Draupadi Murmu की पहाड़पुर से रायसीना हिल तक पहुंचने की अनकहीं दास्तां...आदिवासी बेल्ट की खुशी की क्या है वजह

President Election 2022 देश की 15वीं प्रेसिडेंट बनने जा रहीं Draupadi Murmu के लिए यह पथ कोई आसान नहीं रहा है। एक पिछड़े आदिवासी क्षेत्र से देश की प्रथम व्यक्ति के पद तक पहुंचना उनके संघर्षों की देन है। 

Dheerendra Gopal | Published : Jul 21, 2022 11:25 AM IST / Updated: Jul 21 2022, 08:02 PM IST

नई दिल्ली। देश को नया राष्ट्रपति (President of India) मिल गया। जीत की तस्वीर साफ होने के पहले से ही देश के आदिवासी गांवों में जश्न का माहौल है। पहाड़पुर के लोगों की खुशियों की कोई सीमा नहीं हैं, उनके समाज की बेटी, रायसीना हिल का सफर तय कर चुकी है। ओडिशा की आदिवासी महिला Daupadi Murmu का देश का प्रथम व्यक्ति बन चुकी है। झांझ और ढोल की थाप पर संगीतमय माहौल में लोग झूम रहे, नाच रहे और खुशी का इजहार कर रहे हैं। पहाड़पुर गांव के स्थानीय मंदिर में कई दिनों से पूजन-अर्चन चल रहा। बड़ी संख्या में महिलाएं, साड़ी जैसे पारंपरिक परिधान झेला पहनकर जश्न मना रहीं और अपनी बेटी के सर्वोच्च पद पर आसीन होने की कामना कर रही हैं। 

दिल्ली के रायसीना हिल्स से जुड़ेगा सीधा नाता

ओडिशा का मयूरभंज जिला इन दिनों राष्ट्रीय सुर्खियों का केंद्र है। आजादी 75 साल के बाद भी इस जिले के कई गांव जो रोशनी तक को तरस रहे थे, अब रोशनी से नहा चुके हैं। गांव में दशकों से प्रतिक्षित बिजली पहुंच चुकी है। मयूरभंज जिले के पहाड़पुर गांव की द्रौपदी मुर्मु देश की पहली आदिवासी महिला, प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया होंगी। 

आदिवासी बेल्ट की पहली महिला पहुंचीं सर्वोच्च शिखर पर

ओडिशा के मयूरभंज जिले का पहाड़पुर गांव झारखंड की सीमा के पास है। लगभग 80 प्रतिशत आबादी आदिवासी है, और द्रौपदी मुर्मू का संथाल समुदाय प्रमुख समूह है।

संघर्षों के साथ जुड़ता गया विशेषण प्रथम

देश की प्रेसिडेंट बनने वाली मुर्मू के लिए यह पथ कोई आसान नहीं रहा है। एक पिछड़े आदिवासी क्षेत्र से देश की प्रथम व्यक्ति के पद तक पहुंचना उनके संघर्षों की देन है। शायद यही संघर्ष हैं कि मुर्मु को हर काम में प्रथम का तगमा मिलता गया। मयूरभंज जिले के अपने पैतृक गांव उपरबेड़ा से लगभग 270 किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में कॉलेज जाने वाली पहली महिला थीं। उसके माता-पिता उसके लिए मासिक भत्ते के रूप में सिर्फ ₹ 10 का खर्च उठा सकते थे। अब प्रथम आदिवासी महिला के रूप में राष्ट्रपति पद भी पाने वाली हैं।

गांव का मकान, उनकी सादगी का प्रतिबिंब

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की संघर्ष और सादगी, उनके व्यक्तित्व के बड़े हिस्से हैं, जो पास के शहर रायरंगपुर में पांच कमरों के घर में भी परिलक्षित होते हैं। 1990 के दशक में उनके पति द्वारा यह खरीदा गया, पिछले साल झारखंड के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी यह घर बना हुआ है। उनके पति एक बैंक अधिकारी थे। घर में बाद में आगंतुकों के लिए एक हॉल और बरामदा बनवाया गया है।

परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं...

सुश्री मुर्मू के भाई, तरनीसेन टुडू, जिन्हें प्यार से दीकू भैया कहा जाता है, बेहद उत्साहित हैं। वह कहते हैं कि संथालों की पहली महिला भारत की प्रथम व्यक्ति बन रही हैं। ऐसे में यह आदिवासी समाज के लिए गर्व की बात है।

सरकारी क्लर्क से रायसीना तक का सफर...

द्रौपदी मुर्मू ने एक सरकारी क्लर्क के रूप में शुरुआत की, और रायरंगपुर में पार्षद बनने से पहले एक स्कूली शिक्षिका थीं। वह दो बार विधायक और मंत्री भी बनीं। उन्हें 2016 में झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। रायरंगपुर के राजनीतिक सहयोगी याद करते हैं कि वह एक पार्षद के रूप में हाथ में छाता लेकर स्वच्छता कार्य की देखरेख करती थीं। एक मंत्री के रूप में भी उन्होंने क्षेत्र के विकास में रुचि ली।

त्रासदी से भरा है जीवन

द्रौपदी मुर्मू के निजी जीवन में तीन बार त्रासदी हुई। उन्होंने अपने दोनों बेटों को बीस साल की उम्र में दुर्घटनाओं में खो दिया। अभी इस गम से उबर रहीं थी कि करीब 8 साल पहले अपने पति को खो दिया। पांच लोगों के परिवार में सिर्फ दो सदस्य बचे हैं। स्वयं सुश्री मुर्मू और उनकी बेटी इतिश्री। उन्होंने अपने पति और बेटों की याद में एक स्कूल बनाया है। एसएलएस मेमोरियल स्कूल है। मुर्मु के पति का नाम श्याम चरण था। जबकि बेटों लक्ष्मण और शिपुन था। इन तीनों के नाम पर स्कूल का नाम है।

गांव के लोगों को विकास की उम्मीद

गांव पहाड़पुर में सिर्फ आठवीं कक्षा तक का स्कूल है। यहां की महिलाओं का कहना है कि बड़े बच्चों को तीन किलोमीटर दूर बादामपहाड़ जाना पड़ता है, जहां दो कॉलेज के अलावा एक हायर सेकेंडरी स्कूल है। 34 वर्षीय रुक्मणी मुमरू सरपंच हैं। उन्हें उम्मीद है कि सुश्री मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद नियमित पेयजल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा यहां जल्द ही और भी स्कूल होंगे। साथ ही उसकी इच्छा सूची में एक बस है जो लड़कियों को बादामपहाड़ में आगे की पढ़ाई के लिए ले जा सकती है।

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