इलेक्टोरल बॉन्ड सौदे में राजनीतिक दलों और कॉरपोरेट के सांठगांठ की जांच के लिए एसआईटी गठन से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने माना कि अभी जांच का आदेश देना समय पूर्व फैसला होगा और एसआईटी दिशाहीन होगी।
SIT on Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों और कॉरपोरेट डोनर्स के बीच भ्रष्टाचार की जांच कराने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ता ने मांग किया था कि रिटायर्ड जज की निगरानी में एसआईटी जांच की जाए ताकि चंदा देने वाले कॉरपोरेट्स और राजनीतिक दलों द्वारा उनको पहुंचाए गए फायदे की पोल सामने आ सके। कोर्ट ने कहा कि कॉरपोरेट और राजनीतिक दलों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए एक दूसरे से सौदेबाजी की है, इसको लेकर कानून के पास जांच का कोई पुख्ता तरीका नहीं है। ऐसे में अभी इस पर एसआईटी बनाना प्रीमेचर फैसला होगा।
इलेक्टोरल बॉन्ड की जांच के लिए याचिका कॉमन कॉज ग्रुप और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट ने दायर किया था। याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार खोखले और घाटे में चल रही कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले धन की जांच करने के लिए लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों को आदेश देने की मांग की थी।
इलेक्टोरल बॉन्ड फरवरी में किया गया था समाप्त
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को फरवरी में खत्म कर दिया था। लोकसभा चुनाव के पहले ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने इसे राजनीतिक दलों को अघोषित धन मुहैया कराना मतदाताओं के पारदर्शिता के अधिकार का उल्लंघन करार दिया था।
याचिका में बताया गया सबसे असाधारण भ्रष्टाचार का केस
कोर्ट में दायर याचिका में इलेक्टोरल बॉन्ड को देश का सबसे असाधारण भ्रष्टाचार का केस करार दिया था। चार याचिकाओं में इस मुद्दे को उठाया गया और एसआईटी की मांग की गई। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण पेश हुए।
प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा: एसआईटी की आवश्यकता है क्योंकि सरकारें इसमें शामिल हैं, सत्तारूढ़ पार्टी और शीर्ष कॉर्पोरेट घराने इसमें शामिल हैं। 8000 करोड़ रुपये से अधिक का मनी ट्रॉयल हुआ है। कुछ केस में आईएफबी एग्रो ने 40 करोड़ रुपये बॉन्ड से दिए क्योंकि वह तमिलनाडु में मुश्किलों का सामना कर रही थीं। यह केवल एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं है। इलेक्टोरल बॉन्ड भ्रष्टाचार का असाधारण मामला है। भारत के इतिहास का सबसे कुख्यात वित्तीय घोटालाओं में एक है। जबतक इस मामले की जांच किसी रिटायर्ड जज की निगरानी में नहीं की जाएगी तबतक कोई नतीजा नहीं निकल सकता। किसी भी पक्ष को रिश्वत और घूस के रूप में प्राप्त धन रखने या उसे संरक्षित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
जज ने कहा-एसआईटी जांच का कोई नतीजा नहीं निकलेगा
सीजेआई ने कहा: इस मामले में हम पहले ही निर्णय दे चुके हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड का खुलासा किया जा चुका है। सारे डेटा और सभी पक्षों की पहचान हो चुकी है। हमने इलेक्टोरल बॉन्ड को रद्द कर दिया है। अब जांच से क्या होगा। एसआईटी जांच भी भटकाव की ओर ले जाएगा।
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा: यह एक दूरगामी और भटकावपूर्ण जांच होगी। आपने (प्रशांत भूषण) कहा कि फर्जी कंपनियां इसमें शामिल हैं तो एसआईटी क्या कर सकती है? आप एसआईटी से क्या करने की उम्मीद करते हैं?
याचिकाकर्ता ने कहा: कोयला खनन ब्लॉक घोटाले के उन मामलों को देखें जिनमें मीडिया संगठनों द्वारा जांच रिपोर्टों के माध्यम से प्रथम दृष्टया साक्ष्य सामने आए हैं। उस मामले में कोर्ट ने मनमानी के आधार पर पट्टों को रद्द कर दिया और महसूस किया कि खनन पट्टों की जांच करने के लिए पर्याप्त परिस्थितियां थीं। इलेक्टोरल बॉन्ड में करोड़ों के बॉन्ड दवा कंपनियों द्वारा लिए गए थे और बांड प्राप्त करने के बाद ड्रग कंट्रोल एजेंसी द्वारा उनके खिलाफ जांच चुप हो गई। कई कंपनियों ने जांच के तीन साल के भीतर दान दिया। मैं केवल एसआईटी से यह पूछ रहा हूं कि वह लेन-देन की जांच करे। कोई अन्य जांच किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकती या कोई विश्वसनीयता नहीं रख सकती। इस पर कोर्ट ने कहा कि एसआईटी के लिए पर्याप्त सबूत चाहिए जोकि फिलहाल नहीं है। ऐसे में एसआईटी का गठन समाधान नहीं है।
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