यूक्रेन समेत कई देशों की MBBS डिग्री बिना परीक्षा बेकार, 5 साल में सिर्फ 16 फीसदी ही पास कर पाए FMGE

Medical education in ukarine : सरकारी आंकड़ों को देखें तो पिछले पांच साल में विदेशों से डॉक्टरी की पढ़ाई करने वालों की संख्या तीन गुनी बढ़ी है। 2012 में जहां 12 हजार छात्रों ने विदेशों से लौटने के बाद भारत में प्रैक्टिस के लिए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एक्जामिनेशन (FMGE)  परीक्षा दी, जबकि 2020 में इनकी संख्या बढ़कर 35,774 हो गई। बड़ी बात यह है कि इन पांच सालों में भारत में MBBS की 30 हजार सीटें बढ़ी हैं।

Vikas Kumar | Published : Mar 4, 2022 5:53 AM IST / Updated: Mar 04 2022, 11:25 AM IST

नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच वहां फंसे हुए छात्रों को निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा तेजी से चल रहा है। 10 मार्च तक 80 फ्लाइट्स के जरिये इन्हें निकालना है। करीब 17 हजार छात्र वहां हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये यूक्रेन से पढ़ाई करने गए क्यों! क्या यूक्रेन का एमबीबीएस यहां मान्य है। और कितने देशों में भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं। 

तीन गुना बढ़ी विदेशों से डॉक्टरी पढ़ने वालों की संख्या 
बता दें कि यूक्रेन से एमबीबीएस करना भारत की अपेक्षा काफी सस्ता है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वहां से लौटा हर छात्र यहां MBBS के तौर पर लाइसेंस प्राप्त कर सके। सरकारी आंकड़ों को देखें तो पिछले पांच साल में विदेशों से डॉक्टरी की पढ़ाई करने वालों की संख्या तीन गुनी बढ़ी है। 2012 में जहां 12 हजार छात्रों ने विदेशों से लौटने के बाद भारत में प्रैक्टिस के लिए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एक्जामिनेशन (FMGE)  परीक्षा दी, जबकि 2020 में इनकी संख्या बढ़कर 35,774 हो गई। बड़ी बात यह है कि इन पांच सालों में भारत में MBBS की 30 हजार सीटें बढ़ी हैं, इसके बावजूद विदेशों में डॉक्टरी पढ़ने वालों की संख्या बढ़ रही है। सिर्फ मध्य प्रदेश में पिछले 15 साल में 8 हजार छात्रों ने विदेशों से एमबीबीएस किया, लेकिन इनमें से महज 348 छात्रों को यहां प्रैक्टिस का लाइसेंस मिला। 

दो साल में एक बार होता है FMGE 
फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएशन एक्जामिनेशन (FMGE) नेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (NEB) द्वारा आयोजित कराया जाता है। हर दो साल में यह होता है और छात्र को तीन बार इसमें मौके मिलते हैं। इस एग्जाम में चीन, रूस, यूक्रेन, किर्गिस्तान, काजिकिस्तान और फिलीपींस में मेडिकल करने वाले 
छात्र भाग ले सकते हैं।

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चीन से सबसे ज्यादा डिग्री 
एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेशों में सबसे ज्यादा चीन के 12,680 छात्रों ने 2020 में मेडिकल की डिग्री ली। इसके बाद रूस से तकरीबन पांच हजार छात्रों ने मेडिकल की डिग्री ली। यूक्रेन, किर्गिस्तान और फिलीपींस से डिग्री लेने वालों की संख्या भी 4 हजार के आसपास रही। हालांकि इन सभी छात्रों को भारत में प्रैक्टिस का लाइसेंस नहीं मिल पाया है। 

स्टूडेंट कॉन्ट्रैक्टर के जरिये लिया जाता है ठेका
बता दें कि यूक्रेन और रूस समेत अन्य देशों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कॉन्ट्रैक्ट लिया जाता है। संस्थाएं कोर्स की फीस के तौर पर 20 लाख रुपए लेती हैं। इसके अलावा पासपोर्ट, वीजा और दस्तावेजों के लिए 02 लाख रुपए, रहने खाने के नाम पर 10 से 15 लाख और 5 लाख रुपए अन्य खर्चों के नाम पर लिए जाते हैं। भारत में इन देशों से पढ़ाई करके आए छात्र इसलिए फेल होते हैं क्योंकि हमारी और इन देशों की पढ़ाई में अंतर है। 



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