मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सभी समुदायों में पुरुषों-महिलाओं के शादी की एक समान उम्र करने की याचिका पर सुनवाई की है। याचिका में नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के विवाह को कानून के तहत दंडनीय अपराध बनाने की मांग की गई थी।
Uniform marriageable age: पुरुषों व महिलाओं की शादी की उम्र एक समान हो इसके लिए राष्ट्रीय महिला आयोग, सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने कोर्ट में याचिका दायर कर सभी समुदायों के महिलाओं व पुरुषों की विवाह योग्य उम्र 18 वर्ष रखने की मांग की है। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से इस पर जवाब मांगा है।
क्यों न बनाया जाए दंडनीय अपराध?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सभी समुदायों में पुरुषों-महिलाओं के शादी की एक समान उम्र करने की याचिका पर सुनवाई की है। याचिका में नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के विवाह को कानून के तहत दंडनीय अपराध बनाने की मांग की गई थी।
याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के हाल के एक फैसले का हवाला दिया गया जिसमें एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी की अनुमति इस आधार पर दी गई थी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इसकी अनुमति है। कोर्ट से कहा गया कि मुस्लिम महिलाओं के लिए समान रूप से दंडात्मक कानूनों को लागू किया जाए जिसके अंतर्गत बिना लड़कियों की सहमति के ही उम्र पूरी होने के पहले शादी कर दी जाती है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी की उम्र 15 वर्ष
याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अलावा अन्य सभी धर्मों के विभिन्न पर्सनल लॉ के तहत शादी की न्यूनतम आयु तय है। भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936, विशेष विवाह अधिनियम 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत एक पुरुष के लिए 'विवाह की न्यूनतम आयु' 21 वर्ष और एक महिला के लिए 18 वर्ष है। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नाबालिग जिनकी उम्र शादी करने की या 15 साल हो चुकी है, वह शादी के लिए योग्य हैं। हालांकि, नाबालिग से शादी पॉक्सो एक्ट 2012 के प्रावधानों का उल्लंघन हैं। यह एक्ट विशेषकर लड़कियों को सेक्सुअल क्राइम से बचाने के लिए लागू किया गया था।
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