बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह निषेध अधिनियम को परंपराओं से ऊपर रखा है। बच्चों की शादी को स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन बताया गया है। कोर्ट ने कानून को प्रभावी बनाने के निर्देश भी दिए हैं।

Supreme Court on Child marriage: बाल विवाह प्रॉहिबिशन एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने परंपराओं के नाम पर बाल विवाह निषेध अधिनियम को बाधित करने से इनकार कर दिया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया है। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह निषेध एक्ट पर?

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शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत परंपराओं से बाधित नहीं किया जा सकता है। बच्चों से जुड़ी शादियां, जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह रोकने के लिए कानून को प्रभावी करने के लिए डायरेक्शन भी जारी किया। हालांकि, बेंच ने इस मुद्दे पर ध्यान दिया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) व्यक्तिगत कानूनों पर हावी होगा या नहीं, यह संसद के पास विचार के लिए लंबित है। केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय से पीसीएमए को व्यक्तिगत कानूनों पर हावी रखने का आग्रह किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा जागरूकता कैंपेन का हो संचालन

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाल विवाह रोकथाम पर बने कानून में बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है और यह अप्रभावी साबित हुआ है। राज्य को चाहिए कि वह अवेयरनेस कैंपेन चलाए। इसमें सामाजिक संगठनों से लेकर हर कोई सहयोग करे।

2017 में सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ ने दायर किया था याचिका

दरअसल्, सुप्रीम कोर्ट में एक सामाजिक संगठन ने याचिका दायर कर यह आरोप लगाया था कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए बीते 10 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। याचिका सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन ने 2017 में लगाई थी।

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