त्रिपुरा चुनाव 2023: जितेंद्र चौधरी बोले-'भाजपा ने संविधान को महज प्रतीक बना दिया, लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल करनी चाहिए'

त्रिपुरा में विधानसभा के चुनाव (Tripura Assembly Election) हो रहे हैं। चुनाव में सत्ताधारी पार्टी भाजपा को वामपंथी दलों से चुनौती मिल रही है। एशियानेट न्यूजेबल की ऋचा बरुआ ने माकपा के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी से उनकी पार्टी की रणनीति को लेकर बात की।

Contributor Asianet | Published : Feb 4, 2023 8:51 AM IST / Updated: Feb 04 2023, 02:24 PM IST

एशियानेट न्यूजेबल की ऋचा बरुआ ने त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर माकपा के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी से बात की। जितेंद्र चौधरी प्रमुख आदिवासी नेता और पूर्व सांसद हैं। वह सबरूम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। चौधरी माणिक सरकार में मंत्री रहे हैं। पढ़ें इंटरव्यू...

इस चुनाव में माकपा क्या मुद्दे उठा रही है?
जितेंद्र चौधरी: इस चुनाव में माकपा और वामदलों का मुख्य मुद्दा लोकतंत्र की बहाली है। भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से राज्य में संवैधानिक व्यवस्था, नागरिक अधिकार और सब कुछ ध्वस्त हो गया है। कानून का कोई शासन नहीं रहा है। माकपा की प्राथमिकता कानून और लोकतांत्रिक व्यवस्था की बहाली है। हमारी सरकार त्रिपुरा के लोगों को उनकी आजीविका के अधिक अवसर देगी। लोगों के नागरिक अधिकारों (कानून और लोकतंत्र) को बहाल किया जाएगा।

आदिवासी वोटों को कैसे एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं?
जितेंद्र चौधरी: हमारी प्राथमिकता अनुसूचित जनजातियों सहित सभी लोगों की जरूरतों को पूरा करना है। भाजपा ने संविधान को मात्र प्रतीक बना दिया है। पिछले पांच वर्षों में वंचित समुदाय के लोग शोषण के शिकार बन गए हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने इन समूहों को गुमराह किया। इसके चलते स्वदेशी लोगों का एक वर्ग आईपीएफटी पार्टी में शामिल हो गया और त्रिपुरा के भीतर त्रिप्रालैंड नामक एक अलग राज्य के गठन की मांग की। भूगोल के आधार पर आदिवासी नेताओं के लिए एक स्वायत्त परिषद या राज्य का गठन असंभव है। त्रिप्रालैंड स्वदेशी या गैर-स्वदेशी लोगों के लिए फायदेमंद नहीं होगा।

आईपीएफटी की बैठकों में किए गए आश्वासनों के बावजूद अलग राज्य बनाने का काम कभी नहीं हो पाया। आईपीएफटी नेतृत्व ने त्रिपुरा के मूल निवासियों को गुमराह किया। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री इस मुद्दे पर चुप रहे और लोगों के बीच विभाजन को बढ़ावा दिया। वंचित समुदायों के असली मित्र माकपा और वाम मोर्चा हैं। हमारे पास स्वदेशी लोगों के अधिकारों का समर्थन करने और क्षेत्र के विकास का एक सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड है।

बीजेपी और आईपीएफटी के गठबंधन पर आपका क्या ख्याल है?
जितेंद्र चौधरी: बीजेपी ने स्वदेशी लोगों की नवगठित टिपरा मोथा के साथ गठबंधन करने की कोशिश की है। इसके लिए कई बार बातचीत हुई। टिपरा मोथा पार्टी ने गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा और केंद्र सरकार के सामने स्वदेशी/आदिवासी लोगों के समग्र उत्थान के लिए संवैधानिक संशोधन करने की मांग रखी है। दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन पर बात नहीं बनी है। हम शुरुआत से ही टिपरा मोथा की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से विकास लाने की मांग के साथ रहे हैं। हम संविधान के ढांचे के भीतर टिपरा मोथा पार्टी के लिए अवसर पैदा कर सकते हैं और विकास के लिए पार्टी से हाथ मिला सकते हैं। टिपरा मोथा से अपील है कि भाजपा को हराने और वोटों के बंटवारे के बचने के लिए हमारे साथ आए।

क्या लेफ्ट और कांग्रेस ने सीट बंटवारे का समझौता तय कर लिया है? कुछ क्षेत्रों में प्रत्याशियों ने एक-दूसरे के खिलाफ नामांकन दाखिल किया है।

जितेंद्र चौधरी: कांग्रेस और वाममोर्चा ने पहले ही अपने समझौते को अंतिम रूप दे दिया है। कांग्रेस 13 सीटों पर और वाम मोर्चा 47 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। एक या दो सीटों पर कुछ विवाद हैं, लेकिन समय रहते इसे सुलझा लिया जाएगा। हम लोगों से अपील करेंगे कि बीजेपी को हराने के लिए वोटों के बंटवारे को रोकें।

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त्रिपुरा में चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक हिंसा हुई है। पिछले कुछ महीनों में माकपा के कई ऑफिस पर हमले हुए हैं। इसपर आपका क्या कहना है?

जितेंद्र चौधरी: पिछले पांच साल में बीजेपी ने कोई काम नहीं किया। उनके पास त्रिपुरा के लोगों को कहने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने अपने एक भी वादे को पूरा नहीं किया। बीजेपी आतंक फैलान के लिए सैकड़ों असामाजिक लोगों को अपने साथ ले आई है। चुनाव जीतने के लिए बीजेपी के पास सिर्फ लोगों को डराने, संपत्तियों को नष्ट करने, लूटने और हत्या करने का विकल्प है। चुनाव आयोग को सक्रियता से कानून-व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए और राज्य में सेंट्रल पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवानों को बड़ी संख्या में त्रिपुरा में तैनात करना चाहिए। अगर कानून व्यवस्था प्रशासन से नहीं मिलती है तो लोग अपने वोट के अधिकार की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

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