इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की प्रमुख याचिका सहित कुल 220 याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। जनवरी 2020 में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि वह केंद्र की बात सुने बिना नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के संचालन पर रोक नहीं लगाएगी।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act) यानी सीएए (CAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई 31 अक्टूबर तक के लिए टाल दी है। कोर्ट त्योहारों के बाद 31 अक्टूबर को मामले में सुनवाई करेगा। केंद्र सरकार द्वारा जवाब देने में मोहलत मांगा गया है। याचिका में पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से मुल्क छोड़ने वाले गैर मुस्लिम प्रवासियों को भारत में नागरिकता देने का प्रावधान है। इन देशों से 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को आवेदन करने पर भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।
मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेजा जाएगा
मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस आर भट की पीठ ने कहा कि सीएए मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा। उधर, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने केंद्र की ओर से जवाब दाखिल करने में समय देने की मांग की। इस पर चीफ जस्टिस के बेंच ने 31 अक्टूबर को अगली तारीख तय कर दिया।
केंद्र ने कहा: कई बिंदुओं पर जवाब देने केलिए चाहिए समय
सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि अदालत के समक्ष दायर याचिकाओं में कई मुद्दे उठाए गए हैं। कुछ संशोधनों व चुनौती के संबंध में केंद्र की ओर से जवाब दाखिल किया गया है। कई मुद्दों व बिंदुओं पर अभी जवाब तैयार नहीं है। इसको दाखिल करने में कुछ समय की आवश्यकता है। मेहता ने कहा कि तैयारी के लिए और मामले की सुनवाई के लिए भी कुछ समय की आवश्यकता होगी। पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल का कार्यालय उन मामलों की पूरी सूची तैयार करेगा जिन्हें याचिकाओं में उठाई गई चुनौती के आधार पर विभिन्न खंडों में रखा जाएगा। अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि ये बहुत महत्वपूर्ण मामले हैं जो बहुत लंबे समय से लटके हुए हैं। इन्हें सुनने और जल्दी से निर्णय लेने की आवश्यकता है।
केंद्र सरकार से चार सप्ताह में मांगी थी रिपोर्ट
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की प्रमुख याचिका सहित कुल 220 याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। जनवरी 2020 में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि वह केंद्र की बात सुने बिना नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के संचालन पर रोक नहीं लगाएगी। सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा था। साथ ही कोर्ट ने देश के हाईकोर्ट्स को इस मुद्दे पर लंबित याचिकाओं पर सुनवाई से रोक दिया था।
मुस्लिम लीग का क्या है तर्क
सीएए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने तर्क दिया है कि सीएए के प्रावधान, समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। यह धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता प्रदान कर रहा है। अधिवक्ता पल्लवी प्रताप के माध्यम से दायर IUML की याचिका में कानून के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है।
सीएए, मौलिक अधिकारों पर एक बेरहम हमला
कांग्रेस नेता जयराम रमेश की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह सीएए, मौलिक अधिकारों पर एक बेरहम हमला है और बराबरी के अधिकार में असमानता पैदा करने वाला है। धर्म या क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण पूरी तरह से हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सीएए की संवैधानिकता को चुनौती देने के लिए राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU), पीस पार्टी, CPI, NGO 'रिहाई मंच', अधिवक्ता एमएल शर्मा और कानून के छात्रों आदि ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
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