महाराष्ट्र सरकार स्थानीय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी कोटा नहीं दे सकेगी। उद्धव ठाकरे सरकार के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने रोक लगा दी है।
नई दिल्ली। महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra) स्थानीय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण (OBC Reservation ) नहीं दे सकेगी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग 27 फीसदी आरक्षण को आगे न बढ़ाए जाने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट के बिना पालन के राज्य सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण के लिए अध्यादेश लाने का फैसला स्वीकर नहीं किया जाएगा।
गौरतलब है कि 23 सितंबर 2021 को महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़े वर्ग (OCB) को आरक्षण देने को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। इसके बाद राज्य सरकार ने अध्यादेश का मसौदा मंजूरी के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास भेजा था। कोश्यारी ने अध्यादेश के कुछ हिस्से पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद उसमें बदलाव करने का प्रस्ताव कैबिनेट बैठक में पेश किया गया था।
मार्च में भी कोर्ट ने लगाई थी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में कहा था कि आरक्षण प्रतिशत को उचित ठहराए जाने के लिए ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इसी आधार पर उसने कुछ स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को रोक दिया था। कोर्ट ने महाराष्ट्र जिला परिषदों और पंचायत समितियों अधिनियम, 1961 की धारा 12 (2) (c) को रद्द कर दिया था। इसके तहत जिला परिषदों और पंचायत समितियों में 27 प्रतिशत सीटों में ओबीसी को आरक्षण दिए जाने का प्रावधान था। अदालत ने कहा कि संबंधित स्थानीय निकायों में ओबीसी के पक्ष में आरक्षण को इस हद तक अधिसूचित किया जा सकता है कि यह अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक ना हो। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस, अजय रस्तोगी ने ये आदेश जारी किया थ्ज्ञा। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रिट याचिका के मुताबिक नाशिक, विदर्भ और नागपुर के कई आदिवासी बहुल तालुका में इन चुनावों में ओबीसी वर्ग को 27 % आरक्षण दे दिया गया। इससे आरक्षण का कोटा 60 फीसदी से भी ज्यादा चला गया था। इसके बावजूद उद्धव ठाकरे सरकार ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की तर्ज पर अध्यादेश के जरिये ओबीसी आरक्षण लागू करने का निर्णय लिया था। हालांकि राज्य के विधि व न्याय विभाग ने अध्यादेश के जरिये ओबीसी का निर्वाचन कोटा तय करने के निर्णय को कानूनी तौर पर गलत बताया था और राज्य सरकार को मामले के विचाराधीन होने के कारण पहले सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेने की सलाह दी थी।
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