कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार की कहानी वहां की वादियां अपने अंदर समेटे हुए हैं। कश्मीरी पंड़ितों की कहानी बयां करने वाली एक कश्मीरी वेबसाइट के अनुसार 90 के दशक में आम कश्मीरी पंड़ितों को ही केवल निशाना नहीं बनाया गया, विभिन्न विभागों में कार्यरत कश्मीरी पंड़ितों पर भी उसी तरह जुल्म ढाए गए।
नई दिल्ली। 90 के दशक में चरमपंथ की आग में जल रहे कश्मीर उस खौफनाक मंजर का भी गवाह रहा है जिसके जख्म सदियों तक नहीं भूलाए जा सकते। कश्मीरी पंड़ितों पर हुए अत्याचार की कहानी वहां की वादियां अपने अंदर समेटे हुए हैं। कश्मीरी पंड़ितों की कहानी बयां करने वाली एक कश्मीरी वेबसाइट के अनुसार 90 के दशक में आम कश्मीरी पंड़ितों को ही केवल निशाना नहीं बनाया गया, विभिन्न विभागों में कार्यरत कश्मीरी पंड़ितों पर भी उसी तरह जुल्म ढाए गए।
हत्या के समय केंद्र सरकार की सेवा में थे तेज कृष्ण
बडगाम जिला के यचगाम के रहने वाले 30 वर्षीय कश्मीरी पंड़ित तेज कृष्ण राजदान केंद्र सरकार की सेवा में थे। हत्या की तिथि 12.2.1990 से पहले वह पंजाब में कहीं तैनात थे। बताया जाता है कि वह अपने परिवार को देखने के लिए छुट्टी पर श्रीनगर आए थे। उनके एक पुराने सहयोगी जो उनके साथ काम कर रहे थे, जब वह कश्मीर में थे - भाग्य के दिन उनसे मिलने आए। दोनों लाल चौक जाने वाली मिनी बस में सवार हो गए। गाओ कदल में जब मातडोर (मिनी वैन) रुकी तो राजदान के साथी ने अचानक पिस्टल निकालकर उसके सीने में गोली मार दी। बताया जाता है कि गोली मारने वाला उनका सहयोगी दूसरे धर्म का था।
खरीदारी के लिए जा रहे थे आतंकियों ने रोक लिया और...
अशोक कुमार काजी हस्तशिल्प विभाग में कार्यरत थे। तीस वर्षीय काजी श्रीनगर के शशियार के रहने वाले थे। फरवरी 24, 1990 की बात है। अशोक कुमार काजी खरीदारी के लिए जा रहा था तो तीन आतंकवादियों के एक समूह ने उसे ज़ैंदर मोहल्ला इलाके में दुर्भाग्यपूर्ण दिन पर रोक दिया। उन्होंने पोर पर गोली मार दी। वह नीचे गिर पड़े और मदद के लिए तड़प-तड़प कर रोने लगे। राहगीरों या दुकानदारों में से किसी ने कोई मदद नहीं किया। हालांकि, वहां उनके जान पहचान वाले थे। अत्यधिक खून बह रहा था, उग्रवादियों ने उसे तुरंत नहीं मारा, लेकिन उसके शरीर की मरोड़ और मरोड़ का आनंद लिया। हालांकि, एक दूर की पुलिस वैन के सायरन की आवाज से आतंकी निकल लिए। आतंकवादियों ने उसके पेट और छाती में गोलियां मार दीं, उनके शव को सड़क पर छोड़ दिया।
कश्मीर छोड़ने का फैसला किया लेकिन एक दिन पहले...
बडगाम जिला के ओमपोरा के रहने वाले 29 वर्षीय भूषण लाल रैना, शेर-ए-कश्मीर मेडिकल इंस्टीट्यूट, सौरा में कार्यरत थे। घाटी में आतंकियों की हिंसा से डरे हुए रैना ने आखिरकार अपनी मां के साथ कश्मीर छोड़ने का फैसला कर लिया था। वह 29 अप्रैल को निकलना चाहते थे और एक दिन पहले ही उसने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया। 29 अप्रैल 1990 को आतंकवादियों का एक समूह उसके घर में घुस गया। उन्हें देखकर रैना की बूढ़ी माँ ने उनसे अपने बेटे की जान बख्शने की याचना की क्योंकि उसकी शादी होने वाली थी। लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी। बर्बरतापूर्वक मार डाला और एक बाहर एक पेड़ पर लटका दिया।
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