Explained: कैसे सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों-विधायकों से छीन ली रिश्वत मामलों में छूट, क्या है इसका मतलब?

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रिश्वत लेने के मामले में सांसदों और विधायकों को मिली छूट खत्म कर दी है। कोर्ट ने कहा कि रिश्वतखोरी को कानूनी ढाल नहीं दी जानी चाहिए।

 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) मवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई सांसद या विधायक सदन में सवाल करने या बोलने के लिए रिश्वत लेने का आरोपी है तो वह अपने लिए छूट नहीं मांग सकता। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने बताया कि क्यों सांसदों-विधायकों को दी गई कानूनी ढाल रिश्वतखोरी के मामलों में उनकी रक्षा नहीं करेगी।

संविधान की धारा 105 और 194 से विधायकों और सांसदों को अभियोजन से सुरक्षा दी गई है। यह प्रबंध इसलिए किया गया है ताकि उन्हें अपने खिलाफ कानूनी कार्रवाई का डर न हो और वे आजादी से काम कर सकें। इससे विधायकों और सांसदों को सदन में बोलने की आजादी दी गई है। सदन में विधायकों या सांसदों द्वारा कही गई बात को लेकर उनके खिलाफ केस चलाने से बचाया गया है। अगर सांसद या विधायक किसी समिति में हैं और किसी मामले में वोट देते हैं तो उनके खिलाफ केस नहीं किया जा सकता।

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जैसे अगर कोई सांसद या विधायक सदन में कोई बयान देते हैं तो उनके खिलाफ मानहानि का मामला नहीं चलाया जा सकता। अगर वे कोई आपत्तिजनक बयान देते हैं तो उनके खिलाफ स्पीकर कार्रवाई करेंगे, कोर्ट नहीं।

पीवी नरसिम्हा राव मामले में 1998 का फैसला खारिज

सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने सोमवार को जो फैसला सुनाया उससे पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव मामले में सुप्रीम कोर्ट का 1998 का फैसला खारिज हो गया है। बात जुलाई 1993 की है। नरसिम्हा राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। सरकार मामूली अंतर से बच गई थी। पक्ष में 265 और विपक्ष में 251 वोट पड़े थे।

एक साल बाद आरोप लगे कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों रिश्वत लेकर सरकार के समर्थन में वोट दिए। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 के बहुमत से फैसला सुनाया कि सांसदों और विधायकों को अपने वोट के लिए रिश्वत के मामलों में अभियोजन से छूट है। चाहे वे इसके लिए सौदेबाजी ही क्यों न करें।

सुप्रीम कोर्ट ने आज क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि रिश्वत लेना अपराध है। इसका इस बात से कोई संबंध नहीं है कि सांसद और विधायक सदन में क्या कहते हैं। इसलिए सांसद और विधायकों को रिश्वत के मामले में अभियोजन से छूट नहीं मिलेगी। अनुच्छेद 105 और 194 के तहत दी गई सुरक्षा रिश्वत के मामलों में सांसदों और विधायकों की रक्षा नहीं कर सकती। सदन के सदस्यों के रूप में उनके कर्तव्यों का रिश्वत लेने से कोई संबंध नहीं है। अगर इस तरह से संरक्षण दिया जाए तो एक ऐसा वर्ग तैयार होगा जो कानून से अनियमित छूट का आनंद ले सकता है।

सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेने के मामले में सुरक्षा दी जाती रही तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। अनुच्छेद 105 का उद्देश्य सदन में चर्चा के लिए अनुकूल माहौल बनाए रखना है। अगर कोई सदस्य रिश्वत लेकर सदन में बोलता है या सवाल करता है तो इससे सदन का माहौल बाधित होता है।

सीजेआई बोले पीवी नरसिम्हा केस में फैसले से असहमत हैं

सीजेआई ने कहा, "हम पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले से असहमत हैं। जिन सांसदों ने वोट देने के लिए रिश्वत ली उन्हें कोर्ट के फैसले में छूट दी गई थी। इस फैसले के व्यापक प्रभाव हैं। इसे खारिज किया जाता है।"

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क्या है कोर्ट के फैसले का मतलब?

बता दें कि पिछले कई दशकों में वोट के बदले रिश्वत बड़ी चुनौती रही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पहले किसी विधायक या सांसद के खिलाफ रिश्वत लेकर वोट देने के चलते मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था। अब विधायक और सांसदों को मिली यह छूट खत्म हो गई है। अब अगर कोई विधायक या सांसद रिश्वत लेकर सदन में वोट देता है, सवाल करता है या बोलता है तो उसके खिलाफ केस किया जा सकता है। उसे अदालती कार्रवाई का सामना करना होगा।

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