देश में बाघ संरक्षण(Save Tiger) को लेकर किए जा रहे प्रयासों में एक नई बात सामने आई है। मीडिया की कुछ रिपोर्ट्स में वर्ष 2021 के दौरान हुई बाघों की मौत के आंकड़ों को लेकर सरकार ने उसे गलत ठहराया है। हालांकि यह भी कहा कि मीडिया इस बाघ सरंक्षण की दिशा में सरकारात्मक खबरें कर रही है। जानिए क्या है मामला..
नई दिल्ली. भारत सरकार के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) ने पिछले वर्ष, 2021 में हुई बाघों की मौत को लेकर मीडिया में पब्लिश आंकड़ों को गलत ठहराया है। हालांकि यह भी कहा कि मीडिया इस बाघ सरंक्षण की दिशा में सरकारात्मक खबरें कर रही है। अथॉरिटी ने कहा कि इस बात की सराहना की जाती है कि इन रिपोर्टों में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों का उपयोग किया गया है, लेकिन जिस तरह से इस विवरण को प्रस्तुत किया गया है, वह चेतावनी देने का कारण बनता है। यह भारत सरकार द्वारा निरंतर तकनीकी एवं वित्तीय हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप देश में बाघों की मृत्यु से निपटने तथा बाघ संरक्षण में किए गए प्राकृतिक उपायों को महत्व नहीं देता है।
6 प्रतिशत की रेट से बढ़े बाघ
केंद्र सरकार ने कहा कि अथॉरिटी के प्रयासों से बाघों को विलुप्त होने की कगार से लेकर उनकी संख्या में वृद्धि के एक सुनिश्चित पॉइंट पर ले जाया गया है। वर्ष 2006, 2010, 2014 और 2018 में प्रत्येक चौथे वर्ष आयोजित होने वाले अखिल भारतीय बाघ गणना(All India Tiger Census) के रिजल्ट बताते हैं कि बाघों की सकारात्मक वार्षिक वृद्धि दर 6% है। यानी प्राकृतिक रूप से हुआ नुकसान कम हो रहा है। भारत के संदर्भ में यह पता चलता है कि बाघों को विचरण के लिए नैसर्गिक आवास उपलब्ध होते हैं।
हर साल 98 बाघों की मौत
आंकड़ों कहा गया कि वर्ष 2012 से 2021 की अवधि के दौरान यह देखा जा सकता है कि देश में प्रति वर्ष बाघों की औसत मृत्यु 98 के आसपास है, जो यानी यह उनकी वार्षिक वृद्धि की तुलना में संतुलित है। इसके लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने अवैध शिकार पर काबू पाने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर की चल रही केंद्र प्रायोजित योजना के तहत कई कदम उठाए हैं। अवैध शिकार को काफी हद तक नियंत्रित किया गया है, जैसा कि अवैध शिकार और जब्ती के मामलों में देखा गया है।
पोर्टल पर मौजूद हैं आंकड़े
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण अपनी वेबसाइट के साथ-साथ अपने पोर्टल - www.tigernet.nic.in के माध्यम से नागरिकों को बाघों की मृत्यु के आंकड़े उपलब्ध कराता है। समाचार रिपोर्टों में यह बताया गया है कि बाघों की मौत के 126 मामलों में से 60 बाघों की मृत्यु शिकारियों, दुर्घटनाओं तथा संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मानव-पशु संघर्ष के कारण हुई थी। अथॉरिटी के अनुसार बाघों की मौत का असली कारण नहीं बताया गया।
यहां पर इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण में किसी बाघ की मौत होने का कारण बताने के लिए एक सख्त प्रोटोकॉल है। इसके लिए नेक्रोप्सी रिपोर्ट, हिस्टोपैथोलॉजिकल और फोरेंसिक आकलन के अलावा तस्वीरों तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को प्रस्तुत करके साबित किया जाता है कि बाघ की मौत किस कारण और परिस्थतियों में हुई। इन दस्तावेजों के विस्तृत विश्लेषण के बाद ही टाइगर रिजर्व के बाहर 60 बाघों की मौत के कारणों का पता लगाया जा सकता है। अथॉरिटी ने कहा कि मीडिया से आशा की जाती है कि सनसनी न फैलाएं।
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