सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bond Scheme) को रद्द कर दिया है। इस योजना को राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लाया गया था। यह गोपनीय रखा जा था कि पैसा कितने दिया।
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले एक ऐतिहासिक फैसले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bond Scheme) को "असंवैधानिक" करार देते हुए रद्द कर दिया है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच- जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया।
क्या है चुनावी बॉन्ड योजना?
चुनावी बॉन्ड योजना को केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में पेश किया था। इसका मकसद राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाना बताया गया था। हालांकि राजनीतिक पार्टियों को छूट दी गई कि वह यह नहीं बताए कि उसे किसने और कितना चंदा दिया है। इसके चलते इस योजना को लेकर सवाल उठ रहे थे। चुनावी बॉन्ड योजना लाकर राजनीतिक पार्टियों को नकद दान की सीमा 20,000 रुपए से घटाकर 2,000 रुपए कर दी गई। 20,000 रुपए या इससे अधिक चंदा मिलने पर राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को बताना पड़ता था कि पैसा किसने दिया। यह जानकारी आम लोगों को नहीं दी जाती थी।
चुनावी बॉन्ड समय-समय पर बैंक द्वारा जारी किए जाते थे। निजी संस्थाएं इन्हें खरीद सकती थीं और राजनीतिक दलों को दे सकती थी। राजनीतिक दल बॉन्ड के पैसे को भुना सकते थे। चुनावी बॉन्ड सिर्फ उन दलों को दिया जा सकता था जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं। इसके साथ ही उनके लिए लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल करना भी जरूरी था।
चुनावी बॉन्ड योजना से भाजपा को मिला ज्यादा पैसा
भाजपा को चुनावी बॉन्ड योजना से दूसरी पार्टियों की तुलना में अधिक पैसा मिला। भाजपा द्वारा चुनाव आयोग को सौंपी गई वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी को 2022-23 में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से लगभग 1,300 करोड़ रुपए मिले। 2022-23 में पार्टी को कुल 2,120 करोड़ रुपए चंदा मिला, जिसमें से 61 प्रतिशत चुनावी बांड से आया था। दूसरी ओर 2022-23 में कांग्रेस को चुनावी बांड से 171 करोड़ रुपए मिले। वहीं, कांग्रेस को 2021-22 में 236 करोड़ रुपए इस योजना से मिले।
चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर क्या थी चिंताएं?
चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ कई याजिकाएं लगाई गईं थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना से सत्ता में रहने वाली पार्टी को लाभ मिल रहा है। इससे उसे असीमित और अनियंत्रित फंडिंग की अनुमति मिल रही है। इस योजना के तहत चंदा देने वाले व्यक्ति या कंपनी को गुमनाम रखा जाता है। राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले पैसे में कितना हिस्सा कॉर्पोरेट योगदान है इसे ट्रैक करना चुनौतीपूर्ण है। इससे नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन होता है। यह भ्रष्टाचार के जोखिम को पैदा करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- "असंवैधानिक" है चुनावी बॉन्ड योजना
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को "असंवैधानिक" करार देते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले की मुख्य वजह दान देने वाले की पहचान आम लोगों को नहीं बताया जाना है। चुनावी बॉन्ड योजना के तहत मिले दान की जानकारी राजनीतिक दलों द्वारा नहीं दी जाती थी। इसे सूचना के अधिकार से भी अलग रखा गया था।
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सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। यह असंवैधानिक है। जारीकर्ता बैंक तुरंत चुनावी बांड जारी करना बंद कर देगा। याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि इन बांडों से जुड़ी गोपनीयता राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता कम करती है। इससे मतदाताओं के जानने के अधिकार का उल्लंघन होता है।
केंद्र सरकार ने योजना का बचाव करते हुए कहा था कि यह सुनिश्चित करता है कि उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के लिए केवल वैध धन का उपयोग किया जाए। दानदाताओं की पहचान गुप्त रखने से उन्हें राजनीतिक दलों द्वारा प्रतिशोध से बचाया जाता है।