राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी बंदरों की कहानियां, जानकर हैरान हो जाएंगे आप

ऐसे में अब रामलला के भक्तों का इंतजार भी जल्द ही खत्म होगा। इस कहानी में एक किरदार एक बंदर का भी है। जिसने पुलिस से गुंबद लगे झंडे को बचाया था। आज उस समय के अखबारों में उस बंदर की फोटो ने जगह बनाई थी। आज हम उस बंदर की कहानी के बारे में जानेंगे।

अयोध्या. अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के लिए महज दो ही दिन बचे है। बरसों तक टेंट में प्रभु श्रीराम अब मंदिर में विराजेंगे। ऐसे में अब रामलला के भक्तों का इंतजार भी जल्द ही खत्म होगा। राम मंदिर के बनने के  कहानी में काफी संघर्ष है। इस कहानी में एक किरदार एक बंदर का भी है। जिसने पुलिस से गुंबद पर लगे झंडे को बचाया था। आज उस समय के अखबारों में उस बंदर की फोटो ने जगह बनाई थी। आज हम उस बंदर की कहानी के बारे में जानेंगे।

1990 में अयोध्या बदली छावनी में 

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रामलला के संघर्ष की कहानी शुरू होती है 30 अक्टूबर 1990 से। राम मंदिर आंदोलन का वह एक महत्वपूर्ण दिन था। इस दिन विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर कारसेवा का फैसला किया था। लेकिन उन्हें रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के सशस्त्र कांस्टेबल के लगभग 28 हजार कर्मियों को अयोध्या को तैयार किया था। सुरक्षा व्यवस्था ऐसी थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने दावा किया था कि "अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता" । बाबरी मस्जिद जाने वाली सड़क को पूरी तरह से बैरिकेट किया गया।

कारसेवकों और सुरक्षाकर्मियों के बीच एक युद्ध छिड़ गया। इस बीच एक साधु पुलिस बस पर कुद गया। इसी बस का उपयोग कारसेवकों को हिरासत में लेने के लिए किया गया था। इस बस को चला रहे साधु ने बैरकेड तोड़ दिए और सैकड़ों कारसेवकों के लिए रास्ता खोल दिया। इसके बाद कारसेवकों ने सुरक्षाकर्मियों का सामना करते हुए बाबरी मस्जिद की ओर बढ़े। इनमें कुछ लोग मस्जिद पर चढ़े और भगवा ध्वज लगाने में कामयाब रहे।

इसके बाद पुलिसकर्मियों ने लाठी चार्ज और फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद कारसेवकों को पीछे हटना पड़ा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, फायरिंग में 20 लोगों की मौत हुई। लेकिन प्रत्यक्षदर्शी बताते है कि इस हादसे में सरकारी आंकड़ों से कई ज्यादा लोग मारे गए।

कारसेवक पीछे हटे लेकिन बंदर डटा रहा

पुलिसकर्मी मस्जिद पर लगे झंडे को हटाना चाहते थे लेकिन उनके सामने अनोखी स्थिति आ गई। मस्जिद के गुंबद पर एक बंदर बैठा हुआ है। पुलिस कर्मियों ने मस्जिद पर बैठे बंदर को "भगवान हनुमान" का अवतार मान लिया गया। उन्हें ऐसा लगा कि हनुमान ध्वज की रक्षा के लिए प्रकट हुए है। और कोई भी पुलिसकर्मी उसे भगाने और झंडा उतारने के लिए तैयार नहीं हुए। घंटों तक वह बंदर झंडे के पास बैठा रहा। बंदर के जाने बाद जवानों ने गुंबद पर चढ़ कर झंडे को वहां से हटा दिया।

मंदिर खोलने के लिए बंदर ने प्रेरित किया

केएम पांडे की आत्मकथा “वॉयस ऑफ कॉन्शियस” मुताबिक, केएम पांडे फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट में जज थे। उन्होंने 1 फरवरी 1986 को बाबरी मस्जिद के दरवाजे राम भक्तों के लिए खोलने का आदेश करते है। 1990 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में पांडे ने एक दैवीय शक्ति का उल्लेख किया है। इसमें वह लिखते है 1986 में जब बाबरी मस्जिद पर फैसला सुना रहे थे, तब एक बंदर कोर्ट परिसर की छत एक बंदर भगवा झंडा लिए बैठा था। बंदर को फल और दूसरी खाने की चीजें दी गई लेकिन उसने खाने से मना कर दिया। जब शाम को 4 बजकर 40 मिनट पर फैसला सुनाया गया, इसके बाद बंदर चला गया।

राम मंदिर केस लड़ने वाले वकील के घर आए बंदर

वरिष्ठ वकील परासरन ने सुप्रीम कोर्ट में राम  जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से बहस की थी। तब उन्होंने बंदरों के बारे में बात की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की बेंच ने नवंबर 2019 में  ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में राम मंदिर निर्माण के लिए 2.77 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को आदेश दिया था। इसके कुछ दिन बाद ही वरिष्ठ वकील परासरन के दिल्ली स्थित घर की छत पर 30-40 बंदर कहीं से आ गए। 

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