया से मिलकर लौट रहे कमलनाथ से मीडिया ने ज्योतिरादित्य के बयान पर सवाल किया कि वे सड़कों पर उतरने की बात कह रहे हैं? कमलनाथ से जवाब दिया- उतर जाएं..। यही बात ज्योतिरादित्य को नागवार गुजरी। 

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